अलवर। बीसूका उपाध्यक्ष डॉ दिगम्बर सिंह के निधन से मत्स्यांचल में भाजपा की जाट राजनीति को गहरा धक्का लगा है। अलवर भरतपुर और धौलपुर की जाट राजनीति में डॉ दिगम्बर सिंह एक ्रचिर परिचित चेहरा थे। उनके निधन के बाद यह स्थान भरने में भाजपा को जोर आ सकता है। दूसरी तरफ कांग्रेस के लिए यह अवसर की तरह उपलब्ध होने वाली परिस्थितियां बन सकती हैं। क्योंकि विशेषकर भरतपुर में जाट राजनीति डॉ दिगम्बर सिंह और डॉ विश्वेन्द्र सिंह के खेमों में विभक्त रही है। इसके अलावा भरतपुर के जाटों को आरक्षण के मामले में भी राजनीति होती आई है।
अलवर का भरतपुर से लगता क्षेत्र भरतपुर जिला और धौलपुर में जाट वोटों के बीच भाजपा अभी तक डॉ दिगम्बर सिंह को प्रचार की कमान सौंपती आई थी। लेकिन आने वाले विधानसभा चुनाव में और लोकसभा के उपचुनाव में जाट वोटों को साधने में अब भाजपा के सामने परेशानी पेश आ सकती है।
भरतपुर की जाट राजनीति में विश्वेन्द्र सिंह पूर्व राज परिवार से हैं और वहां उनका अच्छा रुतबा है। डॉ दिगम्बर सिंह के जरिये ही भाजपा वहां विश्वेन्द्र सिंह को चुनौती देती आई थी। भविष्य की राजनीति में दिगम्बर सिंह के परिवार से या तो भाजपा को विश्वेन्द्र सिंह का काउंटर ढूंढना होगा या फिर भाजपा को अपनी रणनीति बदलनी पड़ सकती है।
भाजपा के समक्ष मुश्किलें इसलिए भी बढेंगी क्योंकि पिछला चुनाव डॉ दिगम्बर ङ्क्षसह हार गए थे। भाजपा ने उन्हें शेखावाटी अंचल के झुंझुनूं जिले के सूरजगढ़ से भी चुनाव लड़वाया था। माना जा रहा था कि वह सीट उन्हें स्पेशल तौर चुनाव लड़वाने के लिए आवंटित की गई थी लेकिन बहुत कम अंतर से ही सही डॉ सिंह वह चुनाव भी हार गए थे। ऐसे में उनका कद जरूर कम हुआ लेकिन भाजपा ने उनके किए कार्यों का सुफल देते हुए उन्हें बीसूका उपाध्यक्ष पद दिया और केबीनेट मंत्री का दर्जा देकर भरतपुर की जाट राजनीति को साधने की कोशिश की। अभी तक भाजपा का यह दांव सफल नजर आ रहा था। इसके पीछे डॉ सिंह की पर्सनल इमेज भी काफी मददगार थी। फिलहाल सामने आई इन परिस्थतियों में भाजपा कि पैंतरे खेल बदलती यह देखना सभी के लिए उत्सुकता का विषय हो सकता है।
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