दूसरे के कंधे पर बंदूक कब तक...4
मेरे यहां आने की कहानी भी बड़ी अजीब और अचानक घटित हुई घटनाओं में से एक है। मारवाड़ में मेरे पास अचानक मोबाइल पर मैसेज आया कि अपनी डिटेल्स अमुक नंबर पर भेजो। मैं मामला समझ गया और मैने फोरन डिटेल्स भेज दी। मेरा सीधा सा अर्थ था कि जब घर से दूर बैठे हैं तो वफादारी केवल कमाई से करो। यह संस्थान भी आजकल इसी पॉलिसी पर है। कर्मचारी जब तक काम का है तब तक ठीक नहीं तो एेसी लात मारता है कि बेचारे कर्मचारी को लगने लगता है कि इस संस्थान से वफादारी कर सबसे बड़ी गद्दारी खुद के साथ की है। एेसे में मेरा फंडा शुरू से ही क्लीयर था और मैंने पॉजिटिवली डिटेल्स दूसरी ओर भेज दी। वहां से जवाब पॉजिटिव आया। मैंने साहब को कहानी बताई और यह स्थिति पैदा कर दी कि या तो मुझे मेरे अनुसार भेजा जाए नहीं तो मैं अपने अनुसार खुद चला जाउंगा। यहां दोनों बाजियां मेरे हाथ थी। संस्थान में यदि मेरे जैसा व्यक्ति चला जाए तो यह बटे की बात थी। क्योंकि अभी तक एेसा कोई काम नहीं था जो मैं नियत समय में पॉजिटिव रिजल्ट के साथ नहीं कर पाया होऊं। साबह यह बात अच्छी तरह जानते थे। वे नहीं चाहते थे कि मैं कहीं और जाऊं। खासकर के उनके काल में मेरा जाना तो उनसे कतई बर्दाश्त नहीं होता। यही कारण रहा कि मुझे मेरे अनुसार मनचाही जगह भेजा गया। यह मेरा शहर था। जहां मैं जाना चाहता था। वो शहर जहां केवल ह्रस्व स्वर की मात्राएं हैं। जो मात्राएं कानों में घुलती हुई मीठी धुन के साथ गूंजती हैं। इस तरह मैं अपनी समझदारी से साहब की बात रखते हुए लौट आया। संयोग से साहब का तबादला भी यहां हो चुका था। एक बार फिर हम साथ हो लिए। यह बात मैं आपको बता भी चुका हूं। इस शहर में जो घटित हुआ वह देखने और सुनने लायक था। आपके पढऩे लायक भी। यकीन मानें जो आगे बात मैं बताने जा रहा हूं उसे पढऩे के बाद अधिकांश लोगों की इस संस्थान के बारे में गलत फहमियां दूर होती चली जाएंगी। अनेक लोगों को यह लगने लगेगा कि वह सही हैं। कुछ लोग एेसे भी होंगे कि जो यह कह सकेंगे कि मैं गलत हूं। लेकिन यह मेरा अनुभव है जो मैं आपसे शेयर कर रहा हूं। एक अनोखी बात। आप बस पढ़ते रहिये...।
क्रमश:
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