दूसरे के कंधे पर बंदूक कब तक...3
किसी का बुरा नहीं बनना। 16 साल की नौकरी में मैंने यही सीखा है। यह उस पॉलिसी से अलग है जिसमें खुद किसी का बुरा नहीं बनो लेकिन दूसरो को बना दो। मैंने सदा व्यक्तित्व परिवर्तन में विश्वास किया। इसमें मैं सफल भी रहा। जो मेरे साथ जुड़ा कभी पीछे नहीं रहा। इसका यही कारण रहा कि मैं कभी किसी का न बुरा बना न मैंन मेरे साथ के लोगों को कभी बुरा बनने दिया।
साहब की एक खास बात थी। वे सदैव प्रसन्न रहते थे और प्रसन्नता से सब से मिलते थे। किसी को यह अहसास नहीं होने देते थे कि उनके मन में क्या चल रहा है। मैं हाईली रिएक्शनरी रहा हूं, लेकिन साहब ने मेरी यह आदत सुधार दी। उनका धन्यवाद देते मुझे काफी प्रसन्नता होती है। उन्होंने मेरा कभी बुरा नहीं किया। मुझे उन पर हमेशा पूर्ण विश्वास भी रहा है, लेकिन उनके विचारों से मेरे विचार कभी नहीं मिले। केवल विचारों में मतभेद रहा। साहब ने खुद एक जगह माना कि मैंने कभी उनसे कुछ नहीं मांगा।
दूसरी बात मैंन जो साहब से सीखी वह यह थी कि प्रत्येक व्यक्ति को प्रसन्न रखो। समय आने पर उन्हें परखो भी। प्रत्येक व्यक्ति को प्रसन्न रखो यह दुनिया में आज सबसे कठिन काम है। इसमें साहब भी फेल रहे हैं। यह मेरा मानना है। क्योंकि इस प्रयास में कई बार गधे-घोड़े सब एकसार हो जाते हैं। काम के लोग तब निकम्मे बनते नजर आते हैं जब निकम्मे लोगों को भी उनके बराबर रखा जाता है। मेरा इसी बात पर साहब से हमेशा विरोध रहा है। खैर हम तीसरे और महत्वपूर्ण किस्से पर आते हैं। यह सीधा मुझसे जुड़ा है...। तो आइये चलते हैं चलते हैं अगली किश्त पर...।
क्रमश:
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