मजीठिया मामला: मुंबई हाई कोर्ट ने दिया “डी. बी. कॉर्प लि.” को कर्मचारियों का बकाया जमा करने का निर्देश
देश की आर्थिक राजधानी से एक बड़ी खबर आ रही है। मुंबई हाई कोर्ट ने ‘दैनिक भास्कर’ की प्रबंधन कंपनी डी. बी. कॉर्प लि. को निर्देश दिया है कि मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार, प्रिंसिपल करेस्पॉन्डेंट धर्मेन्द्र प्रताप सिंह, रिसेप्शनिस्ट लतिका आत्माराम चव्हाण और आलिया इम्तियाज शेख की जो बकाया व एरियर्स की राशि बनी है… जिसके आधार पर श्रम विभाग ने वसूली प्रमाण-पत्र जारी किया है, उसका हिस्सा वह कोर्ट में जमा करे। इसी के साथ कोर्ट ने इस मामले में किसी भी तरह की सुनवाई पर दो सप्ताह की रोक लगा दी है।
गौरतलब है कि इन तीनों मीडियाकर्मियों ने माननीय सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट उमेश शर्मा के दिशा-निर्देश पर मजीठिया वेज बोर्ड के मुताबिक, वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट की धारा 17 (1) के तहत महाराष्ट्र के लेबर कमिश्नर कार्यालय में अपने बकाए की मांग की थी… यह राशि 10 लाख से लेकर 42 लाख रुपए तक बनी है, जिसे पाने के लिए इन्होंने उक्त विभाग में क्लेम लगाया था। इनके क्लेम से बौखलाए “डी. बी. कॉर्प लि.” प्रबंधन ने आनन-फानन में धर्मेन्द्र प्रताप सिंह का सीकर (राजस्थान) और लतिका चव्हाण का सोलापुर (महाराष्ट्र) ट्रांसफर कर दिया, जबकि आलिया शेख का ट्रांसफर न करने के पीछे कंपनी की रणनीति थी… जी हां, सिंह और चव्हाण ने इस ट्रांसफर को जब इंडस्ट्रियल कोर्ट में चुनौती दी और कोर्ट में कहा कि ट्रांसफर इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि हमने मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार अपना बकाया मांगा है तो जवाब में कंपनी ने शेख के मामले का हवाला देते हुए कहा कि यदि इनका ट्रांसफर ‘मजीठिया’ के चलते किया गया होता तो शेख भला कैसे बच पातीं… लेकिन उनका ट्रांसफर तो नहीं किया गया है!
धर्मेन्द्र प्रताप सिंह और लतिका चव्हाण ने कंपनी का डटकर मुकाबला किया… बेशक, लतिका को लेबर कोर्ट से राहत नहीं मिली। यह बात और है कि कोर्ट द्वारा सिंह के पक्ष में स्टे देने के बावजूद यह घाघ कंपनी उन्हें ड्यूटी पर लेने में आना-कानी करने लगी तो सिंह ने “डी. बी. कॉर्प” के खिलाफ लेबर कोर्ट में अवमानना का मुकदमा दायर कर दिया… आखिर कंपनी को मजबूरन उन्हें मुंबई में ही ड्यूटी ज्वाइन करानी पड़ी! वैसे लतिका ने भी हिम्मत नहीं हारी है… उन्हें भी अपने देश की न्याय-व्यवस्था पर भरोसा है। लतिका ने लेबर कोर्ट के फैसले को मुंबई होई कोर्ट में चुनौती दी है, जिसकी सुनवाई चल रही है।
आपको बता दें कि मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों की खातिर असिस्टेंट लेबर कमिश्नर नीलांबरी भोसले के समक्ष इन तीनों मीडियाकर्मियों की सुनवाई करीब एक-डेढ़ साल तक चली… अंतत: सुश्री भोसले ने जब यह पाया कि इन तीनों का दावा सही है, उन्होंने “डी. बी. कॉर्प” को आदेश दिया कि वह इनका बकाया शीघ्र अदा करे। लेकिन चूंकि इस कंपनी ने तीन सप्ताह बाद तक भी उक्त आदेश पर अमल नहीं किया, लिहाजा सहायक कामगार आयुक्त सुश्री भोसले ने “डी. बी. कॉर्प” के विरुद्ध आरसी (रिकवरी सर्टीफिकेट) जारी कर दिया… मुंबई शहर के जिलाधिकारी से अपील की कि वे संबंधित कंपनी से (भू-राजस्व की भांति) वसूली करके इन मीडियाकर्मियों को उनकी बकाया राशि दिलाएं।
जाहिर है कि लेबर डिपार्टमेंट से जैसे ही यह आरसी जारी हुई, मुंबई के जिलाधिकारी के निर्देशानुसार, तहसील कार्यालय की टीम “डी. बी. कॉर्प” के माहिम (मुंबई) स्थित कार्यालय पहुंच गई… इसके बाद तो कंपनी में हड़कंप मच गया! जैसा कि अनुमान था, कंपनी भागकर मुंबई हाई कोर्ट पहुंची और स्टे के लिए कोर्ट के सामने झारखंड के एक पुराने मामले को बतौर रिफरेंस रखा। फिर भी कोर्ट की कॉपी से प्रतीत होता है कि वहां कंपनी की चाल तब धरी की धरी रह गई, जब माननीय अदालत ने निर्देश दिया कि वह इन मीडियाकर्मियों की बकाया राशि का पार्ट पेमेंट कोर्ट में जमा करवाए… तब (दो सप्ताह) तक इस मामले में कंपनी को राहत मिल गई है। माना जा रहा है कि पार्ट पेमेंट के तौर पर कंपनी को इन मीडियाकर्मियों की बकाया राशि का भले ही 40-50 फीसदी रकम कोर्ट में जमा करवानी पड़े, वह रकम भी कई लाख के आंकड़े तक पहुंच जाएगी। बहरहाल, इस मामले की अगली सुनवाई नवंबर की पहली तारीख को मुंबई उच्च न्यायालय में निर्धारित है।जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड मामले में देश भर के मीडियाकर्मियों के पक्ष में माननीय सुप्रीमकोर्ट में लड़ाई लड़ने वाले एडवोकेट उमेश शर्मा के सुझावानुसार ये कर्मचारी संविधान के अन्नुछेद २२६ ( ३) के अंतर्गत, उस राशि को लेने का आवेदन अब उच्चा न्यायालय में कर सकते हैं
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