True Story: A Phone Destroyed This Woman's Life | सच्ची कहानी: एक फोन ने तबाह की इस महिला की जिंदगी
कुछ घटनाएं वास्तव में जिंदगी बदल देती हैं। जरूरत है इनसे सबक सीखने की, लेकिन हम इन्हें इग्नोर या उपेक्षित कर आगे बढ जाते हैं। आज ऐसी ही एक सच्ची घटना आपके सामने रख रहा हूं। जैसा कि आप सभी को विदित है मैं शुरू से ही लाइव स्टोरीज में विश्वास रखता हूं और वही आप सभी के सामने भी प्रस्तुत करता हूं। यानि सच्ची और समक्ष घटी घटनाओं पर आधारित कहानियां। यह कहानी है 2022 के मई 24 की। कैसे एक फोन ने एक परिवार की जिंदगी तबाह कर दी या यह भी कह सकते हैं कि एक परिवार को बीस साल पीछे धकेल दिया।
उस दिन मैं भी टेªन में सफर कर रहा था। मेरे सामने वाली सीट पर एक महिला पूरी सीट घेरकर बैठी कुरकुरे खा रही थी। मेरे आग्रह करने पर वह सिमट गई और उसने मेरे साथी मित्र को जगह दे दी। खैर हमारा दौसा से अलवर तक का सफर शुरू हुआ। वह अपने में मस्त थी। कुरकुरे और मोबाइल के साथ। मोबाइल के बिना तो आज हम पानी भी नहीं पीते। लेकिन यह मोबाइल ही इस महिला का जीवन बदल गया। बांदीकुई स्टेशन आया तो महिला को प्यास लगी और वह पानी लेने नीचे स्टेशन पर नीचे उतर गई। टेªन के रवाना होने से पहले पानी से भरी आधी बोतल साथ ले आई और सीट पर आकर बैठ गई।
तभी उस महिला के फोन की घंटी बजी, जो कि एक सामान्य प्रक्रिया है। किसी ने ध्यान नहीं दिया। लेकिन जैसे कुछ सैकंड गुजरे मेरा ध्यान महिला की बातों पर गया जो कि वह अपनी गुडिया से कर रही थी। यानि उनकी बेटी का फोन था, जिसका नाम गुडिया हो सकता है। क्योंकि यह नाम मैने उसके मुंह से ही उस वक्त सुना था। उधर से क्या बात हुई नहीं पता, लेकिन फोन से इतना समझ गया कि कुछ अनहोनी हो गई है। महिला बातें करते-करते कांपने लगी, उसके होंठ कंपकंपाने लगे, गला सूख गया और हाथ इतनी तेजी से धूज रहे थे कि बर्फबारी में भी किसी के धूजते मैने नहीं देखे। माजरा समझते हुए मैने पूछा बहनजी क्या हुआ। वो कुछ बता पाती इससे पहले बेहोश हो गई।
महिला होने के नाते मैं उसे हाथ नहीं लगा सका, लेकिन पास बैठी दो महिलाओं को मैने उनके हाथ और पैरों की मालिश करने को कहा तो भली महिलाएं मान गई। बाकी लोग तब तक सीट छोड चुके थे। महिला को लिटाया गया और दोनों महिलाएं उसके हाथ और पैर मसलने लगी। ये दोनों महिलाएं बांदीकुई से ही टेªन में चढी थी और शायद परिवार सहित मेहंदीपुर बालाजी के दर्शन को परिवार सहित आई थी। इनके परिजन उपर वाली बर्थ पर बैठे थे और पूरी निगाह बनाए हुए थे। फिर मैने उन्हें कहा कि महिला के मुंह पर पानी छिडकें ताकि इन्हें होश आ जाए। पानी छिडका तो महिला को होश आ गया। होश आते ही इस महिला ने फिर से मोबाइल ढूंढा जो कि वहीं सीट पर था। मैने ढूंढकर उनके हाथ में मोबाइल दे दिया। उन्होंने तेजी से फोन मिलाया। इस बार उन्होंने अपनी मां को फोन मिलाया और बताया कि गुडिया के पापा की तबीयत बहुत खराब हो गई है। वे तुरंत घरा पहुंचें। इसके बाद महिला ने अपने देवर को फोन मिलाया और तुरंत घर पहुंचने को कहा। यह वार्तालाप सिंधी भाषा में था तो मैं समझ गया कि शायद महिला सिंधी समाज से है।
अलवर जिले के खैरथल कस्बे में सिंधियों की संख्या बहुतायत में हैं और यह वह समाज है जो कभी न तो नौकरी की भीख मांगता है न आरक्षण। अपने बूते पर खैरथल कस्बे को इस समाज ने प्रमुख व्यापारिक और कर देने वाला कस्बा बना दिया है। खैरथल और सिंधी समाज दोनों आज एक दूसरे के पूरक बन चुके हैं। अपने देवर को फोन करते-करते महिला फिर से बेहोश हो गई। इस बीच राजगढ आ गया। मैंने अपने साथी को तुरंत नीचे उतर आरपीएफ के जवान या टीटी को बुलाने को कहा। इतने में स्थानीय युवक भी सक्रिय हो चुके थे। जिससे जो बन पड रहा था वह वो कर रहा था। राजगढ में आरपीएफ का जवान चढा और उसने अलवर स्टेशन पर रेलवे के डॉक्टर को फोन पर सूचित किया।
इस बीच मैने दूसरी महिला को कहा कि वह बेहोश महिला के अंगूठे से उसके फोन का लॉक खोले और डायल नंबर पर फोन कर पूरे मामले का पता करे। महिला ने वैसा ही किया। लेकिन दूसरी तरफ से जो समाचार सुना वह वास्तव में दिल दहलाने वाला था। बेहोश महिला की उम्र अंदाजे से 35 साल के करीब होेगी। फोन से पता चला कि महिला के पति की अचानक मृत्यु हो चुकी है। सुन कर सन्न रह गया। सोच में पड गया कि बांदीकुई से खैरथल का सवा घंटे के करीब का सफर यह कैसे काटेगी, क्योंकि साथ में उसके कोई नहीं था। लेकिन इस घटना में जब देखा कि जो दो अनजान महिलाएं मेरे कहने पर उसके हाथ-पैरों की मालिश कर रही थी, उनमें से एक बुरी तरह बिना आवाज के रोने लगी। वह बेहोश महिला के दुःख से शायद आत्मसात हो गई थी। एक सेकंड का कॉल महिला की जिंदगी तबाह कर चुका था। उसके परिवार को 20 साल पीछे धकेल चुका था, क्योंकि महिला की उम्र देखकर लगा रहा था कि उसके बच्चे अभी 4-5 साल के होंगे। संभलने में बीस साल लग जाएंगे।
ऐसे अनगिनत परिवार हैं जो समय व नियती के वशीभूत कालिमा में धकेल दिए जाते हैं। दोष किसी का नहीं होता, लेकिन यह पता जरूर चलता है कि आत्मीकरण इतना बढा ढांढस है जो किसी अनजान से भी मिल जाए तो दुःख को हल्का किया जा सकता है। खैर अलवर आते-आते स्टेशन पर दो टीटीई और आरपीएफ के दो जवान महिला को अटेंड करने आ चुके थे। सारा मामला उन्हें समझाने के बाद मैं स्टेशन पर यह सोचते-सोचते उतर गया कि कैसे एक कॉल ने इस महिला की जिंदगी ऐसे मोड पर लाकर छोड दी, जहां से रास्ते सूझना बहुत मुश्किल होता है।
कहानी पसंद आई तो दोस्तों हमें फॉलो जरूर करें ताकि आपको इस तरह की जिंदगी के सबक सिखाती लाइव स्टोरीज पढने के लिए मिलती रहें।
No comments:
Post a Comment