UP Lecturer Sanskrit Nots PDF Shabd Shakti | Ras Swaroop Vibhav | Anubhav | Vyabhicharibhav
शब्द शक्ति | रस स्वरूप | विभाव | अनुभाव | व्याभिचारी भाव
1 अभिधा - स मुख्योर्थस्तत्र मुख्यो व्यापारोेस्याभिधोच्यते। साक्षात् सांकेतित अर्थ मुख्यार्थ या वाच्यार्थ कहलात है। उसके बोधन कराने में जो शब्द का जो मुख्य व्यापार है वह अभिधा है।
2 लक्षणाः- मुख्यार्थबाधे तद्योगे रूढितो अथप्रयोजनात्।
मम्मट- अन्यो अर्थो लक्ष्यते यत् सा लाणारोपितां क्रिया।।
मम्मटानुसार मुख्यार्थ बाध, मुख्यार्थ योग, रूढी या प्रयोजन तीनों को लक्षणा का समुदित हेतु माना गया है। - मुख्यार्थबाधादित्रयं हेतुः
लक्षणा के दो उदाहरण - कर्मणि कुशलः तथा गंगायां घोषः ।
लक्षणा के भेद:- लक्षणा के 6 भेद हैं।
1 उपादान लक्षणा, 2 लक्षण लक्षणा, 3 गौणी सारोपा, 4 शुद्धा सारोपा, 5 गौणी साध्यावसाना और 6 शुद्धा साध्यावसाना।
1 उपादान लक्षणा - स्वसिद्धये पराक्षेपः -वाकय में प्रयुक्त कोई पद जब जब अपने अन्वय की सिद्धि के लिए अन्य अर्थ का आक्षेप कर ले।
जैसे - कुन्ता प्रविशन्ति। इसे अजह्तस्वार्थावृति भी कहते हैं।
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2 लक्षण लक्षणा:- ‘ परार्थ स्व समर्पणम् ‘ - जहां दूसरे पद के अन्वय की सिद्धि के लिए अपने मुख्य अर्थ का परित्याग कर दिया जाए। उदा- गंगायां घोषः । ( इसे जहस्वार्थावृत्ति या जहल्लक्षणा भी कहते हैं। )
-उपादान लक्षणा और लक्षण लक्षणा दोनों शुद्धा लक्षणा हैं। उपचार से मिश्रित न होने के कारण। ‘ उपचारेगामिश्रित्वात् ‘ ।
3 सारोपा लक्षणा:- ‘ सारोपान्या तु यत्रापेक्तौ विषयी विष्यस्तथा ‘ जहां विषयी और विषय दोनों कथित हों।
गौणी सारोपा का उदा- गौर्वाहीक ।
शुद्धा का उदा- आयुर्घतम् ।
4 साध्यावसाना लक्षणा:- जहां विषयी द्वारा विष्य रूप उपमेय का अन्तर्भाव कर लिया जाता है। ‘ विषयन्त ‘ कृते अस्मिन् सा स्यात् साध्यावसानिका ‘
गौणी साध्यवसाना -गौरयम् ।
शुद्धा साध्यावसाना - आयुरेवैदम् ।
3 व्यंजना
व्यंजना के दो भेद हैं।
1 शाब्दी व्यंजना ( अभिधामूला और लक्षणामूला )
2 आर्थी व्यंजना
अभिधामूला:-
अनेकार्थस्य शब्दस्य वाचकत्वे नियन्त्रिते।
संयोगाधैरवाच्यार्थधीकृत् व्यापृतिरन्जनम् ।।
संयोगादि के द्वारा अनेकार्थ शब्दों के वाचकत्व का किसी एक अर्थ में नियंत्रित हो जाना और उससे भिन्न अर्थ की प्रतीति कराने वाला शब्द का व्यापार अभिधामूला व्यंजना है।
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उदाहरण- सशंखचका्रेहरि, अशंखचक्रोहरि, राम-लक्ष्मणौ, रामार्जुनगतिस्तयोः, स्थाणुं भज भवच्छिदे, सर्वं जानाति देव, कुपितो मकरध्वजः, देवस्य पुरारातेः, मधुना मत्त कोकिलः, पातु वो दयितामुखम्, भव्यत्र परमेश्वरः, चित्रभानुर्विभाति, मित्रं भाति।
लक्षणामूला व्यंजना - ‘व्यंगेनरहिता रूढौ सहिता तु प्रयोजने‘
लक्षणा रूढी में व्यंग्य से रहित और प्रयोजन में व्यंग्य से सहित होती है। उदा- गंगायां घोषः ।
आर्थी व्यंजना -
वक्तृबोद्धव्य काकूनां वाक्यवाच्यान्यसन्निधे।
प्रस्तावदेशकालादेर्वैशिष्यात् प्रतिभाजुषाम्।
यो अर्थस्यान्यार्थहेर्तुव्यापारो व्यक्तिरेव सा।।
मम्मटानुसार वक्ता बोधत्य काकू आदि उपर्युक्त आदि शब्द से ग्रह्य चेष्टादि के वैशिष्य से प्रतिभावान सह्दयों को अन्यार्थ की प्रतिति कराने वाला अर्थ का व्यापार आर्थी व्यंजना कहलाता है।
वक्ता वैशिष्य उदा- अतिपृथुलं जलकुम्भं...............क्षणम्
बौधव्य वैशिष्य उदा- औन्निद्वयं दौर्बल्यं..............परिभवति।
-ः रस स्वरूप:-
स्थायी भाव रस रंग
1 रति - शृंगार
2 हास - हास्य
3 शोक - करूण
4 क्रोध - रौद्र
5 उत्साह - वीर
6 भय - भयानक
7 जुगुप्सा - विभत्स
8 विस्मय - अद्भुद्
9 निर्वेद - शांत
मम्मट ने निर्वेद को नवां स्थायीभाव और शांत रस को नवां रस माना है।
1 रस
2 भाव
3 रसाभास
4 भावाभास
5 भावोदय
6 भावसन्धि
7 भावशबलत्व
8 भावशान्ति
विभाव - रस अनुभूति के कारण। यह दो प्रकार का होता है। -आलम्बन औ उद्दीपन
अनुभाव - रसानुभूति के कार्यरूप । अनु-पश्चात् भवन्ति इति अनुभावाः।
( भरतमुनि के अनुसार आंगिक, वाचिक आदि अभिनयं)
व्याभिचारी भाव - रसों को पुष्ट कर उन्हें आस्वाद्य बनाते हैं। ये 33 हैं।
‘ विभावानुभावव्याभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्ति ‘ -भरतमुनि
-मम्मट ने रस को व्यंग्य स्वीकारते हुए असंल्लक्ष्यक्रमव्यंग्य के उदाहरण में गिना है।
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