सबको क्षमा- सबसे क्षमा
प्रत्येक धर्म के कुछ विशेष पर्व/त्योहार होते हैं, जिन्हें धर्मावलंबी बड़े ही उत्साह , आदर सम्मान के साथ मनाते हैं । सामान्यतया यह देखा जाता है कि ये पर्व/त्योहार किसी घटना, देवी देवता या महापुरुष से संबंधित होते हैं। परंतु जैन धर्म में एक बड़ा ही महत्वपूर्ण पर्व आता है -पर्यूषण पर्व, जिसका संबंध किसी घटना, देवी- देवता या महापुरुष से नहीं है, वरन् जिसका संबंध है सर्व जीव कल्याण से।
पर्यूषण पर्व आत्म शुद्धि का पर्व है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है क्षमापना। भगवान महावीर की वाणी है-
खामेमि सब्वे जीवा, सब्वे जीवा खमंतु में।
मित्ति में सव्व भुएस्, वैरं ममझंं न केणई।
मैं सभी जीवो को क्षमा करता हूं, सभी जीव मुझे क्षमा करें । सभी प्राणियों के साथ मेरी मैत्री है, किसी के साथ मेरा बैर नहीं।
उपरोक्त सूत्र को जैन धर्म का सार कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह सूत्र अनमोल है। यह महावीर दर्शन की चरम पराकाष्ठा है। महावीर बहुत गहराइयों तक उतरने वाले वैज्ञानिक हैं, गहरे मनोवैज्ञानिक हैं। वे मानव मन को अच्छी तरह जानते हैं। उनकी वाणी का एक-एक शब्द कीमती है। यहां शब्दों का क्रम बड़ा महत्वपूर्ण हो जाता है। महावीर सबसे पहले कहते हैं - 'मैं सब जीवों को क्षमा करता हूं,' तत्पश्चात कहते हैं -'सभी जीव मुझे क्षमा करें'।
साधारण बुद्धि का क्रम उल्टा होता, वह कहते - 'सभी जीव मुझे क्षमा करें , मैं सभी जीवो को क्षमा करता हूं।' लेकिन महावीर मानव मन की गहराइयों को जानते हैं। हमें लगता है कि क्षमा मांगना बड़ी बात है, क्षमा करना आसान है। परंतु महावीर जिस दृष्टि से मानव मन का परीक्षण करते हैं, उन्हें यह बात साफ नजर आ जाती है कि वास्तविकता एकदम उलट है।
आप देखिए अगर आप गलती करते हैं , तो क्या होता है ?आपको पछतावा होता है।आप चाहते हैं कि आपने जो गलती की है उसको समाप्त कर दिया जाए, उसे भुला दिया जाए। आपने जिसके साथ गलती की है, वह उसे भूल जाए। आप चाहेंगे आपके द्वारा किए गए गलत का कोई नामोनिशान नहीं रहे। आप तुरंत क्षमा याचना को प्रस्तुत हो जाते हैं।आप किसी भी तरह चाहते हैं कि वह गलती जिसका आपको पछतावा है वह माफ कर दी जाए , क्योंकि इसके बाद आप अपनी छवि एक नए रूप में गढ़ लेते हैं , खुद को अच्छा मानने का भाव पैदा होता है।
अब यही बात हम देखते हैं कि यदि कोई दूसरा व्यक्ति आपको चोट पहुंचा दें तो बड़ा मुश्किल है उसे क्षमा करना।वह व्यक्ति क्षमा याचना कर रहा है परंतु आपके अंदर कोई पश्चाताप का भाव नहीं है, वरन प्रतिशोध की भावना है कि इसमें गलती कैसे कर दी। आप के मन मस्तिष्क में यह प्रश्न निरंतर घूमता रहता है। क्षमा करना मुश्किल हो जाता है ।इसलिए क्षमा करना क्षमा याचना से बड़ा कार्य है। उसमें अधिक उदारता और साहस की जरूरत है। इसलिए महावीर क्षमा करने को पहले रखते हैं और क्षमा याचना को बाद में।
क्षमा याचना के समय हम बोलते हैं - 'मेरे द्वारा मन वचन और काया से जाने अनजाने आपके प्रति यदि कोई गलती हुई/ कष्ट हुआ या चोट पहुंची तो उसके लिए मैं क्षमा याचना करता हूं।' इसमें तीन प्रकार से चोट पहुंचाने की बात हुई है ; शरीर से, वचन से और मन से। शरीर द्वारा दिए गए कष्ट बहुत ही प्रत्यक्ष नजर आते हैं। सामान्यतया शरीर के क्रियाकलापों के कारण जानकर ही दूसरों को चोट पहुंचाई जाती है। अनजाने शारीरिक कष्ट कैसे पहुंचाया जाता है ?
इस प्रश्न को व्यापक दृष्टि से देखना होगा क्योंकि महावीर के दर्शन में शामिल हैं एकेंद्रीय, द्विंद्रीय, त्रिंद्रीय, चतुरंद्रीय, पंचेद्रीय जीव । आप प्रश्न करेंगे कि हम अनजाने में इनको शारीरिक कष्ट कैसे दे सकते हैं ?क्या आप जानते हैं कि जब हम सांस लेते हैं तो हजारों जीव नष्ट हो जाते हैं । आपके बोलने मात्र से जीव नष्ट होते हैं , हिलने डुलने चलने फिरने शरीर की प्रत्येक क्रिया से अनजाने में हम जीवो को कष्ट दे जाते हैं।
महावीर के जगत में सभी जीव शामिल है । श्वसन हमारी प्राकृतिक अनिवार्यता है,परंतु जीव कल्याण हमारा मूल मंत्र है।हमारे शरीर में करोड़ों जीव निवास करते हैं। अनजाने में ही हम हिंसा के कारण बनते हैं ।महावीर चाहते हैं हमारी चेतना सचेत हो , सजग हो , सूक्ष्मतम जीव के प्रति भी।एकेंद्रीय का महत्व किसी भी प्रकार से कमतर नहीं है क्योंकि एकेंद्रीय भी आत्मवान है। इसलिए हमारी क्षमा याचना होती है सभी जीवो से।
शरीर स्थूल है और वचन सूक्ष्म। वाणी क्या-क्या नहीं कराती, वाणी से हमने जितना कष्ट पहुंचाया है ,अंदाजा लगाना मुश्किल है ।द्रौपदी का एक वाक्य महाभारत करा देता है। महावीर वाणी संयम को बहुत महत्व देते है। वाणी से भी किसी को कष्ट ना पहुंचे यह तो यत्न करते ही रहे और अगर जाने अनजाने में कोई कोई कष्ट पहुंचाया हो तो उसके लिए क्षमा याचना मांगी जाती है।
और सबसे सूक्ष्म स्तर आता है मन का । मन की गति कोई विरला ही पकड़ पाता है। मन साफ्टवेयर है और सारा संसार हार्डवेयर है। कोई भी विचार सर्वप्रथम मन में आता है और फिर परत दर परत जमा होकर मन को इतना आंदोलित कर देता है कि वह वचन और क्रिया रूप में परिणत हो जाता है । महावीर इस तथ्य को जानते हैं इसलिए मन से भी किसी को कष्ट या दुख पहुंचाया हो, मन से यदि कभी जाने या अनजाने में विचार आया हो तो उसके लिए भी क्षमा प्रार्थना क्योंकि महावीर जानते हैं यदि मन के विचारों को , मन में ही रहने दिया जाए, उनका निरीक्षण परीक्षण ना हो तो भी क्रिया रूप परिणत हो जाते हैं।
एक प्रसिद्ध रशियन कहानी है कि एक कस्बे में एक बुढ़िया साहूकार रहती थी । वह लोगों को उधार पैसे देती थी और बड़ा ब्याज वसूल करती।ब्याज इतना ज्यादा होता था कि एक बार जिसने उससे कर्ज ले लिया, वह अपनी पूरी संपत्ति जमीन-जायदाद गंवाने के बाद भी कर्ज मुक्त नहीं हो पाता परंतु मजबूरी ऐसी होती कि लोगों को उधार लेना पड़ता और उस बुढ़िया के अलावा कोई उधार देने वाला नहीं होता था। रोज बुढिया के यहां से लोग रोते हुए जाते थे । बुढ़िया के मकान के ठीक सामने वाले मकान में एक किराएदार रहता था । वह यह सब कुछ रोज देखता। वह सोचता कि यह कितनी दुष्ट बुढिया है कोई क्यों इसका गला नहीं दबा देता। यह विचार उसके मन में निरंतर चलता रहता। एक बार ऐसा हुआ कि उस व्यक्ति को पैसों की जरूरत हुई और वह भी उधार लेने उसी बुढ़िया के पास गया ।उसने बुढ़िया को गिरवी रखने के लिए अपनी घड़ी दी । बुढ़िया पैसे देने ही वाली थी कि अचानक उसने अपने हाथों से बुढ़िया का गला दबा दिया। वह सोच ही नहीं पाया कि उसने क्या कर दिया। जज के सामने उसने बयान दिया कि बुढ़िया को देखते ही मेरे मन में न जाने क्या हुआ कि मैं उसका गला दबा बैठा । मेरी उससे कोई दुश्मनी नहीं थी।
दरअसल उसके मन के अंदर इतनी गहराई में बात समा गई थी कि बुढ़िया को देखते ही वह क्रिया रूप परिणत हो गई।
महावीर मानव मन की इस कमजोरी को अच्छी तरह जानते हैं, इसलिए कहते हैं , भले तुमने कुछ किया हो या ना किया हो, तुम्हारे शरीर से कष्ट पहुंचा हो या ना पहुंचा हो, वाणी से दिल दुखाया हो या ना दुखाया हो, मन से सोच भी लिया हो तो क्षमा याचना कर लेना । इसलिए मन से भी जाने अनजाने गलत सोचा हो तो भी क्षमा याचना।
महावीर आगे कहते हैं "सभी प्राणियों के साथ मेरी मैत्री है किसी के साथ मेरा बैर नहीं"। क्षमा मांग ली और क्षमा कर दिया इसके बाद क्या कोई बैर बसता है? जो इतना साहसी है, वह सभी प्राणियों का मित्र हो ही जाता है । जब बैर के कारक चले जाते हैं तो बैर स्वत: चला जाता है और स्थापित हो जाती है परम मैत्री की पवित्र भावना।
यह मैत्री लेनदेन पर आधारित सांसारिक मैत्री नहीं है, यह मैत्री किसी प्रयोजन वाली मैत्री नहीं है, यह मैत्री किसी के विरुद्ध मैत्री नहीं है । यह मैत्री है , सभी प्राणियों से मैत्री, जीव कल्याण की मैत्री, सर्व कल्याण की मैत्री। यह मैत्री परम मंगलदायक, मंगलकारक और सर्वहितकारी है ।
इसलिए " सबको क्षमा सबसे क्षमा "।
Very well written 🙏
ReplyDeleteTook me time to read all the comments, but I really enjoyed the article. It proved to be Very helpful to me and I am sure to all the commenters here! It’s always nice when you can not only be informed, but also entertained! tulja bhavani
ReplyDelete