Real Stories In Hindi | प्रेम के बीस साल
तुम क्या कह रहे हो, मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा है।
मैं वही कह रहा हूं जो नहीं हो सकता। तुम बार-बार जिद क्यों कर रही हो।
क्यों, आखिर हुआ क्या है, हम इतने साल बाद मिले हैं, फिर भी.....
अब तुम किसी और की ब्याहता हो......
इससे क्या हुआ। शादी के बाद भी हम मिले हैं। कई बार।
हां सही है, लेकिन, नासमझी ही गलती की इजाजत दे सकती है......
तो मैं ना समझ ही बने रहना चाहती हूं.....
सनी और सुनिता की यह बहस बढती ही जा रही थी। दोनों में अटूट प्रेम था। लेकिन बीस साल का युवा प्रेम वृद्धावस्था आने से पहले ही मृत्युशैया पर सोने को तैयार था। सुनिता जिद पर अडी थी। उसे सनी से वो प्यार चाहिए जिस पर उसके पति का हक है। लेकिन, सनी तैयार नहीं था। दोनों के अपने-अपने तर्क थे। इन्हीं तर्कों के बीच प्यार की नांव हिचकोले खा रही थी। सनी किसी भी कीमत पर सुनिता की बात मानने को तैयार नहीं था। सुनिता से कह रहा था.....
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नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। उम्र का यह पडाव, यह अवस्था नासमझी की इजाजत नहीं देती सुनिता। रूसवाई का बहाना बन जाएगी। कई जिंदगियां तुम्हारी जिद की बलि चढ जाएंगी। जरा सी ना समझी समाज को सिर उठाने का मौका देगी।
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सीधे-सीधे कहो सनी, तुम मुझसे कोई संबंध नहीं रखना चाहते। तुम्हें प्यार है ही नहीं।
यह प्यार ही है जो इस मुद्दे पर इतनी तकरार की इजाजत दे रहा है सुनिता, वर्ना इस दुनिया में गिद्धों की कमी नहीं। प्रणय निवेदन मैने भी कई बार किया था। तुमने हर बार यही कहा कि शरीर ही सब कुछ नहीं है। प्रेम तो दो आत्माओं का मिलन है। उस वक्त शायद मैं ज्यादा मैच्योर नहीं था, मुझे लगा तुम थी। लेकिन अब प्रतीत होता है यह सब उलट गया है। समय ने मुझे अधेड और तुम्हें बच्चा बना दिया है। यह समय की लीला, शरीर की मांग या विज्ञान की सच्चाई हो सकती है। समझ नहीं आ रहा। मेरी समझ में यह ऐसा प्रेम है, जिसमें वासना का झोल अधिक है। जो ना समझी की चादर ओढे हुए तमस फैलाना चाहता है और तुम उसे नहीं देख पा रही हो।
ओह, नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली।
तुम कुछ भी कहो सुनिता। चूहे खाना बिल्ली की मजबूरी और कर्म दोनों है। हज को जाना आचरण। आचरण अपने हाथ में होता है। सुधार किया जाना गलत नहीं हो सकता। लेकिन, मजबूरी और कर्म पर तंज कसना उचित नहीं। बहस इतनी बढी की सुनिता सनी के घर और दिल दोनों से निकल गई।
दोस्तों यह कहानी बीस साल पुरानी है। सनी और सुनिता एक ही कॉलेज में पढते थे। दोनों के विषय एक ही होने के कारण बार-बार मिलना जरूरत थी, जिसे नियती मान लिया था। मिलने लगे तो आकर्षण का अंकुरण होने लगा। इस अंकुरण में कहीं हल्का सा वासना का मुलम्मा भी रहा होगा, लेकिन समझ और अनुभव के अभाव में इस मुलम्मे की पहचान करना प्रेम के पंडितों के वश में भी नहीं। ये तो दोनों कॉलेजियट ही थे। समय के साथ दोनों साथ चलते रहे। कॉलेज अलग हुए, पढाई-लिखाई साथ हुई।
दोनों की नौकरी भी लग गई, लेकिन डिपार्टमेंट अलग-अलग थे। बिल्कुल अलग। उचित वातावरण मिले तो प्रेम के बीज फलते-फूलते हैं। यहां भी ऐसा ही हो रहा था। ऐसा खाद, बीज और हवा मिली की सनी और सुनिता का प्रेम गहरा प्रतीत होने लगा। शादी की उम्र हुई तो दोनों के मन में यही विचार आया कि शादी कर ली जाए। लेकिन जातियां अलग होने के कारण समस्या हो सकती थी। काफी हद तक मैनेज भी हो गया, लेकिन इससे पहले ही एक दिन ऐसा हुआ कि विश्वास की दीवारे दरकने लगी, प्रेम का दरिया रिसने लगा और ऐसे बियाबां तक फैल गया जहां प्रेम की सुनहरी धूप से झिलमिल करता निर्मल जल कलूषित होने लगा। इस दरिया को संभालना आसान नहीं था। सूरज की धूप इसे सुखा जरूर सकती थी।
दोनों के रास्ते अब अलग थे। दुनिया अलग थी। जिंदगी चल रही थी, लेकिन कहावत है ना, दुआ सलाम के भरोसे किसी को नाराज नहीं करना चाहिए। बस ऐसा ही कुछ चल रहा था। दोनों भले ही अलग हों, लेकिन नफरत और नासमझी का सख्त सूरज भी प्रेम के दरिया की सीलन को नहीं सुखा पाया। इसी सीलन से प्रेम की बूंदें फिर संघनित होने लगी थी और बरसते-बरसते सागर का रूप कब से लेने लगी, पता नहीं चला।
आपस में बातचीत के दौर से सब फिर से हरा होने लगा। दोनों मिले भी। वह सब भी हुआ जो इस उम्र की जरूरत थी। लेकिन जिंदगी ने फिर करवट ली। दुनिया को ऐसी बीमारी ने आ घेरा, जिसमें कोई रिश्ता-नाता न रहा। सब एक दूसरे से अलग हो गए। कोई अपना मर भी गया तो उसे छू तक नहीं सके। जब तक इस बीमारी का अंत होता दूसरा दौर शुरू हो चुका था। इसी दौर के बाद एक दिन सुनिता सनी से मिलने आई थी।
सुनिता चाहती थी कि फिर से वो एक हों, लेकिन यहां दो समंदरों की धाराएं उलट थी। बातचीत का दौर भी चलता रहा। सुनिता सनी के प्यार पर अपना हक मानती थी। जो कभी सेक्स के बारे में गलती से भी बात करना पसंद नहीं करती थी, वह सनी को देखना चाहती थी, उस अवस्था में जिसमें, या तो इंसान जन्म लेता है या फिर मरता है। सनी सन्न था। कि सुनिता को आखिर हो क्या गया है। क्योंकि सनी ने जब भी सुनिता से ऐसी बातें की, तब हर बार सनी को नासमझी का ठीकरा स्वयं के सिर फोडना पडा था। अब अचानक! क्या है यह सब ! कैसा चक्र है समय का! जिस प्रणय जल का सनी प्यासा था, सुनिता वह घडा तो किसी और के समक्ष सहर्ष प्रस्तुत कर चुकी थी। अब क्या है! प्रेम है! वासना है ! पागलपन है! जो भी था, सनी की समझ से परे था। सुनिता सनी की हर बात पर सहमत थी। उसकी हर बात मानने को तैयार थी, पर बदले में वह सनी का प्यार चाहती थी, जिसके लिए सनी कतई तैयार नहीं हो रहा था।
सनी संबंध खत्म करने में विश्वास नहीं रखता था। वह चाहता था कि समय के हिसाब से संबंध बने रहें, लेकिन बहुत स्वस्थ। ताकि किसी भी तरह सभी जिंदगियों को बचाया जा सके। क्योंकि दोनों तरफ बच्चे बडे हो रहे थे। उनके कॅरियर का सवाल था, लेकिन सुनिता पर बचपना हावी था। प्यार जोडना सिखाता है, इसलिए सनी वह सब सुनकर भी चुप था जो उसके स्वाभिमान और पौरूष को गहरी चोट पहुंचा रहे थे। सुनिता का स्वभाव आक्रामक होता जा रहा था, ठीक वैसे ही जैसे किसी की इच्छा पूरी नहीं होने पर होता है। एक हठी बालक, हठी राजा की तरह। यह त्रिया हठ थी। उग्र, हिंसक थी। लेकिन, प्रेम की झीनी डोर से नियंत्रित भी थी।
क्रमश:
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