साइको किलर...
साइको किलर...। मीडिया ने उसे आखिर ये नाम दे ही दिया। वह किलर है या नहीं यह अदालत को तय करना है, लेकिन हमने उसे यह चिरकालिक नाम दे ही दियाा। मीडिया के सामने बार-बार उसने बयान दिया कि उसने मारा नहीं है केवल अपनी पत्नी को जला लाश ठिकाने लगाने की कोशिश की। यह उसकी मूर्खता थी। उसे फंसना तो था ही..यही बात उसके जेहन में भी थी। एेसी बातें जेहन में आना सामाजिक और न्यायिक संस्थागत खामी होने की ओर भी इशारा करती है।
योगेश उर्फ चूचू की उसकी पत्नी से नहीं बनती थी। पारीवारिक क्लेश के चलते पत्नी ने आत्महत्या जैसा कदम उठा लिया। जब चू चू को पता चला तो उसके दिमाग में सीधे तौर पर यह बात आई कि किसी को पता चलेगा तो सब उसे ही मर्डरर समझेंगे। यहां वह सही साबित हुआ..। उसने लाश को यह सोचकर ठिकाने लगाने की कोशिश की कि यदि मामले का किसी को पता नहीं चले तो वह कम से कम अपनी बच्ची को पाल लेगा। उसके अनुसार उसने मर्डर किया ही नहीं। पुलिस और कोर्ट कचहरी के चक्कर से बचने के लिए उसने एक एेसा कदम उठा लिया जो उसे दुर्दान्त श्रेणी में ले गया।
योगेश द्वारा एेसा कदम उठाने के पीछे बड़ी व्यवस्थागत खामी भी एक कारण है। सामाजिक और न्यायिक व्यवस्था दोनों समर्थ और सामथ्र्य की पक्षधर रह गई हैं। पुलिस और समाज पर उसका अविश्वास प्रदर्शित होता है। पत्नी आरती द्वारा आत्महत्या किए जाने के बाद वह लाख कहे कि मर्डर उसने नहीं किया कोई नहीं मानेगा। पुलिस हर ओर से उसे ही कसूरवार ठहराने का प्रयास करेगी। दूसरा समाज है। वह भी उसके हालात और उसका पारीवारिक वातावरण देखकर यह साबित करने में कसर नहीं छोड़ेगा कि वह ही पत्नी का हत्यारा है। सोचने की बात यह है कि समाज में लगभग प्रत्येक व्यक्ति एेसा है जो पुलिस और न्यायिक व्यवस्था में विश्वास नहीं करता। गरीब आदमी कहीं फंसने जैसी परिस्थिति में पहुंचने के बाद सबसे पहले पुलिस और न्यायालय के झमेले से बचने की कोशिश ही करता है। एेसे में वह इस प्रकार की मुर्खताएं कर बैठता है जैसी की योगेश ने की और वह लाश ठिकाने लगाने के साथ ही हत्या का आरोपित भी हो गया।
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