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Friday, June 15, 2018

Chhand | छन्द

Chhand | छन्द

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chhand

लौकिक संस्कृत में मात्र पदों को ही छन्द माना जाता है। जबकि वैदिक संस्कृत में गद्य-पद्य सभी में छन्द होते हैं।
कात्यायान अनुसार छन्द लक्षण :-
अक्षरों का परिमाण ही छन्द है।
यदक्षरपरिमाणं त्च्छन्द :
छन्द में एक अक्षर कम होने पर निचृत व एक अक्षर अधिक होने पर भूरिक कहते हैं। जैसे गायत्री में 24 अक्षर हैं। एक कम यानि 23 अक्षर होने पर इसे निचृत गायत्री कहेंगे।
दो अक्षर कम होने पर विराट, दो अक्षर अधिक होने पर स्वराट कहेंगे।
पिंगलक ने छन्द सूत्र लिखा है। ये पाणिनी के अनुज थे।
यमाताराजभानसलगम पिंगलक का ही दिया गया सूत्र हैै।

वैदिक छंद के प्रकार:-

अक्षरगणनानुसारी
वादाक्षरगणनानुसारी
वैदिक छंदों की संख्या 26 मानी गई है। इनमें आरंभिक 5 वेद में प्रयुक्त ही नहीं हुए। शेष 21 को 3 सप्तकों में बांटा गया है।
प्रथम सप्तक
1 गायत्री-24
2 उष्णीक- 28
3 अनुष्टुप- 32
4 बृहती -36
5 पंक्ति- 40
6 त्रिष्टुप -44
7 जगती- 48

द्वितीय सप्तक
1 अतिजगति- 52
2 शक्वरी- 56
3 अतिशक्वरी- 60
4 अष्टि- 64
5 अत्यष्टि- 68
6 धृति -72
7 अत्यधृति- 76
द्वितीय सप्तक के सभी छंद अतिछन्द कहलाते हैं।
सभी में अक्षर संख्या पहले की अपेक्षा 4 अधिक होती है।

तृतीय सप्तक
1 कृति- 80
2 प्रकृति -84
3 आकृति -88
4 विकृति -92
5 संस्कृति -96
6 अभिकृति -100
7 उत्कृति -104
ऋग्वेद में सर्वाधिक त्रिष्टुप फिर गायत्री और तीसरे स्थान पर सर्वाधिक जगती छंद का उपयोग किया गया है।

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