दूसरे के कंधे पर बंदूक कब तक...6
कभी कभी कहानियां बड़ी अजीब होती हैं। नफरतें चेहरे देखकर हो जाया करती हैं। यहां मेरे साथ भी एेस ही हो रहा था। बिना बात ही कुछ लोगों को मुझ से और मेरे काम से परेशानी थी। वे यह स्वीकार करने को तैयार ही नहीं थे कि मैं यहां आ गया हूं। इन लोगों ने हर वो कोशिश की जिससे मुझे नीचे दिखाया जा सके और शेष स्टाफ में यह महसूस कराया जा सके कि मैं भले ही यहां आ गया हूं लेकिन मेरी औकात कुछ नहीं है। साहब अपने बेस्ट गेम में मशगूल थे। वे चाहते थे कि कमांड मैं रखूं तो सही लेकिन हंटर उनके हाथ में हो। मैं कभी हंटर चलाने के पक्ष में रहा ही नहीं। सो मैंने कमांड लेना स्वीकार भी नहीं किया क्योंकि मैं साहब का गेम पिछले कई सालों से देख रहा था और समझ चुका था। जिन लोगों को वो डांटने फटकारने केलिए कहते फिर खुदही उन्हें जमकर एंटरटेंट करते। एेसे में साहब अपनी इमेज बुल्डअप करने में लगे रहते और जिसे कमांड सौंपते उसकी बैंड बजना तय हो जाती। मैं इससे बचने में कामयाब रहा नतीजन साहब को जो कंधे उस भले आदमी के रूप में शेखावाटी में और उस महत्वकांक्षी के रूप में मारवाड़ में मिले वे यहां राजस्थान के सिंहद्वार में नहीं मिले। उन्हें महसूस हो गया कि उनका गेम मेरी समझ में स्पष्ट है। कई बार मैंने उन्हें इस बात पर खीजते हुए भी देखा। यह उनके स्वभाव के विपरीत था। एेसा होना स्वाभाविक था। जो काम वो इतने वर्षों सफाई से करते रहे उस काम को मेरे जैसे एक छोटे से व्यक्ति ने समझ लिया और उन्हें अपनी पॉलिसी में यहां सफल नहीं होने दिया। यहां मैंने केवल अपना बचाव किया था। मेरे ऊपर कुछ लोगों ने साहब का ठप्पा लगाने की कोशिश भी की लेकिन मैंने एेसा भी नहीं होने दिया। यह प्रयास खुद साहब ने भी किया, लेकिन यहां भी मैं होशियारी से बच निकला और स्टाफ यह समझ गया कि भले ही साहब का हाथ हो लेकिन यह बंदा मुंह ऊपर नहीं किए हुए है। मेरे पैर जमीन पर थे और व्यवहार पूर्ण कुशल आगे बढ़ रहा था सो स्टाफ में मेरी पकड़ बनी रही और आज तक बनी हुई है। मैंने कभी किसी का बुरा नहीं किया सो वर्तमान बॉस को भी कहना पड़ा भरे स्टाफ के बीच कि 'यार तेरी सेटिंग कितने लोगों से हैÓ। उनका अर्थ था कि मेरा व्यवहार सबसे अच्छा रहता सो सब लोग यह बात कहते रहे हैं। कितनी ही खराब टीम मुझे दी गई लेकिन मैंने रिजल्ट्स हमेशा पूरो और संपूर्ण दिए। कभी निराश नहीं होने दिया। अचानक हुए सर्वे में मैं काम के मामले में पूरे गु्रप में पहले नंबर पर था। जो काम जब तक मेरे हाथमें रहा तब तक उस काम में हमारी ब्रांच पहले नंबर पर ही रही। यह बात अलग है कि काम मेरे हाथ से छीन दूसरे के हाथ में जब जब दिया गया ब्रांच ने पटखनी भी खाई। खैर बात साहब की हो रही है तो बता दूं कि यहां राजस्थान के सिंहद्वार में साहब ने अपना वो सब कुछ खो दिया जो उन्होंने शेखावाटी में कमाया, मारवाड़ में उसमें दीमग लगी और यहां सब समाप्त हो गया। साहब को अपने अच्छे ओहदे और साख से यहां हाथ धोना पड़ा। उन्होंने इस बात को भी एेसे प्रेजेंट किया जैसे वो आगे बढ़ रहे हों, लेकिन मैं समझ रहा था, शायद और लोग भी कि दिन अब जा चुके हैं। दिन सब के आते-जाते हैं, उनके साथ भी हुआ। लेकिन हैरानी की बात वह है जो मैं आगे बताने जा रहा हूं। अंतिम तीर के रूप में साहब ने वो हदें भी पार कर दी,,लेकिन यह ट्रिक भी उनकी कारगर नहीं रही। यह कैसे हुआ और क्या किया साहब ने...जानने के लिए जुड़े रहिये मेरे साथे मेरे दोस्तों...फिर मिलेंगे अगली किश्त में..।
क्रमश:
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