Government wants to clean the entire school in just Rs 200 per month
केवल 200 रूपए महीने में पूरे स्कूल की सफाई चाहती है सरकार
दौसा । प्रदेश सरकार चाहती है कि 200 रूपए महीने में बंधुआ मजदूर मिल जाएं और उससे पूरे स्कूल की सफाई करवा ली जाए। एक या दो नहीं प्रदेश के पूरे 60,000 से अधिक स्कूलों का यही आलम है। सरकार न तो स्कूलों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की भर्ती कर रही है और न ही स्कूलों में सफाई के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था ही की जा रही है। सालाना चंद रूपए का बजट जारी कर सरकार ने स्कूलों की साफ-सफाई की तरफ से मुंह मोड लिया है। ऐसे में नौ-निहालों को स्वच्छता का कैसा पाठ सरकार पढाना चाहती है यह शिक्षकों के भी समझ में नहीं आ रहा है।
क्या हैं हालात
प्रदेश में वर्तमान में 65,112 सरकारी स्कूल हैं। इनमें 19,000 सीनियर सैकंडरी स्कूल और 46,000 प्राईमरी और मिडिल विद्यालय हैं, जबकि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के 28,000 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 21,900 पद खाली हैं। यानि 6100 पदों पर ही चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी कार्यरत हैं। स्कूलों के लिहाज से एक स्कूल में एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी कार्यरत मानें तो करीब 60,000 स्कूलों में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी नहीं हैं। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि तीन दशक से सरकार ने चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की भर्ती नहीं की। इसके अलावा जो कर्मचारी सेवानिवृत्त हो गया उसका पद भी समाप्त कर दिया गया, जबकि तीन दशक में स्कूलों की संख्या काफी बढ गई।
अब बात करें सफाई की तो स्कूलों में प्रतिवर्ष कंपोजिट स्कूल ग्रांट राशि आती है। जो कि छात्र संख्या के हिसाब से अलग-अलग होती है। छात्र संख्या 15 तक होने पर 12500 रूपए, 16 से 100 होने पर 25000 रूपए, 101 से 250 होने पर 50000 रूपए, 251 से 1000 होने पर 75000 रूपए और 1000 स्टूडेंट से अधिक होने पर यह ग्रांट राशि एक लाख रूपए होती है। इसका दस प्रतिशत स्वच्छता एक्शन प्लान पर खर्च किया जा सकता है।
अगर 2500 ग्रांट का उदाहरण लें तो स्कूल वाले सफाई कर्मी को केवल 200 रूपए प्रतिमाह का भुगतान ही कर सकते हैं। वर्ष 2024 में 200 रूपए में महिने भर की सफाई कराना शिक्षकों के लिए बहुत बडी पहेली बना हुआ है। दूसरी तरफ स्कूलों में कमरों की बात करें तो प्राईमरी स्कूल में 3 से 5 कमरे, मिडिल में 8 से 10 कमरे और सीनियर सैकंडरी स्कूल में 12 से 15 कमरे और वॉशरूम, बरामदा आदि अलग से बना होता है। अब इतनी राशि में इतने कमरों और आंगन की सफाई कैसे कराई जा सकती है। ऐसे में शिक्षकों के सामने दो ही विकल्प सामने हैं। या तो वे खुद सफाई करें या फिर बच्चों को साथ में लेकर सफाई करवाएं। ऐसे में शिक्षक मीडिया और कार्रवाई का शिकार होते हैं।
विकट समस्या यह भी
शिक्षकों की यह समस्या सब से बडी हो गई है। उनका कहना है कि शहरी क्षेत्रों में स्वीपर उपलब्ध हो जाते हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं। और यदि उपलब्ध हो भी जाए तो वह टॉयलेट सफाई नहीं करते। गांव की गांव में किसी का टॉयलेट साफ करना वे सही नहीं समझते। ऐसे में या तो टॉयलेट सफाई के लिए शहरी क्षेत्र से स्वीपर बुलाया जाए या टॉयलेट को बंद ही रहने दिया जाए, या गंदा छोडा जाए। तीनों ही स्थितियां शिक्षकों के लिए मुसीबत बन जाती हैं।
नई भर्ती करनी चाहिए
स्कूलों की दशा सुधारना बहुत जरूरी है। स्वच्छता का पाठ तभी पढाया जा सकता है जब शिक्षा का आंगन साफ सुथरा हो। सरकार ने इस तरफ से मुंह फेर लिया है। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की नई भर्ती की जानी चाहिए। तभी शिक्षा प्रांगण साफ-सुथरे हो सकेंगे।
No comments:
Post a Comment