Real Stories In Hindi विक्षिप्त कौन ? - NEWS SAPATA

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Wednesday, August 17, 2022

Real Stories In Hindi विक्षिप्त कौन ?

विक्षिप्त कौन ?

Real Stories In Hindi

real stories in hindi
Dausa Railway Station, Rajasthan

नमस्कार दोस्तों। मैं हूं आपका दोस्त नीतेश। जैसा की आप सभी जानते हैं कि मेरे द्वारा लिखी गई प्रत्येक कहानी रीयल स्टोरी यानि वास्तविक कहानी होती है। जो आस-पास घटित होता है वही सब शब्द चित्र के रूप मंे आपके समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। यह कहानी भी सच्ची घटना पर आधारित है।

किसी कारण वश दो दिन पहले फिर मुझे टेªन का सफर करना पडा। इतने सफर कर चुका हूं कि यह मेरे लिए बहुत आम हो गया है। जैसे ही अलवर रेलवे स्टेशन से टेªन में चढा सीट की बहुत मारा-मारी थी। लेकिन जैसे-तैसे मुझे पूरी सीट मिल गई और मैं आराम से चार वाली सीट पर कॉर्नर पर बैठ गया। जनरल कोच था, जिसमें एक तरफ चार-चार की सीटें होती हैं और एक तरफ सिंगल-सिंगल सीट होती हैं। सिंगल वाली सीट पर आमने-सामने दो लडके बैठे हुए थे, जिसमें एक लडका बहुत कम समय के लिए सीट पर बैठता। बाकी समय वह दूसरी सीट पर जाकर अपने परिजनों के पास जाकर बैठ जाता। यानि एक ही व्यक्ति दो सीटें एक साथ एंगेज कर बैठा था। उसका जो साथी उसकी सामने वाली सीट पर बैठा था वह बार-बार उसकी खाली सीट पर बैग रख लेता और किसी को बैठने नहीं दे रहा था। वह कुछ झगडालू स्वभाव का था। 

तभी राजगढ स्टेशन से तीन-चार लोग टेªन में चढे। उनमें तीन बुजुर्ग थे और उनके साथ एक युवक था, जिसने सिर पर ठेठ देहाती अंदाज में गमछा बांधा था, लेकिन जींस के साथ टी-शर्ट और पांव में चमडे की चप्पलें पहनी थी, जो कि कुछ कीचड में सनी थी। बैठने की जगह कम थी और सिंगल वाली वह सीट खाली थी। वह युवक आया और बेधडक सीट पर रखा बैग हटा बैठ गया। युवक के साथ ही उसके पिताजी भी उसी के पास आकर खडे हो गए।  उसे बार-बार हाथ के इशारे से चुप कराने की कोशिश कर रहे थे। क्योंकि उन्हें लग रहा था कि कहीं सीट कर लेकर विवाद न हो जाए। एकलखोंडापन, सहनशीलता की कमी और सुपीरियरिटी कॉम्पलेक्स के चलते आजकल रेलों में इस तरह के विवाद हर जनरल और स्लीपर बोगी में होते हैं। युवक के सीट पर बैठते ही स्वभाव वश सामने वाले ने उसे हडकाने वाले अंदाज में यह कहते हुए बैठने से मना किया कि यहां उसका साथी बैठा है, इसलिए वह यहां नहीं बैठे। जबकि वह सीट काफी देर से खाली थी और उस पर केवल बैग रखा था। 

युवक ने उसे यह कहते हुए लपकाया कि यह रेल तेरे बाप की नहीं है। सीट खाली है सो बैठ गया। आएगा जब देखेंगे। साथ ही इसी अंदाज में सामने बैठे लडके का पांव भी नीचे रखवाया जो उसने सामने वाली सीट पर रखा हुआ था। इतने में मेरे बगल वाले ने मुझे बताया कि यह युवक विक्षिप्त है और इसे मेहंदीपुर बालाजी दर्शन के लिए लेकर जा रहे हैं। 

जिन्हें नहीं पता उन्हंे बताते चलें कि मेहंदीपुर बालाजी दर्शन के लिए हजारों की संख्या में लोग प्रतिदिन सफर करते हैं। मंगलवार और शनिवार को बांदीकुई जंक्शन पर आने वाली सभी रेलों में बालाजी के दर्शनार्थियों की विशेष भीड भी रहती है। लेकिन वे लोग भी होते हैं जो भूत-प्रेत, जादू टोने में यकीन रखते हैं और मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों को मेहंदीपुर बालाजी लेकर जाते हैं। मान्यता है कि मेहंदीपुर बालाजी दर्शन से भूत-प्रेत, उपरली-परायी का सायां उतर जाता है। मंदिर परिसर में काफी संख्या में ऐसे लोग मिल जाएंगे, जिन्हें देखते ही समझ आ जाता है कि ये लोग इसी उद्देश्य पूर्ति के लिए आए हुए हैं। खैर यह श्रद्धा का विषय हो सकता है। हम अपनी मूल कहानी पर लौटते हैं। 

सीट को लेकर दोनों में कुछ बहस होने लगी थी और युवक के पिता और साथ आए बुजुर्ग उसे शांत कराने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन वह युवक वहीं बैठने की जिद पर अडा रहा और बैठा भी रहा। उठा नहीं। साथ ही अपने पिता को भी दूसरी तरफ वाली सीटों की तरफ इशारा करते हुए कहता रहा कि वहां जाकर बैठो। लेकिन उसके पिता उसे नहीं छोड सकते थे। वे जानते थे कि उनका पुत्र कुछ मानसिक विक्षिप्त है। इसलिए वे उसे शांत रहने के लिए कह रहे थे। मैंने मामला समझते हुए युवक के पिता को अपने पास थोडी सी जगह देकर बिठा लिया, क्योंकि चार की सीट पर पांच आराम से एडजस्ट हो सकते हैं। अपने पिता को सीट मिलती देख युवक ने मुझे तुरंत नमस्कार किया। बोला साहब नमस्कार। दोस्तों, इन्हीं शब्दों ने मुझे इस घटनाक्रम को कहानी के रूप में पिरोने की प्रेरणा दी।

जिसे मानसिक विक्षिप्त समझ इलाज के लिए ले जाया जा रहा है उसने एक काम तो यह कर दिखाया कि सीट पर बिना बात हक जताने वाले लडके को बडी आसानी से सबक सिखा दिया। यह अलवर से राजगढ के बीच कोई नहीं कर पाया था। दूसरा पिताजी को सीट मिलती देख सीट देने वाले के प्रति (यानि मेरे प्रति ) कृतज्ञता का भाव दिखाया। 

यानि स्पष्ट है कि जिस युवक को विक्षिप्त समझ इलाज के लिए ले जाया जा रहा था उसे अच्छे-बुरे की बहुत अच्छी समझ थी। दूसरे वह गलत को गलत कहने का साहस रखता था। इस घटनाक्रम के बाद मैं यही सोच रहा हूं कि इस बोगी में विक्षप्त कौन था।

दोस्तों कहानी पढने के बाद जरूर बताएं कि आपकी नजरों में इस बोगी में विक्षिप्त कौन था। हमें आपके जवाब का इंतजार रहेगा। जवाब आप नीचे कमेंट बाक्स में दे सकते हैं। कहनी पसंद आए तो लाइक करें और ऐसी ही रीयल स्टोरीज के लिए हमें फॉलो करें।

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