Important questions for Sanskrit sikshan vidhiya TGT, PGT, PRT, REET, CTET, UPTET, HTET, RPSC, NET, SLAT, UPSC, UPPSC, NET, SLAT,IAS, IAS, RAS, SSC. Exams.
नवीनतम विधियां
शिक्षण विधियों के बारे में काफी कुछ मैं पार्ट 1 में बता चुका हूं। अब पार्ट 2 की ओर चलते हैं। इसमें नवीनतम विधियों की जानकारी आपको दूंगा।
पाठ्यपुस्तक विधि:-
भारत में इस विधि के समर्थक डॉ वेस्ट महोदय को माना जाता है। यह विधि मनोवैज्ञानिक है और इसमें शिक्षण सूत्रों का पूर्णरूप से अनुसरण किया जाता है। इस विधि में शब्दकोष में वृद्धि और शुद्धोच्चारण पर बल दिया जाता है।
इस विधि में दोष यह है कि छात्रों का ध्यान केवल पाठ्यपुस्तक तक ही सीमित रहता है। इसमें व्याकरण के क्रमबद्ध अध्ययन का अभाव पाया जाता है।
प्रत्यक्ष या निर्बाध विधि:-
इसे सुगम पद्धति, निर्बाध पद्धति और मातृविधि भी कहते हैं। इस विधि का प्रयोग संस्कृत शिक्षण के लिए सबसे पहले प्रो वीवी वोकील ने मुम्बई के अल्फींस्टोन नामक स्कूल में किया था। आजकल यह विधि अंग्रेजी भाषा का विदेशी भाषा के रूप में शिक्षण के लिए काम में ली जाती है और अंग्रेजी भाषा में पाठ्यपुस्तक विधि का स्थान ले चुकी है।
व्याकरण अनुवाद विधि:-
यह विधि 1835 में लार्ड मैकाले द्वारा विकसित शिक्षा पद्धति का ही रूप है। इसे भंडारकर विधि भी कहते हैं। क्योंकि इस विधि पर डॉ रामकृष्ण गोपाल भंडारकर ने दो पुस्तकें लिखी हैं।
1 मार्गोपदेशिका
2 संस्कृत मन्दिरान्त
इस विधि पर वामन शिवरामाप्टे ने भी एक पुस्तक लिखी जिसका नाम The Student is gfuide to Samskrit Composition है।
इस विधि में संस्कृत भाषा का वर्गीकरण कर उस वर्गीकरण का सरलीकरण पर जोर देती है। इस विधि के माध्यम से कंठस्थीकरण की अपेक्षा बोध शक्ति को जाग्रत करने और अभ्यास पर बल दिया जाता है।
इस विधि में स्थूल से सूक्ष्म की ओर, सरल से कठिन की ओर ज्ञात से अज्ञात की ओर मनोविज्ञान से विज्ञान की ओर मनोवैज्ञानिक नियमों पर ध्यान दिया जाता है।
दोष:- इस विधि के दोष देखे जाएं तो यह उच्च कक्षाओं के लिए ही उपयोगी है और एकांगी विधि है। यह व्याकरण अनुवाद पर बल देती है। इस विधि से कक्षा का वातावरण संस्कृत मय हो जाता है।
यह विधि वाईल्टर पैनफील्ड के Mother Method पर आधारित है। यह विधि केवल भाषा कौशल का विकास करती है।
विश्लेषण विधि:-
यह विधि संस्कृत शिक्षण में व्याकरण कथा पाठ के लिए अच्छी है और पूर्ण से अंश की ओर सूत्र पर आधारित है। सबसे पहले इसमें पूर्ण पाठ पढ़ाया जाता है और इसके बाद इस पाठ को विभिन्न अंशों में बांटकर उन अंशों को अच्छी विश्लेषण करते हुए समझाया जाता है। संधि विच्छेद, सामासिक विग्रह आदि का भी इसमें उपयोग किया जाता है। यह मनोवैज्ञानिक विधि है।
व्याख्या विधि
यह प्राचीन काल से आज तक व्यावहार में ली जा रही है। इसका प्रयोग संस्कृत में क्लिष्ट पदों, नूतन विचार, भावना की अभिव्यक्ति आदि में प्रयोग किया जाता है।
हरबर्ट की पंचपदी:-
यह हरबर्ट के शिक्षण सिद्धांतों पर आधारित विधि है। यह एक शास्त्रीय शिक्षण विधि है। इसके पांच पद इस प्रकार हैं-
1 प्रस्तावना या उन्मुखीकरण
2 विषयोपस्थापना या प्रदर्शन
3 तुलना या अमूर्तीकरण
4 सामान्यीकरण
5 प्रयोग
मूल्यांकन विधि:-
यह हरबर्ट की पंचपदी का विकसित रूप कही जाती है। इस विधि के तहत सभी सोपानों के उद्देश्य प्राप्त करने के लिए कक्षानुसार क्रियाकलापों का संयोजन किया जाता है। इसमें शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य व्यवहार परिवर्तन ही है। अपेक्षित व्यावहार परिवर्तन के तीन पक्ष बताए गए हैं।
1 संज्ञानात्मक
2 भावात्मक
3 क्रियात्मक
इस विधि के सोपानों में निम्न हैं।
1 उद्देश्य
2 व्यवहाररूप
3 पाठ्य बिन्दु
4 शिक्षक कार्य
5 छात्र कार्य
6 मूल्यांकन
यहां ध्यान देने योग्य बात है कि यह मनोवैज्ञानिक विधि है और प्रतिसोपान मूल्यांकन से छात्रों को अभिप्रेरणा और पुनर्बलन प्राप्त होते हैं।
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