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Friday, October 28, 2016

दूसरे के कंधे पर बंदूक कब तक...7

कंपनी के इतिहास में एक अलग ही किस्सा वर्ष २०१५ की शुरूआत में गढ़ा गया। अपना हक पाने के लिए कर्मचारियों की फौज ने प्रबंधन पर चढ़ाई शुरू कर दी। हर वो घिनौना कदम जो प्रबंधन उठा सकता था उसने उठाया लेकिन कर्मचारी डटे रहे और प्रबंधन अपनी मनमानी करता रहा। तबादले किए गए, टर्मिनेशन किए गए, डराया-धमकाया गया, प्रलोभन दिए गए लेकिन जब इनसान उद्देश्य लिए किसी क्षेत्र में उतरता है तो उसे तोडऩा मुश्किल होता है। हालात के मारों और बुजदिलों को मैं इस श्रेणी में शामिल नहीं करता। फिर भी कर्मचारी काफी तादात में डटे रहे। इनमें साहब के चंद रिश्तेदार भी शामिल थे जो इस लड़ाकू दल के हरावल दस्ते को लीड़ कर रहे थे। प्रबंधन ने साहब को एक हाइड टारगेट के तहत सत्तानशी किया और उन्हें स्टेट हैड के पद पर आसीन कर दिया। साहब की ताजपोशी के बाद वे तमाम बातें हुई जो होती हैं। बुलंदियों के कशीदे गढ़े गए लोगों ने तामीरें दी। मैं इससे अलग रहा। सब देख रहा था क्योंकि प्रबंधन की यह बात जाहिर हो चुकी थी कि साहब का हाइड प्रोजेक्ट क्या है। यहां मैं बतता चलूं कि साहब को अंदर खाने यह प्रोजेक्ट दिया गया कि वे अपने इस रिश्तेदार को वापिस अपने गु्रप में लाएं और फिर उसे हनी ट्रेप के जरिये मजबूर किया जाए कि वह इस हरावल दस्ते को प्रबंधन के खिलाफ घुटने टिकाने पर मजबूर कर दे। अगर साहब अपने उद्देश्य में सफल हो जाते तो निश्चित तौर पर यह दस्ता भी हार जाता..लेकिन एेसा नहीं हुआ। हमने अपना लीडर गलत नहीं चुना था। मजबूत था। एक शान थी उसकी और आज भी है। अब साहब यहां खुद हनी ट्रेप में थे। तमाम रिश्तेदारियों से कहलवाया लेकिन वे इस दस्ते को झुका नहीं पाए। नतीजे अच्छे नहीं हुए..लेकिन साहब के लिए। हम हर तरह के नतीजों के लिए पहले से ही तैयार थे। साहब को कुछ ही महीने में पद से अलग कर दिया गया और एक एेसी जगह बैठा दिया गया जो उनके लिए नहीं थी। क्योंकि साहब अपने हाइड टारगेट को शूट नहीं कर पाए। साहब के साथ इस हाइड प्रोजेक्ट में शीर्ष प्रबंधन से जुड़े उन्हीं की कास्ट के एक और उच्च अधिकारी भी शामिल थे। वो भी उनके साथ इस प्रोजेक्ट में चित्त आए। किसी के कंधे पर बंदूक रखकर एक बार ही चलाई जा सकती है। यह ध्यान रखने वाली बात है कि हर बार हम ही सफल हों या सही हों यह संभव कतई नहीं है। वह भला इनसान भी साहब के इस पैंतरे को समझ चुका था और इस बार उसने शेखावाटी वाली गलती नहीं दोहराई और प्रबंधन को पटखनी देने में कामयाब रहा। किसी प्रलोभन में वह नहीं आया। यह उसकी महानता ही कही जा सकती है कि उसने अपने साथियों के विश्वास के लिए दु:ख और कांटे चुने। हम सब की शुभकामनाएं और सपोर्ट हमेशा उसके साथ बना रहा और बना रहेगा। एेसे इनसान आज नहीं मिलते। या यों कहें कि करोड़ों में एक दो ही ही एेसे इनसान होते हैं जिनके चेहरे और तासीर एक होती है। सुंदर, अतिसुंदर। साहब का अध्याय यहीं समाप्त होने को है। लेकिन अनेक अनुभव एेसे हैं जो आपसे शेयर किए बिना मैं नहीं रह सकता। इसका कारण यही है कि जो गलतियां मैंने की या जो कमियां मेरी रही और जिनकी वहज से मैंने कष्ट उठाए या जिस अनुभव की बदौलत मैं बच निकला वह सब आप से शेयर कर सकूं। ताकि आप लोग उसका लाभ उठा सकें। यह केवल एक प्रयास है जिसके द्वारा मैं आप लोगों को इनसान पहचानने की कला सिखाने की कोशिश कर रहा हूं। अगला किस्सा एेसे मिट्टी के माधो का है जिसके कारनामों के साथ आप हसेंगे भी और समझ भी पाएंगे कि इस दुनिया में जो हो जाए सो कम है। तो बने रहिये मेरे साथ और उठाते रहिये मेरे अनुभवों का लाभ...।

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