Intelligence Meaning , Types , Theories, Measurement
बुद्धि का अर्थ / परिभाषा / प्रकार / सिद्धांत / मापन
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buddhi ka arth
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बुद्धि क्या है इसे लेकर मनोवैज्ञानिकों में सदा मतभेद रहा है। बुद्धि को आधुनिक युग में समान्य तौर पर सफलता से भी जोडक़र देखा जाता है। लेकिन हम देखते हैं कि पशु और मनुष्यों में प्रमुख अंतर बुद्धि का ही होता है। सबसे पहले यूनानी दार्शनिकों ने बुद्धि को परिभाषित करने का काम किया। 19 वीं सदी तक बुद्धि और बुद्धि जन्य शब्द मनुष्य की सोचने की शक्ति के लिए प्रयुक्त होते रहे और माना जाता रहा कि पशु बुद्धिहीन होते हैं। लेकिन डार्विन ने विकासवाद का सिद्धान्त देकर इस क्षेत्र में क्रांति ला दी। उन्होंने यह सिद्ध किया कि मनुष्य और पशुओं के व्यवहार में आधारभूत समानताएं होती हैं। उन्होंने बताया कि मनुष्य की तरह ही पशुओं में भी बुद्धि होती है।
Meaning of intelligence | बुद्धि का अर्थ :-
सामान्य अर्थ में तेजी से सीखने और समझने, स्मरण और तार्किक चिन्तन आदि गुणों को बुद्धि के रूप में प्रयोग में लाते हंै। मनोवैज्ञानिकों द्वारा दी गयी बुद्धि की परिभाषाएं सामान्य अर्थ से अलग हैं। मनोवैज्ञानिकों द्वारा दी गयी परिभाषाओं को तीन भागों मे बांटा जा सकता है।
बुद्धि को वातावरण के साथ समायोजन करने की क्षमता के आधार पर परिभाषित किया गया है।
जिस व्यक्ति में सीखने की क्षमता जितनी अधिक होती है उस व्यक्ति में बुद्धि उतनी ही अधिक होगी।
जिस व्यक्ति में अमूर्त चिन्तन की योग्यता जितनी अधिक होगी वह व्यक्ति उतना ही अधिक बुद्धिमान होगा।
बुद्धि केवल एक योग्यता ही नहीं है परन्तु इसमें अनेक तरह की योग्यताएं सम्मलित होती हैं। इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मनोवैज्ञानिक
वेश्लर ने बुद्धि को परिभाषित किया है
व्यक्तित्व का अर्थ / परिभाषा | व्यक्तित्व के उपागम
"बुद्धि एक समुच्चय या सार्वजनिक क्षमता है जिसके सहारे व्यक्ति उदद्ेश्पूर्ण क्रिया करता है, विवेक पूर्ण चिन्तन करता है तथा वातावरण के साथ प्रभावकारी ढग़ से समायोजन करता है।"
बुद्धि की परिभाषा:-
मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि के स्वरूप को तीन वर्गों में रखा है और बुद्धि की परिभाषाओं को वर्गों के अनुसार अलग-अलग ढंग से पारिभाषित किया हैं। ये वर्ग -
(1) वर्ग- बुद्धि सामान्य योग्यता है
(2) वर्ग- बुद्धि दो या तीन योग्यताओं का योग है।
(3) वर्ग- बुद्धि समस्त विशिष्ट योग्यताओं का योग है।
उपरोक्त तीन वर्गों के अन्तर्गत बुद्धि को जिस प्रकार से पारिभाषित किया गया उनका वर्णन इस प्रकार है-
(1) बुद्धि एक सामान्य योग्यता है
(2) टर्मन, एम्बिगहास, स्टाऊट, बर्ट गॉल्टन स्टर्न आदि मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि को एक सामान्य योग्यता माना है। इन मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बुद्धि व्यक्ति की सामान्य योग्यता है, जो उसकी हर क्रिया में पायी जाती है। इन मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि की परिभाषाएं इस प्रकार प्रस्तुत की हैं -
टर्मन के अनुसार "अमूर्त वस्तुओं के सम्बंध में विचार करने की योग्यता ही बुद्धि है। " उनके अनुसार बुद्धि समस्या को हल करने की एक सामान्य योग्यता है।
एबिंगहास के अनुसार ‘बुद्धि विभिन्न भागों को मिलाने की शक्ति है।
स्टाऊट ने बुद्धि को अवधान की शक्ति के रूप में माना है।
बर्ट के मतानुसार ‘बुद्धि जन्मजात व्यापक मानसिक क्षमता है।’
गाल्टन के अनुसार ‘बुद्धि विभेद एवं चयन करने की शक्ति है।’
बाल मनोविज्ञान और शिक्षा शास्त्र
स्टर्न के मतानुसार ‘नई परिस्थितियों के साथ समायोजन करने की योग्यता ही बुद्धि है।’
बुद्धि दो या तीन योग्यताओं का योग है - इस प्रकार की विचार धारा को मानने वाले मनोवैज्ञानिक
स्टेनफोर्ड बिने हैं।
बिने के अनुसार ‘बुद्धि तर्क, निर्णय एवं आत्म आलोचन की योग्यता एवं क्षमता है।’
बुद्धि समस्त विशिष्ट योग्यताओं का योग है- बुद्धि के इस वर्ग की परिभाषाओं के अन्तर्गत मनोवैज्ञानिकों ने विभिन्न प्रकार की विशिष्ट योग्यताओं के योग को बुद्धि की संज्ञा दी है। इन विचारों को मानने वाले
थार्नडाइक, थस्र्टन, थॉमसन, वेस्लर तथा स्टोडार्ड हैं।
थार्नडाइक के अनुसार "उत्तम क्रिया करने तथा नई परिस्थितियों के साथ समायोजन करने की योग्यता को बुद्धि कहते हैं।"
थॉमसन के अनुसार- "बुद्धि वंशपरम्परागत प्राप्त विभिन्न गुणों का योग है।"
वेस्लर के मत में "बुद्धि व्यक्ति की क्षमताओं का वह समुच्चय है जो उसकी ध्येयात्मक क्रिया, विवेकशील चिंतन तथा पर्यावरण के प्रभाव से समायोजन कराने में सहायक होती है।"
स्टोडार्ड के मतानुसार "बुद्धि (क) कठिनता (ख) जटिलता (ग) अमूर्तता (ड.) आर्थिकता (च) उद्देश्य प्राप्यता (छ) सामाजिक मूल्य तथा (ज) मौलिकता से सम्बंधित समस्याओं को समझने की योग्यता है।"
उपरोक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट होता है कि सभी मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि को भिन्न-भिन्न प्रकारों से समझा है। इन्हीं पारिभाषाओं को आधार मानते हुए
डॉ. भार्गव ने बुद्धि को इस प्रकार पारिभाषित किया है,
"बुद्धि सामान्य, मानसिक एवं जन्मजात योग्यताओं का वह समन्वय है जिसकी सहायता से व्यक्ति को उसके प्रत्येक कार्य करने में सफलता प्राप्त करने का अवसर मिलता है। यह नवीनतम परिस्थितियों में व्यक्ति का समायोजन बनाए रखने में विशेष रूप से क्रियाशील होती है। इसका सम्बंध अनुभवों के विश्लेषण एवं आवश्यकताओं के नियोजन तथा पुनर्संगठन से होता है। अतएव योग्यता का हमारे दैनिक व्यावहारिक जीवन में भी विशेष महत्व है।
पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत
Typs of intellinence बुद्धि के प्रकार:-
ई. एल. थार्नडाइक के अनुसार
बुद्धि के तीन प्रकार हैं।
(1) सामाजिक बुद्धि
(2) अमूर्त बुद्धि
(3) मूर्त बुद्धि
सामाजिक बुद्धि वह सामान्य मानसिक क्षमता है जिसके आधार पर व्यक्ति अन्य व्यक्तियों को समझता है तथा व्यवहार कुशलता के साथ-साथ सामाजिक सम्बन्धों को भी अच्छा बनाता है।
अमूर्त चिन्तन का तात्पर्य ऐसी मानसिक क्षमता से है जिसमें व्यक्ति शाब्दिक तथा गणितीय संकेतों एवं चिन्हों को आसानी से समझ जाता है तथा उसकी व्याख्या कर लेता है।
मूर्त बुद्धि वह मानसिक क्षमता है जिसके आधार पर व्यक्ति ठोस वस्तुओं के महत्व को समझता है तथा उसका ठीक ढग़ से भिन्न-भिन्न परिस्थितियों मे परिचालन करना सीखता है।
Intellinence Quotient बुद्धि लब्धि :-
टर्मन तथा स्टर्न ने बुद्धि-लब्धि का
प्रत्यय दिया। बुद्धि-लब्धि को
मानसिक आयु तथा
वास्तविक आयु के अनुपात से ज्ञात किया जाता है।
बुद्धिमापन की प्रक्रिया में मानसिक आयु का विचार सर्वप्रथम बिने ने प्रस्तुत किया।
मानसिक आयु व्यक्ति के विकास की वह अभिव्यक्ति है जो उसके उन कार्यों द्वारा ज्ञात की जा सकती है जिनकी उसकी आयु विशेष में अपेक्षा है। इस तरह किसी व्यक्ति की मानसिक आयु से हमारा आशय उस आयु से है जिस आयु के प्रश्नों या समस्याओं को वह हल कर लेता है। अर्थात् व्यक्ति जितनी आयु स्तर के प्रश्नों या समस्याओं को हल कर लेता है, उसकी मानसिक आयु भी उतनी ही होगी। जैसे एक आठ वर्ष का बालक दस वर्ष की आयु स्तर के प्रश्नों और समस्याओं को हल कर लेता है तो उसकी मानसिक आयु दस वर्ष मानी जाएगी। यदि आठ वर्ष का बालक अपनी आयु स्तर के प्रश्नों और समस्याओं को हल नहीं कर सकता और वह केवल छह वर्ष आयु स्तर के प्रश्नों और समस्याओं को हल करता है तो उसकी मानसिक आयु छह वर्ष मानी जाएगी। बुद्धि परीक्षणों से व्यक्ति की इस मानसिक आयु को ज्ञात किया जाता है।
शारीरिक आयु का अभिप्राय व्यक्ति की वास्तविक आयु से अर्थात् उसकी जन्म तिथि से वर्तमान समयावधि तक की आयु से होता है।
बाल्यावस्था से किशोरावस्था तक बुद्धि में वृद्धि होती रहती है अत: इस अवस्था तक बुद्धि स्थिर नहीं रहती। परन्तु बाद में एक अवस्था ऐसी आती है जब बुद्धि स्थिर हो जाती है। बुद्धि-लब्धि को निम्न सूत्र द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
बुद्धि-लब्धि प्राप्त करने के लिए पहले बुद्धि परीक्षण से मानसिक आयु ज्ञात की जाती है। फिर उसमें व्यक्ति की वास्तविक आयु का भाग दे दिया जाता है तथा संख्या को पूर्ण बनाने के लिए इस अनुपात को 100 से गुणा कर दिया जाता है। उदाहरण के लिए किसी बालक की मानसिक आयु 14 वर्ष है और शारीरिक आयु 10 वर्ष है तो उसकी बुद्धि-लब्धि होगी-
अधिगम का अर्थ और परिभाषा
बुद्धि-लब्धि = मानसिक आयु
.......................... X 100
वास्तविक आयु
बुद्धि लब्धि का मान अर्थ-
140 या उससे उपर
प्रतिभाशाली
120 से 139
अतिश्रेष्ठ
110 से 119
श्रेष्ठ
90 से 109
सामान्य
80 से 89
मन्द
70 से 79
सीमान्त मंद बुद्धि
60 से 69
मंद बुद्धि
20 से 59
हीन बुद्धि
20 से कम
जड़ बुद्धि
बुद्धि निर्धारक तत्व :-
एक व्यक्ति की बुद्धि दूसरे व्यक्ति से भिन्न होती है। इस भिन्नता का प्रमुख कारण वंशानुक्रम तथा वातावरण है। वंशानुक्रम के महत्व को दिखाने के लिए मनोवैज्ञानिकों ने अलग-अलग तथ्य एकत्र कर यह बताया है कि बुद्धि जीन्स द्वारा प्रभावित होती है।
भिन्न भिन्न परिवारों के बच्चे को जन्म के तुरन्त बाद एक ही वातारण में रखकर यह पाया गया कि ऐसे बच्चे की बुद्धि एक दूसरे से भिन्न थी।
बोचार्ड तथा मैन्यू (1981) तथा एहर््रोमेयर, किमरलिंग तथा जाईविस ने अपने अध्ययनो में यह बताया है कि जिन व्यक्तियों में रिश्तेदारी होती है उनकी बुद्धिलब्धि में सहसम्बन्ध पाया जाता है। वातावरण भी व्यक्ति की बुद्धि लब्धि को प्रभावित करता है। वातावरणीय कारकों में आहार, स्वास्थ, उत्तेजनाओं का स्तर, परिवार का संवेगात्मक वातावरण प्रमुख है।
गरीब तथा अप्रेरणात्मक वातावरण में पाले गए बच्चों की बुद्धि की तुलना उन बालकों की बुद्धि से की गयी जो प्रेरणात्मक तथा धनी वातावरण में पाले पोसे गये थे और यह पाया गया कि प्रेरणात्मक वातावरण में बड़े होने वाले बच्चों की बुद्धि अधिक पायी गयी।
विसमैन तथा साल ने अपने अध्ययनों के आधार पर यह बताया कि प्रतिकूल वातावरण का सबसे खराब प्रभाव औसत बुद्धि वाले बच्चों पर पड़ता है। यदि व्यक्ति की आरम्भिक जिन्दगी में कुछ महत्वपूर्ण पर्यावरणी उत्तेजना का अभाव रहता है तो उससे बुद्धि में कमी आ जाती है।
बैक्स ने पाया है कि जब परिवार में शोरगुल एवं दुव्र्यवस्था का स्तर ऊंचा होता है तो बच्चों के बुद्धि स्तर में कमी आ जाती है। माता पिता द्वारा उचित ध्यान न देना तथा सफलता पर उचित पुरुस्कार न देना आदि कारणों से भी बुद्धिलब्धि में कमी आ जाती है।
लोगों का रहन सहन का स्तर तथा शैक्षिक अवसरों में वृद्धि बुद्धि में वृद्धि का कारण माना जाता है।
अत: व्यक्ति का बौद्धिक विकास हद तक उस बौद्धिक वातावरण पर निर्भर करता है जिसमें वह रहता है। उच्च सामाजिक आर्थिक स्तर वाले बच्चों की बुद्धि निम्न सामाजिक आर्थिक स्तर में रहने वाले बच्चों से श्रेष्ठ होती है। इन अध्ययनों से स्पष्ट होता है कि बुद्धि के निर्धारण में आनुवांशिकता तथा पर्यावरणीय कारकों की अन्त: क्रिया का प्रभाव पड़ता है।
Theories of Intelligence बुद्धि के सिद्धान्त :-
यह प्रश्न स्वाभाविक है कि बुद्धि के स्वरूप एवं सिद्धान्त में मूलरूप से क्या अंतर है ? वैसे तो दोनों ही बुद्धि के विषय के बारे में विचार प्रकट करते हैं परन्तु फिर भी दोनों में भिन्नता दृष्टिगत होती है।
बुद्धि के सिद्धान्त उसकी संरचना को स्पष्ट करते हैं जबकि स्वरूप उसके कार्य पर प्रकाश डालते हैं। गत शताब्दी के प्रथम दशक से ही विभिन्न देशों के मनोवैज्ञानिकों में इस बात की रूचि बढ़ी की बुद्धि की संरचना कैसी है तथा इसमें किन-किन कारकों का समावेश है। इन्हीं प्रश्नों के परिणाम स्वरूप विभिन्न कारकों के आधार पर बुद्धि की संरचना की व्याख्या होने लगी।
अमेरिका के थार्सटन, थार्नडाईक, थॉमसन आदि मनोवैज्ञानिकों ने कारकों के आधार पर ‘बुद्धि के स्वरूप’ विषय में अपने-अपने विचार व्यक्त किए। इसी तरह फ्रांस में अल्फ्रेड बिने, ब्रिटेन में स्पीयरमेन ने भी बुद्धि के स्वरूप के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किए।
बुद्धि के विभिन्न सिद्धान्तों की व्याख्या विस्तार से नीचे देखें।
1. बिने का एक कारक (Unifactor) सिद्धान्त :-
प्रतिपादक -फ्रांस के मनोवैज्ञानिक अल्फ्रेड बिने
कब किया- 1905 में
समर्थक-अमेरिका के मनोवैज्ञानिक टर्मन तथा जर्मनी के मनोवैज्ञानिक एंबिगास
क्या कहता है सिद्धान्त- "बुद्धि वह शक्ति है जो समस्त मानसिक कार्यों को प्रभावित करती है।" इस सिद्धान्त के अनुयाइयों ने बुद्धि को समस्त मानसिक कार्यों को प्रभावित करने वाली एक शक्ति के रूप में माना है। उन्होंने यह भी माना है कि बुद्धि समग्र रूप वाली होती है और व्यक्ति को एक विशेष कार्य करने के लिये अग्रेसित करती है। इस सिद्धान्त के अनुसार बुद्धि एक एकत्व का खंड है जिसका विभाजन नहीं किया जा सकता है। इस सिद्धान्त के अनुसार यदि व्यक्ति किसी एक विशेष क्षेत्र में निपुण है तो वह अन्य क्षेत्रों में भी निपुण रहेगा। इसी एक कारकीय सिद्धान्त को ध्यान में रखते हुए बिने ने बुद्धि को व्याख्या-निर्णय की योग्यता माना है। टर्मन ने इसे विचार करने की योग्यता माना है तथा स्टर्न ने इसे नवीन परिस्थितियों के साथ समायोजन करने की योग्यता के रूप में माना है।
2. द्वितत्व या द्विकारक (Two Factor ) सिद्धान्त :-
प्रवर्तक- ब्रिटेन के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक स्पीयर मेन
दो तत्व- सामान्य बुद्धि और विशिष्ट बुद्धि
सामान्य कारक या द्विकारक से उनका तात्पर्य यह है कि सभी व्यक्तियों में कार्य करने की एक सामान्य योग्यता होती है। अत: प्रत्येक व्यक्ति कुछ सीमा तक प्रत्येक कार्य कर सकता है। ये कार्य उसकी सामान्य बुद्धि के कारण ही होते हैं। सामान्य कारक व्यक्ति की सम्पूर्ण मानसिक एवं बौद्धिक क्रियाओं में पाया जाता है परन्तु यह विभिन्न मात्राओं में होता है। बुद्धि का यह सामान्य कारक जन्मजात होता है तथा व्यक्तियों को सफलता की ओर इंगित करता है।
विशिष्ट कारक-व्यक्ति की विशेष क्रियाएं बुद्धि के विशेष कारक के कारण होती हैं। यह कारक बुद्धि का विशिष्ट कारक कहलाता है। एक प्रकार की विशिष्ट क्रिया में बुद्धि का एक विशिष्ट कारक कार्य करता है तो दूसरी क्रिया में दूसरा विशिष्ट कारक। अत: भिन्न-भिन्न प्रकार की विशिष्ट क्रियाओं में भिन्न-भिन्न प्रकार के विशिष्ट कारकों की आवश्यकता होती है। ये विशिष्ट कारक भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं। इसी कारण वैयक्तिक भिन्नताएं पाई जाती हैं।
दोनों में अंतर-बुद्धि के सामान्य कारक जन्मजात होते हैं जबकि विशिष्ट कारक अधिकांशत: अर्जित होते हैं। बुद्धि के इस दो-कारक सिद्धान्त के अनुसार सभी प्रकार की मानसिक क्रियाओं में बुद्धि के सामान्य कारक कार्य करते हैं। जबकि विशिष्ट मानसिक क्रियाओं में विशिष्ट कारकों को स्वतंत्र रूप से काम में लिया जाता है। व्यक्ति के एक ही क्रिया में एक या कई विशिष्ट कारकों की आवश्यकता होती है। परन्तु प्रत्येक मानसिक क्रिया में उस क्रिया से संबंधित विशिष्ट कारक के साथ-साथ सामान्य कारक भी आवश्यक होते हैं। जैसे- सामान्य विज्ञान, सामाजिक अध्ययन, दर्शन एवं शास्त्र अध्ययन जैसे विषयों को जानने और समझने के लिए सामान्य कारक महत्वपूर्ण समझे जाते हैं वही यांत्रिक, हस्तकला, कला, संगीत कला जैसे विशिष्ट विषयोंं को जानने ओर समझने के लिए विशिष्ट कारकों की प्रमुख रूप से आवश्यकता होती है।
अत: इससे स्पष्ट है कि किसी विशेष विषय या कला को सीखने के लिए दोनों कारकों का होना अत्यन्त अनिवार्य है। व्यक्ति की किसी विषेश विषय में दक्षता उसकी विशिष्ट योग्यताओं के अतिरिक्त सामान्य योग्यताओं पर निर्भर है। स्पीयर मेन के अनुसार ‘विषयों का स्थानान्तरण केवल सामान्य कारकों द्वारा ही संभव हो सकता है।
3. त्रिकारक ( Three Factor ) बुद्धि सिद्धान्त
प्रतिपादक -स्पीयरमेन
कब दिया सिद्धान्त -1911 में
तीन कारक-
1 सामान्य बुद्धि,
2 विशिष्ट बुद्धि और
3 समूह कारक या गु्रप फेक्टर
क्या कहता है सिद्धान्त- स्पीयरमेन के विचार में सामान्य तथा विशिष्ट कारकों के अतिरिक्त समूह कारक भी समस्त मानसिक क्रियाओं में साथ रहता है। कुछ विशेष योग्यताएं जैसे- यांत्रिक योग्यता, आंकिक योग्यता, शाब्दिक योग्यता, संगीत योग्यता, स्मृति योग्यता, तार्किक योग्यता तथा बौद्धिक योग्यता आदि के संचालन में समूह कारक भी विशेष भूमिका निभाते हैं। समूह कारक (G Factor ) स्वयं अपने आप में कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं रखता बल्कि विभिन्न विशिष्ट कारकों तथा सामान्य कारक के मिश्रण से यह अपना समूह बनाता है। इसीलिए इसे समूह कारक कहा गया है।
4. बहुकारक ( Multi Factor ) बुद्धि सिद्धान्त :-
प्रतिपादक- थार्नडाइक
क्या कहता है सिद्धान्त - बुद्धि विभिन्न कारकों का मिश्रण है। जिसमें कई योग्यताएं निहित होती हैं। उनके अनुसार किसी भी मानसिक कार्य के लिए, विभिन्न कारक एक साथ मिलकर कार्य करते हैं। थार्नडाइक ने पूर्व सिद्धान्तों में प्रस्तुत सामान्य कारकों की आलोचना की और अपने सिद्धान्त में सामान्य कारकों की जगह मूल कारकों तथा उभयनिष्ठ कारकों का उल्लेख किया। मूल कारकों में मूल मानसिक योग्यताओं को सम्मिलित किया है। ये योग्यताएं जैसे-शाब्दिक योग्यता, आंकिक योग्यता, यांत्रिक योग्यता, स्मृति योग्यता, तार्किक योग्यता तथा भाषण देने की योग्यता आदि हैं। उनके अनुसार ये योग्यताएं व्यक्ति के समस्त मानसिक कार्यों को प्रभावित करती है।
थार्नडाइक इस बात को भी मानते हैं कि व्यक्ति में कोई न कोई विशिष्ट योग्यता अवश्य पायी जाती है। परन्तु उनका यह भी मानना है कि व्यक्ति की एक विषय की योग्यता से दूसरे विषय में योग्यता का अनुमान लगाना कठिन है। जैसे कि एक व्यक्ति यांत्रिक कला में प्रवीण है तो यह आवश्यक नहीं कि वह संगीत में भी निपुण होगा। उनके अनुसार जब दो मानसिक क्रियाओं के प्रतिपादन में यदि धनात्मक सहसंबंध पाया जाता है तो उसका अर्थ यह है कि व्यक्ति में उभयनिष्ठ कारक भी हैं। ये उभयनिष्ठ कारक कितनी मात्रा में हैं यह सहसंबंध की मात्रा से ज्ञात हो सकता है।
5. समूह कारक (Multiple Factor )बुद्धि सिद्धान्त -
प्रतिपादक-थर्सटन
क्या कहता है सिद्धान्त- बुद्धि न तो सामान्य कारकों का प्रदर्शन है न ही विभिन्न विशिष्ट कारकों का, अपितु इसमें कुछ ऐसी निश्चित मानसिक क्रियाएं होती हैं जो सामान्य रूप से मूल कारकों में सम्मिलित होती हैं। ये मानसिक क्रियाएं समूह का निर्माण करती हैं जो मनोवैज्ञानिक एवं क्रियात्मक एकता प्रदान करते हैं। थस्र्टन ने अपने सिद्धान्त को कारक विश्लेषण के आधार पर प्रस्तुत किया। उनके अनुसार बुद्धि की संरचना कुछ मौलिक कारकों के समूह से होती है। दो या अधिक मूल कारक मिलकर एक समूह का निर्माण कर लेते हैं जो व्यक्ति के किसी क्षेत्र में उसकी बुद्धि का प्रदर्शन करते हैं। इन मौलिक कारकों में उन्होंने आंकिक योग्यता प्रत्यक्षीकरण की योग्यता शाब्दिक योग्यता दैशिक योग्यता शब्द प्रवाह तर्क शक्ति और स्मृति शक्ति को मुख्य माना।
थर्सटन ने यह स्पष्ट किया कि बुद्धि कई प्रकार की योग्यताओं का मिश्रण है जो विभिन्न समूहों में पाई जाती है। उनके अनुसार मानसिक योग्यताएं क्रियात्मक रूप से स्वतंत्र है फिर भी जब ये समूह में कार्य करती है तो उनमें परस्पर संबंध या समानता पाई जाती है। कुछ विशिष्ट योग्यताएं एक ही समूह की होती हैं और उनमें आपस में सह-संबंध पाया जाता है। जैसे- विज्ञान विषयों के समूह में भौतिक, रसायन, गणित तथा जीव-विज्ञान भौतिकी एवं रसायन आदि। इसी प्रकार संगीत कला को प्रदर्शित करने के लिए तबला, हारमोनियम, सितार आदि बजाने में परस्पर सह-संबंध रहता है।
बुद्धि के अनेक प्रकार की योग्यताओं के मिश्रण को प्रस्तुत किया है। इन योग्यताओं का संकेतीकरण इस प्रकार है-
1 आंकिक योग्यता
2 वाचिक योग्यता
3 स्थान सम्बंधी योग्यता
4 स्मरण शक्ति योग्यता
5 शब्द प्रवाह योग्यता
6 तर्क शक्ति योग्यता
6.प्रतिदर्श (Group Factor ) सिद्धान्त -
प्रतिपादक-थॉमसन
क्या कहता है सिद्धान्त- व्यक्ति का प्रत्येक कार्य निश्चित योग्यताओं का प्रतिदर्श होता है। किसी भी विशेष कार्य को करने में व्यक्ति अपनी समस्त मानसिक योग्यताओं में से कुछ का प्रतिदर्श के रूप में चुनाव कर लेता है। इस सिद्धान्त में उन्होंने सामान्य कारकों की व्यावहारिकता को महत्व दिया है। थॉमसन के अनुसार व्यक्ति का बौद्धिक व्यवहार अनेक स्वतंत्र योग्यताओं पर निर्भर करता है परन्तु परीक्षा करते समय उनका प्रतिदर्श ही सामने आता है।
7. पदानुक्रमित बुद्धि सिद्धान्त -
प्रतिपादक-बर्ट एवं वर्नन
कब दिया सिद्धान्त-1965 में
क्या कहता है सिद्धान्त- बुद्धि सिद्धान्तों के क्षेत्र में यह नवीन सिद्धान्त माना जाता है। इस सिद्धान्त में बर्ट एवं वर्नन ने मानसिक योग्यताओं को क्रमिक महत्व प्रदान किया है। उन्होंने मानसिक योग्यताओं को दो स्तरों पर विभिक्त किया-
1 सामान्य मानसिक योग्यता
2 विशिष्ट मानसिक योग्यता
सामान्य मानसिक योग्यताओं में भी योग्यताओं को उन्होंने स्तरों के आधार पर दो वर्गों में विभाजित किया। पहले वर्ग में उन्होंने क्रियात्मक यांत्रिक दैशिक एवं शारीरिक योग्यताओं को रखा है। इस मुख्य वर्ग को उन्होंने V.ED. नाम दिया। योग्यताओं के दूसरे समूह में उन्होंने शाब्दिक आंकिक तथा शैक्षिक योग्यताओं को रखा है । अंतिम स्तर पर उन्होंने विशिष्ट मानसिक योग्यताओं को रखा जिनका सम्बंध विभिन्न ज्ञानात्मक क्रियाओं से है। इस सिद्धान्त की नवीनता एवं अपनी विशेष योग्यताओं के कारण कई मनोवैज्ञानिकों का ध्यान इसकी ओर आकर्षित हुआ है।
8. त्रि-आयाम (Three Dimension ) बुद्धि सिद्धान्त -
प्रतिपादक-गिलफोर्ड
कब दिया-1959, 1961, 1967 में
क्या कहता है सिद्धान्त- उसके सहयोगियों ने तीन मानसिक योग्यताओं के आधार पर बुद्धि संरचना की व्याख्या प्रस्तुत की। गिलफोर्ड का यह बुद्धि संरचना सिद्धान्त त्रि-पक्षिय बौद्धिक मॉडल कहलाता है। उन्होंने बुद्धि कारकों को तीन श्रेणियों में बांटा है। अर्थात् मानसिक योग्यताओं को तीन विमाओं में बांटा है।
ये हैं- संक्रिया, विषय-वस्तु तथा उत्पादन ।
कारक विश्लेषण के द्वारा बुद्धि की ये तीनों विमाएं पर्याप्त रूप से भिन्न हैं। इन विमाओं में मानसिक योग्यताओं के जो-जो कारक आते हैं वे इस प्रकार हैं -
विषय वस्तु - इस विमा में बुद्धि के जो विशेष कारक हैं वे विषय वस्तु के होते हैं। जैसे- आकृतिक सांकेतिक, शाब्दिक तथा व्यावहारिक।
आकृतिक विषय वस्तु को दृष्टि द्वारा ही देखा जा सकता है तथा ये आकार और रंग-रूप के द्वारा निर्मित होती है।
सांकेतिक विषय-वस्तु में संकेत, अंक तथा शब्द होते है जो विशेष पद्धति के रूप में व्यवस्थित होते हैं।
शाब्दिक विषय-वस्तु में शब्दों का अर्थ या विचार होते हैं।
व्यावहारिक विषय-वस्तु में व्यवहार संबंधी विषय निहित होते हैं।
उत्पादन - ये छह प्रकार के माने गए हैं -
(1) इकाइयां (2) वर्ग (3) सम्बंध (4)पद्धतियां (5)स्थानान्तरण तथा (6)अपादान।
संक्रिया - इस विमा में मानसिक योग्यताओं के पांच मुख्य समूह माने हैं।
1. संज्ञान 2. मूल्यांकन 3. अभिसारी चिंतन 4. अपसारी चिंतन
9. कैटल का बुद्धि सिद्धान्त -
प्रतिपादक-रेमण्ड वी. केटल
कब दिया सिद्धान्त- 1971
क्या कहता है सिद्धान्त- कैटल ने दो प्रकार की सामान्य बुद्धि का वर्णन किया है। ये हैं -फ्लूड तथा क्रिस्टेलाईज्ड
उनके अनुसार बुद्धि की फ्लूड सामान्य योग्यता वंशानुक्रम कारकों पर निर्भर करती है जबकि क्रिस्टलाईज्ड योग्यता अर्जित कारकों के रूप में होती है। फ्लूड सामान्य योग्यता मुख्य रूप से संस्कृति युक्त, गति-स्थितियों तथा नई स्थितियों के अनुकूलता वाले परीक्षणों में पाई जाती है।
क्रिस्टेलाईज्ड सामान्य योग्यता अर्जित सांस्कृतिक उपलब्धियों, कौशलताओं तथा नई स्थिति से सम्बंधित वाले परीक्षणों में एक कारक के रूप में मापी जाती है। फ्लूड सामान्य योग्यता (GF) को शरीर की वंशानुक्रम विभक्ता के रूप में लिया जा सकता है। जो जैव रासायनिक प्रतिक्रियाओं द्वारा संचालित होती है। जबकि क्रिस्टेलाईज्ड सामान्य योग्यता (GC) सामाजिक अधिगम एवं पर्यावरण प्रभावों से संचालित होती है। केटल के अनुसार फ्लुड सामान्य बुद्धि वंशानुक्रम से सम्बंिधत है तथा जन्मजात होती है जबकि क्रिस्टेलाईज्ड सामान्य बुद्धि अर्जित है।
( Measurement of Intelligence ) बुद्धि का मापन:-
प्राचीन काल मे ज्ञान के आधार पर बुद्धि की परीक्षा की जाती थी। वर्तमान काल में बुुद्धि को एक स्वाभाविक तथा जन्मजात शक्ति मानकर उसकी परीक्षा की जाती थी। 1819 में वुन्ट ने मनोविज्ञान की प्रथम प्रयोगशाला स्थापित की। तभी से वैज्ञानिक आधार पर बुद्धि परीक्षणों का निर्माण किया गया।1905 में एलफ्रेड बिने ने बुद्धि परीक्षणों के सम्बन्ध मे सबसे पहला तथा ठोस कदम उठाते हुये ‘बिने साइमन मानदण्ड’ बनाया। 1908 में इसमें संशोधन किया तथा 1916 में एल एम टरमैन ने स्टैनफोर्ड बिने साइमन बुद्धि परीक्षण बनाया। जिसमे बुद्धि लब्धि की अवधारणा रखी गयी। इसके बाद मे अनेक बुद्धि परीक्षणों का निर्माण हुआ।
बुद्धि परीक्षणो को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा जा सकता है।
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बुद्धि परीक्षणों का वर्गीकरण-
1, 2. शाब्दिक बुद्धि परीक्षण-वैयक्तिक और सामूहिक
3,4. अशाब्दिक बुद्धि परीक्षण- वैयक्तिक और सामूहिक
5. क्रियात्मक बुद्धि परीक्षण
BaalVikasAurManovigyan
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