शिक्षकों के लिए भी परेशानी बना स्वच्छता अभियान
अलवर। प्रदेश भर में सरकार का ऐसा डंडा घूम रहा है कि हर वर्ग त्रस्त हो चुका है। नोटबंदी और जीएसटी से व्यापारी तो वेतन आयोग के चक्कर में कर्मचारी। अब एक और ऐसा फरमान आया है कि परेशानी शिक्षक वर्ग की नाक तक आ गई है, लेकिन यह वर्ग अभी चुप बैठा है और पानी सिर से गुजर जाने का इंतजार कर रहा है।
क्या है नई समस्या
शिक्षकों के लिए दरअसल नई समस्या है एक नया आदेश। यह आदेश पहले तो मौखिक रूप से चला। इसका स्रोत औपचारिक तौर पर किसी को नहीं पता लेकिन इस आदेश ने शिक्षकों को इतना परेशान कर दिया है कि उनसे न तो खाते बन रहा है न उगलते।क्या है आदेश में
औपचारिक तौर पर यह आदेश आपको स्कूलों की आदेश पंजिका में मिलेगा। इस आदेश में लिखा है कि शिक्षक समय से दो घंटा पहले आएंगे और खुले में शौच जाने वालों को समझाएंगे। समझाएंगे ये कि वे एक तो खुले में शौच नहीं जांए दूसरे घर में शौचालय बनवाएं।समस्या क्या है
समस्याएं कई हैं। पहली तो समस्या शिक्षकों के साथ है कि लोग समझ नहीं रहे। दूसरी बात जब यह कहा जाता है कि शौचालय बनवाएं तो सुनने को मिलता है कि पैसा आप देंगे या सरकार ? ऐसे में शिक्षक बेचारा चुप। तीसरी बात शिक्षकों को स्कूल समस ये दो घंटा पहले आकर किसी शौच करते आदमी को ढूंढऩा पड़ रहा है फिर उसके साथ माथामारी करनी पड़ रही है। यानि बच्चों को पढ़ाने से पहले शौच जाने वालों के साथ माथापच्ची।ग्रामीणों का तर्क उपेक्षा करने लायक नहीं
जब ग्रामीणों को समझाया जाता है कि वे घरों में शौचालय बनवाएं तो उनके तर्क ऐसे हैं कि इनका जवाब सरकार के पास नहीं है। पहला तर्क तो यह है कि जिन्होंने शौचालय बनवा लिए हैं उन्हें अभी तक पैसा नहीं मिला है। चक्कर लगा लगा कर थक गए। सरकारी दफ्तर के चक्कर लगाते लगाते काम छूटता है सो अलग। दूसरा तर्क यह है कि पानी पीने के लिए ही पर्याप्त नहीं आता। जलदाय विभाग के चक्कर लगा लगाकर ग्रामीण पूरी गर्मी निकाल देेते हैं पर उन्हें पीने जितना पानी नसीब नहीं होता। ऐसे में शौचालय में डालने का पानी कहां से लाएंगे। ग्रामीणों का कहना है कि एक आदमी का काम एक बोतल से चल जाता है जबकि शौचालय में कम से कम पांच लीटर पानी एक जने को चाहिए। इतना पानी कहां से लाएंगे। सरकार स्वच्छ भारत अभियान चलाने से पहले पानी की व्यवस्था करे तो अपने आप भारत स्वच्छ हो जाएगा।
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