Sanskrit Grammar | संस्कृत व्याकरण | माहेश्वर सूत्र | प्रत्याहार | यत्न विवेक | स्वर | व्यंजन - NEWS SAPATA

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Monday, October 15, 2018

Sanskrit Grammar | संस्कृत व्याकरण | माहेश्वर सूत्र | प्रत्याहार | यत्न विवेक | स्वर | व्यंजन

Sanskrit Grammar | संस्कृत व्याकरण | माहेश्वर सूत्र | प्रत्याहार | यत्न विवेक | स्वर | व्यंजन

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1 ekgs”oj lw=
2 Loj
3 O;atu
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5 ;Ru foosd 
संस्कृत व्याकरण को माहेश्वर शास्त्र कहा जाता है।
1 माहेश्वर का अर्थ है- शिव जी
2 माहेश्वर सूत्र की संख्या --- 14
3 संस्कृत में वर्ण दो प्रकार के होते है |
1 स्वर
2 व्यञ्जन।

यजुर्वेद के उपनिषदों के लिए यहाँ क्लिक करें

संस्कृत में स्वर- ( अच्) तीन प्रकार के होते है

1 ह्रस्व स्वर ( पाँच)--- इसमें एक मात्रा का समय लगता है। अ , इ , उ , ऋ , लृ
2 दीर्घ स्वर (आठ)---: इसमें दो मात्रा ईआ समय लगता है। आ , ई , ऊ , ऋ , ए ,ऐ ,ओ , औ
3 प्लुत स्वर --: इसमे तीन मात्रा का समय लगता है।
जैसे--- हे राम३ , ओ३म ।

अथर्ववेद के अरण्यक ग्रंथों के लिए यहाँ क्लिक करें 

सस्कृत में व्यञ्जन (हल् )

व्यञ्जन चार प्रकार के होते है
1 स्पर्श व्यञ्जन - क से म तक = 25 वर्ण
2 अन्तःस्थ व्यञ्जन - य , र , ल , व = 4 वर्ण
3 ऊष्म व्यञ्जन - श , ष , स , ह = 4 वर्ण
4 संयुक्त व्यञ्जन - क्ष , त्र , ज्ञ = 3 वर्ण

प्रत्याहारों की संख्या = 42 


अक् प्रत्याहार---: अ इ उ ऋ लृ ।
अच् प्रत्याहार ---:अ इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ।
अट् प्रत्याहार ---: अ इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ह् य् व् र् ।
अण् प्रत्याहार ---: अ इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ह् य् व् र् ल् ।
इक् प्रत्याहार----: इ उ ऋ लृ ।
इच् प्रत्याहार----: इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ।
इण् प्रत्याहार-----: इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ह् य् व् र् ल् ।
उक् प्रत्याहार ----: उ ऋ लृ ।
एड़् प्रत्याहार ----: ए ओ ।
एच् प्रत्याहार----- : ए ओ ऐ औ ।
ऐच् प्रत्याहार ----- ऐ औ ।
जश् प्रत्याहार --- : ज् ब् ग् ड् द् ।
यण् प्रत्याहार ---': य् व् र् ल् ।
शर् प्रत्याहार-----: श् ष् स् ।
शल् प्रत्याहार ---- : श् ष् स् ह् ।

प्रयत्न


" वर्णों के उच्चारण करने की चेष्टा को ' प्रयत्न ' कहते है।
प्रयत्न दो प्रकार के होते है---:
1 आभ्यान्तर प्रयत्न
2बाह्य प्रयत्न

आभ्यान्तर प्रयत्न

आभ्यान्तर प्रयत्न पाँच प्रकार के होते है
1 स्पृष्ट ( स्पर्श)-----: क से म तक के वर्ण ।
2 ईषत् स्पृष्ट - य ,र , ल , व ।
3 ईषत् विवृत - श , ष , स , ह ।
4 विवृत - अ इ उ ऋ लृ ए ओ ऐ औ ।
संवृत
" इसमें वायु का मार्ग बन्द रहता है । प्रयोग करने में ह्रस्व " अ " का प्रयत्न संवृत होता है किन्तु शास्त्रीय प्रक्रिया में " अ " का प्रयत्न विवृत होता है।

बाह्य प्रयत्न 

उच्चारण की उस चेष्टा को " बाह्य प्रयत्न " कहते है ; जो मुख से वर्ण निकलते समय होती है।
बाह्य प्रयत्न -- 11 प्रकार के होते है।
1 विवार
2 संवार
3 श्वास
4 नाद
5 घोष
6 अघोष
7 अल्पप्राण
8 महाप्राण
9 उदात्त
10 अनुदात्त
11 त्वरित

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