यह टटलू कटवाने का सीजन है, पर मानने का नहीं कि हमारा टटलू कट गया है।
शीर्षक पढकर बडा अजीब लगा होगा। लेकिन सोचने पर मजबूर भी हुए होंगे कि #टटलू क्या बला है। @मेवात में नकली सोने की ईंटों के नाम पर बडे पैमाने पर ठगी होती है। ठगी की इस प्रक्रिया को टटलू काटना कहते हैं, और जो ठगा जाता है उसके बारे में कहा जाता है कि इसका तो टटलू कट गया। जो ठग होते है, उन्हें टटलू बाज कहते हैं। यानि शुद्ध तौर पर बेवकूफ बना आपके जेब से पैसे निकालने की प्रक्रिया टटलूगिरी कहलाती है। यह सब कैसे होता है।
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दरअसल पूरे भारतवर्ष में अक्टूबर माह से खरीददारी का सीजन शुरू हो जाता है। सितम्बर से दिसम्बर तक नवरात्रा, दशहरा, दिवाली त्योहार आते हैं और फिर कुछ विश्राम काल के बाद ही अंग्रेजी नया साल आ जाता है। इसलिए यह पूरा सीजन सेल, खरीदी और टटलू काटने का सीजन कहलाता है। अमेजन, फ्लिपकार्ट, स्नेपडील, डीलशेयर, इंडियामार्ट, शॉपसी ऐसे बहुत से ऑनलाइन और ऑफलाइन प्लेटफार्म हैं जहां टटलू काटने का धंधा एक नंबर में किया जाता है। लेकिन हम यह मानने को तैयार नहीं हो सकते कि हमारा टटलू कट गया है। कुछ उदाहरण देकर समझाता हूं। समझ गए तो ठीक है, नहीं तो तैयार रहिये अपना टटलू कटवाने के लिए।
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दरअसल यह सीजन खरीददारी का है। यानि मार्केटिंग का। माकेर्टिंग के बारे में कहा गया है कि जो गंजे को कंघा बेच दे उसे ही सही मायने में माकेर्टिंग कहते हैं। प्रबंधन गुरू ऐसे अनेक नुस्खे बताते हैं जिनकी बदौलत सेल को कई गुना बढाया जा सकता है। इन लोगों को जरूरत से केवल इतना मतलब होता है कि जरूरत नहीं होते हुए भी जरूरत पैदा की जाए, इसके लिए ऑफर्स, मीडिया, विज्ञापन, इमेज बिल्डिंग और बर्स्टिंग जैसे तरीकों को अपनाया जाता है।
पहली बात चौपहिया वाहनों की करते हैं। मार्केट में इस बार उछाल की बात जोरों पर है। यानि इस बार सीजन में चौपहिया वाहन बहुत अधिक बिकने की उम्मीद की जा रही है। हो सकता है आप भी वाहन लेने की दौड में शामिल हों। इससे पहले कुछ चीजें देख लेना। पहली तो यह कि, क्या आपको वाकई चौपहिया वाहन की जरूरत है। दूसरा, क्या आपके पास इतना पैसा है कि आप बिना लोन या ब्याज पर पैसा लिए लिए वाहन खरीद सकें। तीसरा क्या आपके पास इतना बडा घर है जहां आप अपने वाहन को अंदर सुरक्षित खडा कर सकें। क्योंकि इसके बिना आप अपनी गलती के लिए पुलिस-प्रशासन को जिम्मेदार ठहराते नजर आएंगे। अगर आप इन सब बातों को नजरअंदाज करते हुए वाहन खरीदते हैं तो आप कतई नहीं मानेंगे कि आपका टटलू कट चुका है।
दूसरी बात कपडों की करते हैं। गारमेंट इंडस्ट्री। इस उद्योग में एक के साथ एक जोडी फ्री, एक के साथ 3 जोडी फ्री जैसे ऑफर बहुत चल रहे हैं। देखना यह है कि इनके रेट क्या हैं। या जो रेट एक जोडे का रखा गया है उस रेट में कितने जोडे आ सकते हैं। और समझने की बात, कि हमें कितने जोडी की जरूरत है। अगर आप इन सब का ध्यान नहीं रखते हैं और ब्रांड की अंधी दौड में शामिल हैं तो आप कभी नहीं मानेंगे कि आपका टटलू कट चुका है।
तीसरी बात होम डेकोर की करते हैं। घरों और किचन को अंदर से इंटीरियर करने का चलन जोरों पर है। दीवारों पर वाल पेपर्स, बडे और भारी सोफे, इसी तरह के बैड, वार्ड रौब, साइड रौब, कार्नर रौब, कालीन, सेंटर टेबल आदि भरने को सभ्यता की निशानी समझा जाता है। फिर हम घरों में जगह ढूढते हैं। बाजार ऐसी चीजों से अटा पडा है। एक बार तो लगता है कि सभी चीजें घर में जरूरी हैं, लेकिन कभी गौर करें, कि क्या वाकई हमारी जरूरत का सामान यह है या फिर खुले, सूर्य की रोशनी से रोशन होने वाले अच्छे वेंटीलेशन वाले हवादार कमरे हमारी जरूरत हैं। ये केवल कुछ उदाहरण हैं। समझने की जरूरत यह है कि आपदा को अवसर में बदलने का जुमला देने वालों ने ऐसे समाज और जरूरतें पैदा कर दी हैं, जिनकी जरूरत हमें कभी नहीं रही, न होगी। अगर आपको ऐसा महसूस होता है कि इन सबके बिना स्वस्थ, सुंदर, जीवन संभव नहीं तो आप कभी नहीं मानेंगे कि आपका टटलू कट चुका है।
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