जानिये आखिर क्यों जरूरी है इस बार महिला विश्वकप क्रिकेट जीतना
दोस्तों क्रिकेट के प्रति दीवानगी एशियाई देशों में कुछ अधिक है। आस्ट्रेलियाई महाद्वीप में भी दीवानगी देखी जा सकती है। एक समय था जब क्रिकेट अंग्रेजों का खेल माना जाता था। सही मायने में अंग्रेज ही इस खेल को लेकर आए। लगान फिल्म इस पर बन चुकी है। क्रिकेट ऐसा खेल भी है जिसमें इतना पैसा बरसता है कि बटोरने वाले खिलाड़ी भी अचंभित हैं। पहले क्रिकेट केवल टेस्ट प्रारूप में ही खेला जाता था। इसके बाद वन डे क्रिकेट और अब टी ट्वंटी क्रिकेट के नए प्रारूप हैं। आजकल डे नाइट क्रिकेट मैचों का अधिक प्रचलन है। यहां तक कि बॉल भी लाल से पहले सफेद और अब गुलाबी हो चुकी है। महिला क्रिकेट की जहां तक बात है तो आज भी लोगों में महिला क्रिकेट के प्रति क्रेज कम है जबकि महिलाओं के प्रति के्रज इतना है कि जितना किसी के प्रति नहीं होगा। फिलहाल हम बात करते हैं महिला वल्र्ड कप क्रिकेट २०१७ की। यह इसलिए खास है कि भारत फाइनल में पहुंच चुका है। तो आइये जानते हैं अब आगे क्या होगा।
भारत को उम्मीद
कहा जाता है जिस्मानी तौर पर महिलाएं पुरुषों से कमजोर होती हैं। लेकिन खेलों ने यह जुमला झूठा साबित कर दिया है। जिस तरह से हमारी महिला क्रिकेट टीम ने मिताली राज की कप्तानी में खेल का प्रदर्शन किया है हम कह सकते हैं कि इस बार वल्र्ड कप क्रिकेट की चमचमाती ट्राफी हमारी बेटियों के नाम ही होगी। आस्ट्रेलिया को हराना अपने आप में बहुत बड़ी कहानी बन गई है।
मौका नहीं गवाना चाहिए
भारत की बेटियों को यह दूसरी बार है जब फाइनल खेलने का मौका मिला है। इससे पहले हमारी महिला क्रिकेट टीम वर्ष २००५ में भी फाइनल में पहुंच चुकी थी। लेकिन वह मौका आस्टे्रेलिया ने हमसे बेहतर खेल दिखा कर हथिया लिया और हम हाथ मलते रह गए थे। इस बार हमारी टीम ने आस्टे्रेलियाई गोरियों को सेमिफाइनल में बाहर का रास्ता दिखा अपनी उस हार का बदला ले लिया है। अब सीधी भिडंत होगी। वह भी उस देश से जिसने क्रिकेट का पैदा किया। यानि कि हमारी बेटियां अब इंग्लैंड के खिलाफ खम ठोक कर खड़ी हैं।
इतिहास की कुछ बातें
लॉर्डस क्रिकेट मैदान को क्रिकेट का मक्का भी कहा जाता है। यह क्रिकेट प्रेमियों के लिए स्वर्ग जैसा है। भारतीय महिला टीम ने अपना पहला वनडे अंतरराष्ट्रीय मैच यहीं पर इंग्लैंड के खिलाफ ही २००६ में खेला था। इस मैच में भारत को हार का सामना करना पड़ा था। कहते हैं हार से ही जीत के रास्ते खुलते हैं। क्योंकि जो खेलता है वही हारता या जीतता है। भारत तब हारा तो आज जाती भी है। और जीत की हमारी भूख कम नहीं हुई है। यह वही ऐतिहासिक मैदान है जहां भारतीय पुरुष टीम ने १९८३ में कपिलदेव की कप्तानी में पहला विश्व कप क्रिकेट खिताब अपने नाम किया था। महिला टीम का यहां पहला फाइनल है। अब याद करना है तो बस इतना कि हम यहां जीत सकते हैं। कपिल देव यह कारनाम दिखा सकते हैं। अब मिताली राज यदि यहां भारतीय तालियां बजवा देें तो क्या कहने।
दोहरा दो इतिहास
लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड भारत के लिए इतना बुरा भी नहीं है। कपिल देव जब यहां कारनामा कर सकते हैं तो मितालीराज भी कर सकती हैं। १९८३ के बाद अब जब ३४ साल बाद हमें यह मौका मिला है तो हमें साबित भी करना चाहिए कि हम किसी से कम नहीं। अब वह समय नहीं रहा जब महिलाएं पीछे की लाइल में लगा करती थी। अब वे बराबरी के हक पर हैं तो उन्हें बराबरी का यह हक अदा भी करना चाहिए। खिताबी जीत के बाद ही वे पुरुष क्रिकेट टीम की बगल में बैठने लायक बैठेंगी और उन्हें दिए गए बराबरी के हक के कर्ज तब ही मुक्त हो सकेंगी। भारत की ५० करोड़ से अधिक बेटियां और कुल १२१ करोड की आबादी नया खिताब देखना चाहती है जो कि हमारी बेटियां कमाकर लाने वाली हैं।
मैदान में केवल खेलना है
मैदान में हमारी बेटियों को केवल खेलना है। बाकी काम अपने आप हो जाएगा। क्योंकि जब हम पूरी ताकत से खेलेंगे तो कोई कारण नहीं कि हम जीत नहीं पाएं। यह मौका अंतिम मौका है ऐसा मानकर पूरा जोर लगाना होगा। तभी हम देशवासियासें को वह खुशी दे पाएंगी जो कि आज देश मांग रहा है। महिला टीम को शुभकामनाएं।
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