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Sunday, May 26, 2019

CTET Preparation In Hindi | CTET Social Study Notes | CTET Online Classes Social Science | CTET Study Material in Hindi PDF | CTET Social Science Notes PDF in Hindi

CTET Preparation In Hindi | CTET Social Study Notes | CTET Online Classes Social Science | CTET Study Material in Hindi PDF | CTET Social Science Notes PDF in Hindi


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वैदिक काल

ऋग्वेदकाल- 1500 से 1000 ई पू

उत्तर वैदिक काल-1000 से 600 ई पू

ऋग्वेदिक कालः-

सप्त सैंधव प्रदेश की सात नदियां और प्राचीन नाम

सिंधु-सुवासा
सतलज-शतुद्रि
व्यास-विपाशा
रावि-परूष्णी
चेनाव-अस्किनी
झेलम-वितस्ता
घग्घर-सरस्वती
-इस काल में आर्य आए और वे पहले पंजाब और अफगानिस्तान में बसे थे।
-समाज के संगठन का आधार गोत्र था।
-समाज पितृसत्तात्मक था। संयुक्त परिवार थे।
-नप्तृ शब्द का प्रयोग दादा दादी, नाना नानी, पोते आदि सभी के लिए होता था।
-समाज का भेद व्यवसाय के आधार पर था। ब्राहम्ण, क्षत्रिय वैश्य और शूद्र
-वर्ण शब्द का अर्थ कहीं तो रंग से है और कहीं व्यवसाय आधारित है।
-शूद्र शब्द का उल्लेख सर्वप्रथम पुरूष सूक्त में मिलता है।
-ऋग्वेद में दास प्रथा का उल्लेख है।
-ग्रामीण संस्कृति थी।
-मूल पेशा पशुपालन था।
-गाय महत्वपूर्ण पशु था। ऋग्वेद में 172 बार गाय का उल्लेख है।
-ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल में खेती की प्रक्रिया का उल्लेख है।
-अनाज के रूप में केवल यव या जौ का  ही उल्ेख है।
-इस काल में आर्यों को पांच ऋतुओं का ज्ञान था।
-बढाई को तक्षण, धातुकर्मी को कर्मार कहते थे।
-हिरण्य का अर्थ सोना था।
-कपास का उल्लेख नहीं है।
-बेकनाट-ऋण देकर ब्याज लेने वाले को यानि सूदखोर के लिए यह शब्द आया है।
-ऋग्वैदिककाल में लोग बहुदेववादी होते हुए भी एकेश्वरवादी थे।


उत्तर वैदिक काल

-सामाजिक व्यवस्था का आधार वर्णाश्रम व्यवस्था थी।
-चार वर्ण-ब्राहम्ण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र
-ऐही ब्राहमण के लिए, आगच्छ क्षत्रिय के लिए, आद्रव वैष्य के लिए और आधव शूद्र के लिए प्रयुक्त शब्द हैं।
-ब्राहमण, क्षत्रिय और वैष्य की उपनयन संस्कार के अधिकारी थे और इन्हें ही द्विज कहा जाता था। शूद्रों को नहीं।
-प्रमुख पेशा खेती हो गया था।

वैदिक साहित्य के प्रश्नः-

ऋग्वेद-

-विश्व का प्रथम गं्रथ
-रचना-3500 ईपू
-1028 सूक्त
-पद्यामक
-भाषा संस्कृत
-प्रमुख देवता इंद्र, अग्नि और सोम
-नए मंडल-पहला और दसवां
-पुराने मंडल- दो से सात तक हैं।
-असतो मा सदगमय ऋग्वेद से ही लिया है।
-गायत्राी मंत्र ऋग्वेद के तीसरे मंडल से लिया है।
-इसका पुरोहित होता कहलाता था।
-पुरूष सूक्त ऋग्वेद के दसवें मंडल में है।

यजुर्वेद

-इसका पुरोहित अध्वर्यु कहलाता था।
-इसमें यज्ञ को संपन्न कराने की विधियां हैं।
-यह गद्य-पद्य़ दोनों में है।
-इसमें राजसूय और वाजपेय यज्ञ का उलेख है।
-इसकी दो शाखाएं शुक्ल यजुर्वेद और वाजसनेही हैं।

सामवेद

-गायन संबंधित
-1875 ऋचाएं-75 मूल बाकी ऋग्वेद से
-इसका पुरोहित उदगाता कहलाता था।

अथर्ववेद

-जादूटोना
-अथर्वा ऋषि लेखक
-20 मंडल-731 सूक्त-5839 मंत्र
-अन्य नाम-ब्रह्मवेद, भैष्ज्यवेद और महीवेद हैं।
-इसका पुरोहित ब्रह्मा कहलाता था।

उपनिषद

-वैदिक साहित्य के अंतिम भाग हैं। इसलिए वेदान्त भी कहा जाता है।
-कुलसंख्या-108 पर प्रमुख 12 उपनिषद ही हैं।
-सत्यमेव जयते-मुंडकोपनिषद से लिया है।
-तत्वंमसि छान्दोग्य उपनिषद से ली है।
-नचिकेता और यम संवाद कठोपनिषद में है।
-उपनिषदों में दार्शनिक विचारों का संग्रह है।

वेदांग

-कुल 6 हैं
-शिक्षा
-कल्प
-व्याकरण
-निरूक्त
-छन्द
-ज्योतिष

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