इन सूत्रों में छिपा है खेलों में सफलता का राज
भारत में खेलों का इतिहास बहुत पुराना रहा है। रजवाड़ों के समय से ही खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता रहा है और विजेताओं को पुरस्कार भी दिए जाते रहे हैं। उस समय खेलों का आयोजन वीरता प्रदर्शन और अच्छे सैनिक चुनने के लिए या फिर अच्छे दरबारी चुनने के लिए किया जाता था। स्वयंवर के लिए भी प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती रही हैं। भारतीय इतिहास इस तरह की प्रतियोगिताओं से भरा हुआ है।
वर्तमान स्थिति
वर्तमान में खेल सम्मान सूचक हो गए हैं। राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय टीम में खेलने वाले खिलाडिय़ों को बहुत पैसा और सम्मान मिलता है। लेकिन कुछ खेल ही ऐसे हैं जिनमें पैसा अच्छा मिलता है। जैसे क्रिकेट टेनिस आदि। शेष खेलों को जैसे हैंडबॉल बॉस्केट बॉल आदि खेलों में भारत में पैसा बहुत कम मिलता है। खेलों को बढ़ावा देने के लिए अलग अलग देशों और राज्यों ने अपने अलग अलग खेल भी घोषित किए हुए हैं। यही कारण है कि खेल खिलाडिय़ों के लिए ऐसे ख्याली पुलाव बन गए हैं जिनकी सुगन्ध बहुत कम रह गई है।खेलों में हम पीछे क्यों
खेलों में हम पीछे हैं। इसके कई कारण हैं। इनमें से प्रमुख कुछ कारणों पर यहां प्रकाश डालना सही रहेगा।राजनीतिक दखलंदाजी
भारत में खेलों में राजनीतिक दखलंदाजी रही है। क्रिकेट में हाल ही ललित मोदी को लेकर बवाल मचा हुआ है। उन्हें राजस्थान क्रिकेट को अलविदा कहना ही पड़ा। खेलों में ऊंचे पदों पर खिलाडिय़ों की जगह नौकरशाहों को या नेताओं को तैनात किया जाता है जिन्हें खेलों की बारहखड़ी तक पता नहीं होती। वे खेलों और खिलाडिय़ों का भला तो क्या करेंगे खुद का भला करने में ही लगे रहते हैं।चयन प्र्रक्रिया गलत
भारत में चयन प्रक्रिया में भाई भतीजावाद अधिक होता है। या फिर पैसा चलता है। अच्छे खिलाड़ी इसी कारण पीछे रह जाते हैं और हम अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते।लड़का लड़की में भेद
भारत में खेलों में लड़कों और लड़कियों में भेद किया जाता रहा है। हालांकि सानिया मिर्जा गीता फोगाट पीटी ऊषा और प्रोमिला हुड्डा ने यह मिथक तोड़े हैं। लेकिन शोषण की कहानियां भी मीडिया के जरिये सामने आती रहती हैं।
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