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Saturday, August 5, 2017

इस डर के आगे जीत निश्चित है

इस डर के आगे जीत निश्चित है


दोस्तों शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत प्रावधान है कि आठवीं कक्षा तक बच्चों को फेल नहीं किया जाएगा। सरकार अब यह नियम बदलने जा रही है। अभी तक बच्चों और अभिभावकों को बच्चों के फेल होने का डर नहीं था। अब यह डर सता सकता है लेकिन डरना मना है। क्योंकि यह निर्णय बच्चों के हित में ही होगा। उनकी नींव मजबूत होगी और आगे जाकर वे योग्य बन सकेंगे।

क्या है अधिनियम

शिक्षा का अधिकार अधिनियम २००२ संविधान संशोधन ८६ के तहत छह से १४ वर्ष तक के बच्चों को सरकारी और निजी स्कूलों में निशुल्क अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान किया गया था। यह एक अप्रेल २०१० से लागू किया गया। इसमें यह भी नियम था कि आठवीं तक बच्चे को फेल नहीं करना है। लेकिन इसके परिणाम उल्टे निकले। अन्य काफी प्रावधान इसमें किए गए थे जिनमें शिक्षक बच्चों का अनुपात और शिक्षण संस्थानों के बीच की दूरी प्रमुख थे।

क्या निकले परिणाम

बच्चों में फेल होने का या साल खराब होने का डर जाता रहा। इससे वे निकम्मे हो गए और शिक्षक भी उसी राह पर चल पड़े। नतीजा यह हुआ कि बेसिक शिक्षा का ढर्रा ही चरमरा गया। बच्चों की जब नींव ही कमजोर होगी तो भविष्य का महल कैसे मजबूत हो सकता है।

नया निर्णय कैसा रहेगा

सरकार 2018 से आठवीं तक फेल नहीं करने का नियम समाप्त करने जा रही है। अब बच्चों केा परीक्षा देकर पास होना होगा। तभी वे आगे बढ़ सकेंगे। देशभर में 24 राज्यों के प्राइमरी और सेकेंडरी स्कूलों में से मौजूदा नो-डिटेनशन व्यवस्था को इस नियम के तहत हटाया जा रहा है। इसके लिए सरकार की मंजूरी भी मिल गई है और 2018 से इस व्यवस्था को अपना लिया जाएगा।

राज्यों को अधिकार

शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत राज्य सरकारों को अधिकार है कि वे बच्चों के शैक्षिक स्तर को सुधारने के लिए परीक्षा मूल्याकंन व्यव्स्था को वापस ला सकते हैं। मौजूदा नियम के तहत पहली से आठवीं तक बच्चों को बिना किसी परीक्षा मूल्यांकन के अगली कक्षा में भेज दिया जाता है। लेकिन यह बाल हित में नहीं था और बच्चों का भविष्य इससे खराब हो रहा था। लगातार स्कूलों के निरीक्षण में यह बात सामने आ रही थी कि आठवीं के बच्चे को बारहखड़ी पहाड़े यहां तक कि हिंदी तक पढऩा नहीं आता था।

देश हित में कैसे

भारत युवाओं का देश है। यहां ३५ वर्ष तक के लोगों की संख्या कुल जनसंख्या का ६५ प्रतिशत है और १५ प्रतिशत बालक हैं यानि की सात वर्ष से कम उम्र के बच्चे। यदि इन बच्चों को शिक्षा की दृष्टि से मजबूत नहीं किया गया तो हम चीन जापान अमेरिका जैसे देशों से पिछड़ जाएंगे जिनके लिए आज हम उदाहरण बने हुए हैं। यह तकनीक का युग है। हम तकनीकी दौड़ में दुनिया के देशों के आगे रहें इसके लिए शिक्षा के ढांचे को बदलने की जरूरत भी थी। यह नया बदलाव निश्चित रूप से बच्चों के भविष्य को उज्जवल ही बनाएगा।

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