True Stories | विचार अमर हैं, क्या यह सच है ?
- एक घटनाक्रम
उपर लिखा शीर्षक क्या शत प्रतिशत सही है। मुझे इस बारे में आपकी राय की जरूरत है। लेकिन आप राय दें इससे पहले एक उदाहरण देकर अपनी राय आपसे जरूर शेयर करना चाहूंगा।
आज सुबह की बात है। रेलवे स्टेशन पर एक बुजुर्ग अपने एक हाथ से कुत्ते के अगले दोनों पांव पकड कर घसीट रहे थे। उन्होंने कुत्ते को करीब 50 फीट तक घसीटना जारी रखा। इस बीच सामने दूसरे प्लेटफार्म पर मुझ जैसे हजारों लोग खडे थे, जिनके मन में बुजुर्ग और कुत्ते दोनों के प्रति अनेक विचार चलते रहे।
पास खडे साथी ने ध्यान दिलाया, देखो इस उम्र में बूढा क्या कर रहा है। दूसरे ने कहा कि इस बूढे को ऐसा घसीटें तब पता चले ! आदि-आदि। इस बीच मेरा ध्यान गया कि कुत्ता चाहता तो काट सकता था, लेकिन उसने काटने की कोशिश नहीं की।
यह देख मैने पूरा ध्यान कुत्ते पर फोकस किया, लेकिन दूरी होने और लगातार मूवमेंट के कारण अलग से कुछ ठीक से दिखाई नहीं दिया। इसी बीच बूढा व्यक्ति कुत्ते को लेकर वेंडिग स्टाल तक जा पहुंचा। यहां उसने कुत्ते को पकडे रखा और एक हाथ से स्टाल का नीचे से छोटा दरवाजा खोला।
दरवाजा खोलकर बूढे व्यक्ति ने एक बोतल निकाली जिसमें सरसों के तेल जैसा कोई तरल था। इस बीच उसने वहीं अन्य वेंडर को सहायता के लिए पुकारा और यह बोतल उसके हाथ में दे दी।
मैने गोर से देखा कुत्ते की गर्दन पर घाव था और उसमें से खून रिस रहा था। दोनों ने मिलकर वह तरल जिसमें शायद कोई एंटीसेप्टिक तरल था, कुत्ते की गर्दन पर डाल दिया। कुत्ता जोर से चिल्लाया तो सही, लेकिन उसने फिर भी काटने की कोशिश नहीं की। न ही बूढे व्यक्ति की आंखों में कुत्ते के काटने का डर था। तभी तो वो इतनी दूर उसे घसीट लाया था।
खैर दोनों ने वह तरल कुत्ते के घाव पर डाल उसे छोड दिया। कुत्ता चला गया।
इस बीच सभी लोगों के विचार बदल चुके थे। लोग समझ गए थे कि यह बूढा व्यक्ति कोई पशु प्रेमी है। किसी ने कहा बडा दयालू है। किसी ने कुछ, किसी ने कुछ।
लेकिन 10 मिनट के इस घटनाक्रम में हजारों व्यक्तियों के मन में लाखों विचार आए और गए होंगे। अंतिम विचार स्थायी रहा होगा, लेकिन अलग-अलग। जिसने जितनी घटना देखी उस हिसाब से उनके मन में विचार स्थायी हुआ होगा। जिसने अंत तक यह घटनाक्रम देखा उसके मन में उस हिसाब से विचार ने स्थायी रूप लिया होगा।
अब फिर से शीर्षक पर आते हैं। पूरा घटनाक्रम पढते हुए आपके मन में कितने विचारों ने जन्म लिया। इसका आंकलन करें और यह जरूर जानने की कोशिश करें कि विचारों के बनने और बिगडने के पीछे कारण क्या रहा ?
हो सकता है धैर्य रखने से विचार बदल जाते हों !
लेकिन मुझे जो इस घटनाक्रम से सीखने को मिला वह यह था कि राय बनाने से पहले धैर्य, परिस्थितियां और मस्तिष्क पर नियंत्रण जरूरी है।
- नीतेश सोनी
No comments:
Post a Comment