Aranyak granth & Important Questions
आरण्यक ग्रंथ और महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
Aranyak granth
आरण्यक ग्रंथ
१ ब्राह्मण ग्रंथों के परिशिष्ट रूप हैं ।-आरण्यक और उपनिषद
२ दार्शनिक सिद्धाांतों का निरूपण किया गया है।
-आरण्यकों और उपनिषदों में
३ आरण्यक उपादेय हैं ।
-वानप्रस्थी के लिए
४ आरण्यकों का लक्ष्य है ।
- चिंतन (कर्मानुष्ठान नहीं)
५ उपनिषद उपादेय हैं ।
-सन्यासी परिव्राजकों के लिए
६ कर्ममार्ग से ज्ञान मार्ग को प्राप्त करने का सोपान है।
-आरण्यक
७ आरण्यकों के अनुसार विश्व का नियामक है ।
-यज्ञ
८ आरण्यक गद्यात्मक हैं या पद्यात्मक ।
-सामान्यत: आरण्यक गद्यात्मक हैं। कहीं कहीं पद्यात्मक भी हैं।
९ ऋग्वेद की शाकल शाखा से संबंधित आरण्यक है।
-ऐतरेय
१० ऐतरेय ब्राह्मण के कितने भाग आरण्यक हैं।
-पांच भाग
११ प्रथम आरण्यक ऐतरेय में वर्णन किया गया है।
-महाव्रतों का
१२ ऐतरेयारण्यक के दूसरे खंड के चतुर्थ से षष्ठ अध्याय तक कहलाता है।
-ऐतरेयोपनिषद
१३ ऐतरेय ब्राह्मण के तृतीय आरण्य को कहा जाता है । -संहितोपनिषद
१४महानाम्नी ऋचाएं संबंधित हैं।
-चतुर्थ आरण्यक से
१५ निष्केवल्य आरण्यक का वर्णन है।
-पांचवें आरण्यक में
१६ महिदास ऐतरेय द्वारा लिखित हैं।
-प्रथम तीन आरण्यक
१७ चतुर्थ आरण्यक के रचयिता हैं।
- आश्वालयन
१८ पंचम आरण्यक के रचयिता हैं।
- शौनक
१९ शांखायन आरण्यक का इतरनाम है ।
-कौषीतकी आरण्यक
२० शांखायन आरण्यक में कुल अध्याय हैं।
-15
२१ शांखायन आरण्यक के तृतीय से षष्ठ अध्याय कहलाते हैं।
-कौषीतक्युपनिषद
२२ बृहदारण्यक संबंधित है।
-शुक्ल यजुर्वेद से
२३ शतपथ ब्राह्मण का अंतिम कांड (17वां) के 6 अध्याय कहलाते हैं।
-बृहदारण्यकोपनिषद
२४ बृहदारण्यकोपनिषद आरण्यक व उपनिषद का मिश्रण है। फिर भी इसे उपनिषद ही माना जाता है।
-आत्मतत्व के विवेचन के कारण
२५ कृष्ण यजुर्वेद से संबंधित आरण्यक है।
-तैत्तिरीयारण्यक
२६ तैत्तिरीय आरण्यक में परिच्छेद या प्रपाठकों की संख्या है।
-10
२७ तैत्तिरीय आरण्यक का सप्तम से नवम परिच्छेद है।
-तैत्तिरीयोपनिषद
२८ तैत्तिरीय आरण्यक के प्रपाठकों के नाम बताइये।
-भद्र, सहवै, चित्ति, युंजते, देव वै, परे, शिक्षा, ब्रह्मविद्या, भृगु, नरायणीय ।
२९ तैत्तिरीय आरण्यक का दशम प्रपाठक है।
-महानारायणीयोपनिषद
३० महानारायणी उपनिषद है।
-परिशिष्ट
३१ तैत्तिरीय आरण्यक के प्रपाठक विभक्त हैं।
-अनुवाकों में
३२ प्रत्येक अनुवाक में इकाइयां हैं ।
-10-10 वाक्यों में
३३ तैत्तिरीय आरण्यक में कश्यप का अर्थ है ।
-सूर्य
३४ कृष्ण यजुर्वेद की मैत्रायणी शाखा का उपनिषद कहलाता है।
-मैत्रायणी उपनिषद
३५ सामवेद की जैमिनीय शाखा का आरण्यक है।
-तलवकार
३६ तलव का अर्थ है।
-संगीतज्ञ
३७ जैमिनीयोपनिषद ब्राह्मण के चौथे अध्याय के दसवें अनुवाद में स्थिति है।
-तलवकार या केनोपनिषद
३८ जैमिनियोपनिषद ब्राह्मण का विभाजन बताइये ।
-4 अध्याय, प्रत्येक अध्याय अनुवाकों में विभाजित है।
३९ सामवेद के तांड्य ब्राह्मण से संबंध आरण्यक है।
-छान्दोग्यारण्यक
४० छान्दोग्योपनिषद का आरंभिक भाग है ।
-छान्दोग्यारण्यक ।
४१ किस वेद का कोई आरण्यक नहीं है।
-अथर्ववेद का
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