UP Lecturer Sanskrit PDF Nots Kavya prakash |
काव्य प्रकाश | काव्य लक्षण | काव्य प्रयोजन | काव्य हेतु | काव्य भेद
काव्य लक्षण:-
तददोषौ शब्दार्थौ सगुणावनलंकृति पुनः क्वपि -मम्मट
रीतिरात्मा काव्यस्य -वामन
ध्वनिरात्मा काव्यस्य-आनन्दवर्धन
अदोषं गुणवद्काव्यम् अलंकारैरसंकृतम्-भोज
शब्दार्थौ सहितौ काव्यम्-भामह
Vedang | वेदांग यहां से पढ़ें
रमणीयार्थप्रतिपादकः शब्दः काव्यम् - जगन्नाथ (इनके अनुसार केवल शब्द में ही काव्य रहता हैं )
मम्मट ही ऐसे प्रथम लक्षणकार हैं जिन्होंने काव्य में गुणदोष का प्रश्न प्रस्तुत किया है।
यः कौमारहर....................अस्फुटालंकार का उदाहरण है
काव्य प्रयोजन:-
काव्यं यशसेेर्थकृते व्यवहारविदे शिवेतरक्षतये ।
सद्य परनिवृत्तये कान्तासम्मिततयोपदेशयुजे ।। -मम्मट
शब्द शक्ति | रस स्वरूप | विभाव | अनुभाव | व्याभिचारी भाव यहां से पढ़ें
यश -कालिदासादिनामिव यशः
अर्थ - श्रीहर्षादेर्घावकादीनामिव धनम्।
व्यवहार ज्ञान - राजादिगतोचिताचारपरिज्ञानम।
अनिष्ट का निवारण - आदित्यादेर्मयूरादीनाभिवानर्थ निवारणम्।
आनंद प्राप्ति- सकल प्रयोजन मौलिभूतं।
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उपदेश - तीन बताए गए हैं।
प्रभु सम्मित - राजाज्ञा, वेदाज्ञा आदि। इनका शब्दशः पालन किया जाता है।
सुहृत सम्मित - इतिहासपुराणादि (अर्थप्रधान होते हैं )
कान्ता सम्मित - काव्य शैली ।
धर्मार्थकाममोक्षाणां वैचक्षण्यं कलासु च।करोति कीर्तिं प्रीतिं च साधुकाव्यनिबन्धनम्।। -भामह
सहृदयमनः प्रीतये तत्स्वरूपम् । -आनन्दवर्धन
-ः काव्य हेतु:-
शक्तिर्निपुणता लोकशास्त्रकाव्याद्यवेक्षणात्।
काव्यज्ञाशिक्षयाभ्यास इति हेतुस्तदुद्भवे।।
शक्ति:- शक्ति कवित्वबीजरूपः संस्कारविशेषः यां विना काव्यं न प्रसरेत, प्रसृतं वा उपहसनीयं स्यात।
निपुणता:- व्युत्पत्ति । -यह व्युत्पत्ति लोक, शास्त्र, काव्य के अवेक्षण से आती है।
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अभ्यास:- गुरू के उपदेशानुसार स्वयं श्लोकादि की रचना करना।
तीनों समष्टि ( साथ-साथ ) ही काव्य हैं। अलग-अलग नहीं। - हेतुर्नतुहेवतः
-ः काव्य भेद:-
मम्टानुसार काव्य के तीन भेद कहे गए हैं:- उत्तम, मध्यम और अधम।
-उत्तम काव्य:- इदमुत्तममतिशयिनि व्यंग्ये वाच्याद् ध्वनिर्बुधैःकथितः। अर्थात वाच्यार्थ की अपेक्षा व्यंगार्थ के अधिक चम्तकारयुक्त होने पर काव्य उत्तम काव्य होता है।
यहां बुधै का अर्थ वैयाकरण और स्फोट का अर्थ ध्वनि से लेना चाहिए।
उदाहरण - निशेषच्युत चंन्दनं स्तनतटं............
मध्यम काव्य:- अतादृशि गुणीभूतव्यंग्य व्यंग्ये तु मध्ययम। अर्थात जहां वाच्यार्थ अधिक चम्तकारी होता है व्यंगार्थ नहीं वह काव्य मध्यम काव्य कहलाता है।
उदाहरण - ग्राम तरूणं तरूण्या.........मुखच्छाया।।
अधम काव्य:- शब्दचित्रं वाच्यचित्रमव्यंग्यं त्ववरं स्मृतम् ।। अर्थात व्यंगार्थ रहित काव्य। यह शब्द चित्र और वाच्य चित्र दो प्रकार का होता है।
चित्रमिति गुणालंकारयुक्तम् मम्टानुसार चित्र पद का अर्थ है गुण व अलंकार से युक्त होना।
शब्द चित्र का उदाहरण - स्वच्छन्दोच्छलद..............मन्दताम्।।
अर्थचित्र का उदाहरण - विनर्गतं मानद.................मियामरावती।।
उत्तम काव्य में ध्वनि का उत्कर्ष, मध्यम काव्य में वस्तु, गुण व अलंकार का उत्कर्ष होता है। जहां ध्वनि की स्फुटता नहीं हो केवल गुण, अलंकार में से केवल एक की प्रधानता हो वहां अधम काव्य होता है।
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