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Friday, August 4, 2017

ऐसी बांसुरी जिसके स्वर सुनाई नहीं देते फिर भी कर रही है आनंदित

ऐसी बांसुरी जिसके स्वर सुनाई नहीं देते फिर भी कर रही है आनंदित



भाजपा राज्यसभा में भी सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। यहां फिलहाल भाजपा के ५८ सांसद हो गए हैं। जबकि मुख्य विपक्ष के पास इससे एक कम सांसद है। यानि विपक्ष यहां भी नहीं के बराबर है। मध्यप्रदेश से साम्पतिया उड़के शपथ ले चुके हैं और गुजरात में राज्यसभा सांसद चुनाव की तैयारी जारी है। भाजपा चाहेगी कि गुजरात से भी उसी के दल को जीत मिले। सरकारी मशीनरी का उपयोग कर उसके लिए यह संभव हो भी जाएगा। लेकिन निरंकुशतावाद को इससे बढ़ावा मिलेगा। संघीय सहकारिता का विलोप होगा।

उच्च सदन के मायने

भारत की संसदीय व्यवस्था में संसद तीन अंगों से मिलकर बनी है। पहला लोकसभा दूसरा राज्यसभा और तीसरा राष्ट्रपति। लोक सभा को निम्न सदन भी कहते हैं। राज्य सभा हमारे देश का उच्च सदन कहलाता है। यानि यह सदन अभिजात्य वर्ग के लिए रखा गया था जो कि कला साहित्य खेल या किसी क्षेत्र में विशेष उपलब्धि रखते थे। राज्य सभा राजनीति के अखाड़े का स्वरूप नहीं होनी चाहिए। ऐसा हमारा संविधान कहता है। संविधान यह भी कहता है कि राज्यसभा में इन विशेष क्षेत्रों की उन्नति के लिए ही राजनीति से अलग चर्चा होनी चाहिए। लेकिन आजकल राज्यसभा को अध्यादेश पास कराने के अधिक काम में लिया जा रहा है। यानि राज्यसभा को भी निरंकुश शासन के हथियार के तौर पर काम में लिया जा रहा है।

यहां लड़ाई उचित

लोकसभा का स्वरूप ही अखाड़े की भांति है। पक्ष विपक्ष का काम ही यहां आपस में एक दूसरे की टांग खिंचाई करना है। क्योंकि यहां जनहित के मुद्दों पर तुरंत काम होना जरूरी है। लोकसभा प्रतिनिधि सीधे जनता चुनती है। तो जनता इन्हीं से उम्मीद भी रखती है कि वे उनकी समस्याओं का समाधान करेंगे। इसीलिए वे लड़ते हैं। लेेकिन यह लड़ाई नूरा कुश्ती के अलावा कुछ नहीं है।

क्या है नया खेल

भाजपा चाहती है कि राज्य सभा में भी उसके दल का बहुमत हो। यह बहुमत उसे अध्यादेश पास कराने के काम में जो लेना है। अध्यादेश वह आदेश है जो कि सदन के संचालित नहीं होने पर भी सत्तारुढ दल को कानून बनाने की शक्ति देता है। विपक्ष के नहीं होने से इस बार यह हथियार अचूक हो गया है और भाजपा इसका जमकर उपयोग कर रही है। वह मनमर्जी के ऐसे कानून पास रही है जो कि उसी के दल वालों को पसंद नहीं। लेकिन सत्ता की मलाई के लालच में विरोध वे नहीं करना चाहते। 

भाजपा ऐसे कानूनों को जनहित में कड़वी दवा के नाम पर बाजार में खूब भुना भी रही है। नोटबंदी हो या फिर जीएसटी सभी पर ऐसी ही प्रतिक्रिया जनमानस में देखने को मिली है जहां लंबी लाइनों और चारों और विरोध के बाद भी विरोध के स्वरों की गूंज सुनाई नहीं देने दी गई। यानि भाजपा ऐसी बांसुरी बजा रही है जिसके स्वर किसी को सुनाई नहीं दे रहे फिर भी लोग बांसुरी को हिलता देख आनंदित हो रहे हैं और तारीफ कर रहे हैं।

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