Real Hindi Story | बा-वर्दी, होशियार |
रोजाना की तरह शाम को कलक्ट्री चौराहे से ई-रिक्शॉ में सवार हुआ। एक ई-रिक्शॉ में वैसे तो चार ही सवारी ले जाना ही कानूनी है, लेकिन इससे ऑटो वालों की पार नहीं पडती। स्टेशन तक का किराया 10 रूपए प्रति सवारी। वह भी कोराना काल में बढाया। वर्ना इससे पहले तो करीब तीन किलोमीटर का किराया केवल पांच रूपए ही था। किराया दोगुना करने के बाद भी ई-रिक्शॉ वालों का हाल बुरा ही है, क्योंकि शहर की जितनी आबादी नहीं है उतने ई-रिक्शॉ संचालित हैं। ऐसे में एक-एक, दो-दो सवारियां लिए रिक्शॉ को भगाए डोलते हैं बेचारे। शाम को ई-रिक्शा में सवार होने के बाद जैसे ही सोमनाथ सर्किल पहुंचे वहां से एक पुलिसवाले ने हाथ दिया। रिक्शा रूक गया। पुलिसवाला बा-वर्दी सवार हो गया। सिर पर टोपी नहीं थी, उसकी जगह उमस मिश्रित गर्मी के कारण पसीने की लुढकती बूंदों ने ले ली थी। वर्दी पसीने से बेहाल थी। जवान फट से चालक के बगल में सवार हो गया। ये रोजाना का काम होगा इसलिए न पुलिस वाले ने बताया कि कहां जाना है न रिक्शा वाले पूछा।
डोकरा कहां रहवे...................यहां पास के गांव में।
शहर के आस-पास बहुत से गांव हैं, जहां से प्रतिदिन सैकडों ऑटो व ई-रिक्शा चालक अपनी जीविका यहां आकर चलाते हैं। शायद इसलिए भी शहर में ऑटो की भीड है और सवारियों को गंतव्य तक पहुंचाने से ज्यादा इनकी भूमिका जाम लगाने या दुर्घटनाओं के कारण बनने में दिखाई देने लगी है।
कितनी किश्त जा रही है....................... छह हजार रूपए महिना।
कितने का लिया। ....................डेढ लाख का।
कितनी किश्त भर दी।...............................छह-सात भर दी साब।
संभाल के रखा कर, आजकल चोर उचक्के बहुत हैं। बैटरी भी चोरी हो रही हैं और ऑटो भी बहुत चोरी हो रहे हैं। हमारे पास थाने में रोजाना केस आ रहे हैं। पकडे ही नहीं जा रहे। तू गरीब आदमी है। लेकिन चोर नहीं देखता.....अमीर है या गरीब। उसे बस चोरी से मतलब होता है।
बावर्दी पुलिसिया ज्ञान के बीच गांधी सर्किल आ गया। ठीक मूर्ति के बगल में ऑटो धीमा हुआ। यहीं गांधी जी की प्रतिमा के सामने पुलिस कोतवाली है। रिक्शा धीरे हुआ। पुलिस वाला नीचे उतर गया। रिक्शे वाले ने धीरे से रिक्शा आगे बढाया। अब तक सवारी के नाम पर केवल मैं ही बचा था। पूछा। इसने पैसे दिए कि नहीं। रिक्शा वाला बोला। नहीं साहब।
मुझे उस पुलिस वाले की कुछ ही देर पहले कही बातें याद आ गई........चोर नहीं देखता.....अमीर है या गरीब.......उसे बस चोरी से मतलब होता है.........पकडे नहीं जा रहे है। बस मुझे भी उतरना था। दस रूपए दिए और मैं उतरकर सीधा स्टेशन के अंदर चला गया।
पुलिसवाले की उन पंक्तियों में फिर एक वाक्य और जुड गया...............
बा-वर्दी भी होता है.................इसलिये..................होशियार !
No comments:
Post a Comment