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Tuesday, February 6, 2018

sikshan vidhiyan part-1, शिक्षण विधियां पार्ट -1

Sikshan Vidhiyan Part-1, शिक्षण विधियां पार्ट -1


Sanskrit Sikshan Vidhiyan, संस्कृत शिक्षण विधियां

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प्राचीन समय में आश्रमों में शिक्षा दी जाती थी। वह कंठस्थीकरण ओर दोहराव पर आधारित थी। इसमें गुरूजी बोलते थे और बाकी शिष्य ध्यान से सुनते थे। लेकिन आजकल शिक्षा में मनोविज्ञान का समावेश हो चुका है। इसलिए शिक्षण के क्षेत्र में अनेक विधियों को काम में लिया जाता है। यहां मैं आपको संस्कृत शिक्षण की विधियों के बारे में बताऊंगा।

संस्कृत शिक्षण विधियां

इसके तीन भाग हैं:-

1 प्राचीन
2 नवीनतम
3 नवीनतम विधि उपागम

प्राचीन विधियां

1 सूत्र विधि
2 पारायण विधि
3 पाठशाला विधि
4 वाद विवाद विधि
5 प्रश्नोत्तर विधि
6 कथा वाचन विधि
7 कथा नायक विधि
8 व्याकरण विधि
9 व्याकरण-अनुवाद विधि

नवीनतम विधियां

1 पाठ्यपुस्तक विधि
2 प्रत्यक्ष विधि
3 विश्लेषणात्मक विधि
4 हरबर्ट की पंचपदी
5 मूल्यांकन विधि
6 किंडरगार्टन विधि
7 मॉन्टेसरी विधि
8 डाल्टन विधि
9 प्रयोजना विधि

नवीनतम विधि उपागम

1 सूक्षमशिक्षण उपागम
2 आगमन उपागम
3 प्रयोजन कार्य
4 दल शिक्षण
4 अभिक्रमित अनुदेशन
5 समस्या समाधान उपागम
6 पर्यवेक्षण अध्ययन उपागम
7 संप्रेषण उपागम
8 सग्रंथन उपागम

संस्कृत शिक्षण विधियां



पाठशाला विधि:-

इसे परंपरागत विधि, पंडित प्रणाली या व्यक्तिगत शिक्षण प्रणाली भी कहते हैं। इसका प्रमुख उददेश्य है ज्ञान को ह्दयंगम करना। 
इस विधि में श्रवण, मनन और निधिध्यासान के द्वारा कंठस्थीकरण पर जोर दिया जाता है।
इस विधि की कमियां यही हैं कि यह शिक्षक आधारित है। इसमें छात्र पर ध्यान कम दिया जाता है और स्मरण व रटाने पर जोर दिया जाता है।
इस विधि में शिक्षण के चारों कौशलों में से केवल दो कौशल श्रवण और मनन यानि पठन पर ही जोर दिया जाता है।
यह मनोवैज्ञानिक विधि नहीं है।

कथा कथन विधि:- 

इस विधि का प्रमुख उद्देश्य छात्रों में आत्मविश्वास और नैतिक गुणों का विकास करना है। इस विधि में विषय वस्तु के स्पष्टीकरण और उसे रुचिकर बनाने पर जोर दिया जाता है।

भाषण विधि:-

इस विधि के माध्यम से विषय वस्तु के कठिन शब्दों को स्पष्ट किया जाता है। यह कार्य शिक्षक करता है। इसमें कथा कथन का प्रयोग भी किया जाता है।

व्याख्या विधि:-

इस विधि के माध्यम से शिक्षक छात्रों की शंकाओं का समाधान करता है। इसके लिए पदच्छेद, पदार्थोक्ति, वाक्य योजना, आक्षेप, विग्रह, समाधान आदि उपागमों का प्रयोग किया जाता है।
इस विधि का प्रमुख गुण यह है कि यह छात्रों मानसिक क्रियाशीलता बढ़ाती है।
लेकिन प्रमुख दोष यह है कि यह स्वाध्याय और अभिव्यक्ति के विकास पर जोर नहीं देती।

व्याकरण विधि:-

व्याकरण को भाषा का प्राणतत्व भी कहा जाता है। यह विधि छात्रों के लेखन और उच्चारण में शुद्धता पर जोर देती है। साथ ही शब्दकोष में वृदिध करती है। धातुरूप और शब्दरूपों का ज्ञान इसी विधि से होता है।

पारायण विधि:- 

यह विधि कंठस्थीकरण पर जोर देती है। सस्वर पाठ करना भी इसी विधि का अंग है। यही वह विधि है जो ज्ञान का संरक्षण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में करती है।

वाद विवाद विधि:- 



कंठस्थीकरण के साथ इस विधि में अवबोधन पर भी जोर दिया जाता है और इस विधि से छात्रों में स्वाध्याय की भावना का विकास होता है। यानि यह शक्ति भाव प्रकाशन शक्ति का विकास करती है।

प्रश्नोत्तर विधि:- 

यह प्राचीन विधि है और शिक्षक संकेत देता है और छात्र उसे समझकर उसका उत्तर देता है। यह चिंतन, तर्क और निरीक्षण शक्ति का विकास करती है।

सूत्र विधि:-

इस विधि का मुख्य उद्देश्य घडे में समुद्र भरना है। अर्थात कम शब्दों में अधिक बात कहना इस विधि का उद्देश्य है। इसे घटे-समुद्र पूरण विधि भी कहते हैं। इसमें छात्रों का सूत्रों का कंठस्थीकरण कराया जाता है।



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