ओह, ‘बाबा’ नहीं रहे। इसलिए ‘बालक’ आ रहे हैं। बाबा बाहर के रहने वाले थे। लोग उन्हें नहीं चाहते थे। उनकी जिम्मेदारी तो हमारे विधायकों ने आगे बढ़ बढ़ कर ली थी। लोगों ने विश्वास भी किया। पिछले साढ़े तीन साल में सब जिम्मेदारी हवा हो गई। न राज चला न काज चला। चला तो केवल हवाबंदी का दौर। बाबा कहां है। पिछले साढे तीन साल में इस सवाल का जवाब ही नहीं मिल पाया। यहां विकास पागल नहीं हुआ था। पलायन कर गया था। भाग गया था। अब क्या उम्मीद लेकर ‘बालक’ को अलवर भेजा जा रहा है। शायद हाथ जोडक़र माफी मांगने। कि ‘बाबा’ नहीं रहे। साहनुभूति चाहिए। बाबा कह गए कि ‘बालक’ उनके उत्तराधिकारी होंगे। पिछले साढ़े तीन साल का वक्त बाबा के काम के गवाह हैं। क्या अब उत्तराधिकारी को जिम्मेदारी देनी चाहिए ?
बाबा-महंत चांदनाथ
बालक-बाबा बालक नाथ
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