Major Dynasties Of Rajasthan | History Of Rajasthan | राजस्थान का इतिहास | - NEWS SAPATA

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Monday, August 23, 2021

Major Dynasties Of Rajasthan | History Of Rajasthan | राजस्थान का इतिहास |

राजस्थान का इतिहास | प्रमुख राजवंश | Major Dynasties Of Rajasthan |

राजस्थान का इतिहास | प्रमुख राजवंश | Major Dynasties Of Rajasthan |

 ’’राजस्थान में कोई छोटी से छोटी रियासत भी ऐसी नहीं है जहॉं थर्मोपोली जैसी रणस्थली न हो और शायद ही ऐसा कोई नगर है जिसमें लियोनिडास जैसा वीरयोद्वा न जन्मा हो।’’

                        - एनाल्स एण्ड एण्टीक्यूटीज ऑफ राजस्थान (कर्नल जेम्स टॉड)


इतिहास, परम्परा, पुरातत्व, चिंतन, मनन, अपराजेय, अस्मिता, अप्रतिम कला और सांस्कृतिक सम्पदा का महादेश है राजस्थान। शौर्य गाथाओं, पराक्रम कथाओं, लोकधर्मों, कलाओं की विराट विरासत को समेटे हुए राजस्थान ही एक ऐसा प्रदेश है जो सदियों से तपस्वी, मनस्वी की तरह रेत की चादर ओढे निःस्वार्थ भाव से भारतभूमि को अपना सब कुछ देता ही रहा है। भारत में राजस्थान ही अकेला प्रदेश है जिसने हमेशा आहुति दी है और अपने संताप को सहा है। लेकिन अपने बलिदानों का कभी प्रतिदान नहीं मांगा। इस प्रकार राजस्थान का गौरवपूर्ण इतिहास वीरता और पराक्रम के लिए विख्यात रहा है। जिसने भी राजस्थान के इतिहास का अध्ययन किया वह इस वीर प्रसविनी धरा को नमन किये बिना नहीं रह सका।

Major Dynasties Of Rajasthan | History Of Rajasthan |  राजस्थान का इतिहास |

 

स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व, राजस्थान एक भौगोलिक इकाई के रूप में था, जिसमें अजमेर ( मेरवाडा ) के अलावा सारी रियासतें व तीन ठिकाने थे। जिन पर राजा-महाराजाओं का शासन था। इन रियासतों के राजा-महाराजा लगभग 1818 की सन्धियों के अंतर्गत अंग्रेजो के अधीन हो गए। इस समय इस क्षेत्र को ’रायथान,’ ’राजवाडा’ तथा ’राजपूताना’ आदि नामों से सम्बोधित किया जाता था।


1800 ई. में जॉर्ज थॉमस द्वारा राजपूताना नाम से उल्लिखित यह प्रदेश सदैव वीरता, शौर्य, त्याग व बलिदान का प्रतीक माना गया है। कर्नल जेम्स टॉड ने राजपूताना का इतिहास लिखते समय इसे राजस्थान शब्द की प्रदेशवाची संज्ञा (1829) दी, कालान्तर में यह शब्द राजस्थान की पहचान बन गया।

Major Dynasties Of Rajasthan | History Of Rajasthan |  राजस्थान का इतिहास |

 

Janpad Yuga | जनपद युग

राजस्थान में जनपद युग ईसा पूर्व 300 से ईसा पूर्व 200 तक रहा। यूनानी आक्रमण के समय पंजाब की मालव जाति ने जयपुर के निकट बागरछल एवं शिवि ने नगरी (चित्तौडगढ) को अपना केन्द्र बनाया। इनके अलावा शाल्वों ने अलवर एवं राजन्य ने भरतपुर में अपने जनपद स्थापित किये। तत्कालीन राजस्थान में स्थित प्रमुख जनपद निम्नांकित हैं -
 

मत्स्य जनपद:  इसकी राजधानी विराटनगर थी। वर्तमान जयपुर, अलवर का क्षेत्र इस जनपद में सम्मिलित था।


कुरू जनपद: इस जनपद की राजधानी मथुरा थी। इसका क्षेत्र वर्तमान पूर्वी अलवर, धौलपुर, भरतपुर तथा करौली था।



Major Dynasties Of Rajasthan | History Of Rajasthan |  राजस्थान का इतिहास |

Moryas | मौर्य युग

राजस्थान में मौर्य युग के प्रमाण बैराठ, जिसे प्राचीन विराटनगर कहा जता है, के भाब्रू गॉंव में एक लघु शिलालेख के रूप में प्राप्त हुआ है। मौर्य काल में राजस्थान, गुजरात, सिंध व कोंकण को अपर जनपद कहते थे। कणसव गॉंव (कोटा) से प्राप्त शिलालेखों से पता चलता है कि वहॉं मौर्य वंशज धवल का राज्य था। राजस्थान में बैराठ नगरी नलियासर में यूनानी राजाओं के सिक्के प्राप्त हुए हैं। यूनानी आक्रमण के समय राजस्थान में शिवि जनपद था, जिसकी राजधानी माध्यमिका थी। जिसका प्रमाण पाणिनी कृत ’अष्टाध्यायी’ से प्राप्त होता है।

Gupt Kaal | गुप्तकाल

गुप्त शासक समुद्रगुप्त ने 351 ई. में दक्षिणी राजस्थान के क्षत्रप वंश के शासक रूद्रदामा-द्वितीय को परास्त कर दक्षिणी राजस्थान को अपने साम्राज्य में मिला लिया। गुप्त शासक विक्रमादित्य ने महाक्षत्रप रूद्रसिंह को मारकर समूचे उत्तर भारत पर अपना स्वामित्व स्थापित कर लिया था। हूण राजा तोरमाण ने 503 ई. में पतनशील गुप्त साम्राज्य से राजस्थान छीनकर अपना पूर्ण आधिपत्य कर लिया।

Vardhan Vansh | वर्धन काल

सातवीं सदी के प्रारम्भ में हूणों के बाद राज्य पर गुर्जरों का साम्रात्य स्थापित हो गया। इनकी राजधानी भीनमाल थी। प्रभाकर वर्धन ने गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य, जिसका विस्तार दक्षिणी व पश्चिमी राजस्थान तक था, को समाप्त कर वर्धन वंश की स्थापना की। इसके पुत्र हर्षवर्धन ने राजस्थान के अधिकांश भाग पर अधिकार कर लिया। इसके शासनकाल में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भीनमाल (जालोर) नामक स्थान की यात्रा की। हर्ष के काल में राजपूताना चार भागों में विभक्त था ( गुर्जर, बघारी, बैराठ तथा मथुरा)। हर्ष काल के प्रान्तीय अधिकारी ’रायथन’ कहलाते थे।

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प्रमुख राजवंश

(Major Dynasties)


राजस्थान के पौराणिक राजवंश -

सूर्यवंशी -

 पुराणों के अनुसार सूर्यपुत्र (वैवस्वत) मनु मानव जाति के आदि राजा थे। मनु पुत्रों में इक्ष्वाकू सर्वाधिक प्रसिद्व हुआ, जिसने अयोध्या पर शासन किया। महाभारत युद्व के समय इस वंश में बृहद्बल शासन कर रहा था जो अभिमन्यु के हाथों मारा गया था। जयपुर का कच्छवाहा वंश अपने आपको रामचन्द्र की 32 वीं पीढी के शासक बताते हैं। कुछ अन्य राजपूत शाखाएं मनु के विभिन्न पुत्रों से अपना क्रमशः वंशक्रम जोडती हैं और अपने आपको सूर्यवंशी घोषित करती हैं। जैसे गुर्जर-प्रतिहार, चौहान, राठौड, गुहिल, कच्छवाहा आदि अपने आपको सूर्यवंश से जोडते हैं।


चन्द्रवंशी: 

चन्द्रवंशी क्षत्रियों में पुरूरवा के बाद आयु, नहूष, ययाति ने शासन किया। ययाति के देवयानी और शार्मिष्ठा से पॉंच पुत्र हुए। यदु, तुर्वस, दू्रहा्रु, अनु और पुरू। पुरू से पौरव वंश चला, जिसकी राजधानी हस्तिनापुर नगर बना। पौरव वंश में दुष्यन्त, भरत, कुरू, प्रदीप, शान्तनु आदि प्रसिद्व नरेश हुए। भरत के नाम पर इस देश नाम ’भारत’ पडा। शान्तनु के पुत्र देवव्रत ( भीष्म ) विचित्रवीर्य और चित्रांगद थे और पौत्र धृतराष्ट्र तथा पाण्डू थे। धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव तथा पाण्डवों के युद्ध में पांडवों की विजय हुई और युधिष्ठर हस्तिनापुर का राजा बना। उसका उत्तराधिकारी अर्जुन का पौत्र एवं अभिमन्यु का पुत्र परीक्षित बना। पुराणों में कलयुग का प्रारंभ स्थूलतः महाभारत युद्व से माना गया है। परीक्षित का पुत्र जनमेजय अपनी तक्षशिला विजय एवं सर्पसत्र में वैशम्पायन द्वारा किये गये व्यास-रचित महाभारत पाठ के कारण प्रसिद्व हुए। राजस्थान के जैसलमेर के भाटी अपने आपको चन्द्रवंशी क्षत्रिय मानते हैं।

यादववंशी या यदुवंशी - 

ययाति के पुत्र यदु के पुत्र क्रोष्टु के वंशज यादव कहलाये और क्रोष्टु के भाई सहस्त्रजित के वंशज हैहय कहलाये। कालान्तर में यादवों की विदर्भ और सात्वत शाखाएं हो गयी। विदर्भों से चैद्य तथा सात्वतों से अन्धक और वृष्णि शाखाएं फूटी। ’महाभारत’ के प्रधान पात्र कृष्ण-वासुदेव वृष्णि शाखा में उत्पन्न हुए थे। हैहयों का बलशाली नरेश कीर्तवीर्य सहस्त्रार्जुन हुआ। सहस्त्रार्जुन की भार्गव ऋषि जमदग्नि के पुत्र परशुराम से प्रतिद्वन्दिता चली और अन्त में परशुराम ने न केवल, सहस्त्रार्जुन का वध किया वरन् परम्परानुसार पृथवी को इक्कीस बार क्षत्रीय विहीन भी किया। राजस्थान में करौली का राजवंश अपने आपको यादवों की शाखा से जोडता है।

राजस्थान के प्रमुख सभ्यताएं यहां से पढ़ें 

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अग्निवंशी -

 एक जनश्रुति के अनुसार जब परशुराम ने क्षत्रियों का विनाश कर दिया तब समाज में अव्यवस्था फैल गयी तथा लोग कर्तव्यभ्रष्ट हो गये। इससे देवता बडे दुखी हुए और आबू पर्वत पर एक विशाल अग्निकुण्ड से गुरू वशिष्ठ एवं विश्वमित्र ने चार योद्वाओं ( गुर्जर-प्रतिहार ) चौलुक्य ( सोलंकी ), चाहमान (चौहान) तथा परमार उत्पन्न किये।

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