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Friday, October 28, 2016

दिन बुरे या नीयत..

दिवाली के दिन हैं यह प्रसंग सामयिक है सो आपसे शेयर कर रहा हूं। किसी भी कंपनी, दुकान, मजदूरी या कहीं भी चले जाएं। दिवाली पर मिठाई देना शुभ माना जाता है। मैं एेसे संस्थान का जिक्र कर रहा हूं जहां दिवाली पर मिठाई नहीं दी जाती। न कोई उपहार ही कर्मचारियों को दिए जाते हैं। यह नियत बुरी होने का ही उदाहरण हो सकता है। क्योंकि न तो संस्थान घाटे में है और न ही कोई कर्मचारी एेसा है जो कमाकर नहीं दे रहा हो। लेकिन इस संस्थान में एेसा होता है कि कुछ लोगों को ही मिठाई और उपहार दिए जाते हैं। ९८ प्रतिशत कर्मचरियों को दरकिनार किया जाता है। कुछ दिन पूर्व ऑफिस में ही डिनर टेबल पर इसकी चर्चा चली। मैं चुपचाप सुनता रहा। सभी का यही इशारा था कि मिठाई नहीं देना काफी अखरता है। एेसे संस्थान से क्या उम्मीद की जा सकती है। सभी लोग अन्य संस्थानों के उदाहरण दे रहे थे जहां कर्मचारियों का विशेष ध्यान रखा जाता है। यह अनोखा मीडिया संस्थान है जहां बीजों पर नहीं पत्तियों और तनों पर ध्यान दिया जाता है। इससे बड़ी मूर्खता क्या आपने कहीं देखी है। इसका तर्क प्रबंधन के पास भी नहीं है। मेरी इस बारे में प्रबंधन के कई लोगों से चर्चा भी हुई और सभी ने इसकी आलोचना भी की। एेसा कोई नहीं मिला जो इसका विरोध कर सके या कर्मचारी हित की बात की जा सके। प्राइवेट सेक्टर में यह एक तरह से बुरा माना जाता है, लेकिन हक मांगने का सभी को हक है। यहां एेसी नामर्दों की टीम मैंने देखी जो गर्दन झुकाए रोने के अलावा कुछ नहीं कर सकती। उन्हें लगता है कि वे मालिकों की दया पर पल रहे हैं। मुझे एेसा कभी महसूस नहीं हुआ। मेरा मानना है कि मैं काम करता हूं तो मुझे कुछ मिलता है। मेरी योग्यता से मैने नौकरी पाई बैक डोर एंट्री से नहीं। यह निजी संस्थान है। अधिक काम करा कम देना इसकी नियती होती है। लेकिन नीयत इतनी खराब हो सकती है कि कर्मचारियों के सभी हित परिलाभ इस संस्थान ने खत्म कर दिए और अभी भी वह चाहता है कि कर्मचारी इससे वफा निभाएं। यह महामुर्खता की स्पष्ट निशानी और प्रमाण है। संस्थान का थिक टैंक मानसिक तौर पर दिवालिया हो चुका है। सभी फैंसले कर्मचारियों के खिलाफ किए जा रहे हैं लेकिन कर्मचारी एेसी चीज है जो किसी भी बड़े से बड़े जहाज को डुबा सकती है। यही हश्र मुझे यहां होता नजर आ रहा है। मार्केट खराब हो चुका है। ऊपर के कुछ लोग केवल अपनी इज्जत बचा रहे हैं। लेकिन मातहतों में उनकी इज्जत नहीं बची है। वे केवल अपना काम चला रहे हैं जैसे तैसे अपनी नौकरी बचा रहे हैं। खुदा खैर करे एेसे लोगों की जिन्हें जन्म देकर मां भी लजाई होगी। धरती भी जिन्हें भार के अलावा कुछ नहीं समझ पा रही होगी। लेकिन यह विशाल ह्दय की बात है कि एेसे  लोग दुनियां में चलते हैं। भगवान की निम्नतम रचना को भी जीने का दिया गया है। कर्मचारी हित में अनेक एेसे कुकृत्य मैं आपको बताऊंगा जिससे एक एक कर काम के लोग कंपनी छोड़ गए। उनका मन खट्टा हो गया। प्रबंधन का गुरूर टूट चुका है बस सामने लाने की देर है। वह भी हो जाएगा। कुछ इंतजार करना होगा। आपको भी मेरे साथ आगे आने के लिए कुछ वेट करना पडेग़ा। आगे मैं आपको बताऊंगा कि कैसे लोगों को किनारे कर अपने  लोगों को आगे बढ़ाया गया। लेकिन उन पर लगाया गया दावं विफल ही रहा...। अगली किश्त में।

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