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Wednesday, August 2, 2017

यह जानने के बाद भारत के सवा अरब लोगों का चौंकना वाजिब है

यह जानने के बाद भारत के सवा अरब लोगों का चौंकना वाजिब है



नीति अयोग के उपाध्यक्ष पद से डॉ अरविंद पनगढिय़ा ने त्यागपत्र दे दिया है। वे एक जाने माने भारतीय अमरीकी अर्थशास्त्री और बैंकर के तौर पर जाने जाते हैं। माना जा रहा है कि उनका इस्तीफा उनके शिक्षा के क्षेत्र में वापिस लौटने का संकेत है। ऐसा उन्होंने कहा भी है। मीडिया भी इसी प्रकार की भाषा बोल रहा है। आइये जानते हैं डॉ अरविंद पनगढिय़ा का भूत और भविष्य।

नीति आयोग को समझना जरूरी

नीति आयोग मतलब नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया आयोग है। क्योंकि डॉ पनगढिय़ा को समझने के लिए नीति आयोग को समझना भी जरूरी है। नीति आयोग का गठन सरकार ने योजना आयोग के स्थान पर किया था। सहकारी संघवाद की अवधारणा के चलते ऐसा किया गया। नीति आयोग का मुख्य उद्देश्य यह था कि सरकार की योजनाओं एक दम निचले तबके तक पहुंचाना और योजनाओं का लाभ सीधे उन्हें देना। एंगस डीटन को नोबेल पुरस्कार भी इसी लिए मिला था कि उन्होंने बताया कि योजनाओं का  लाभ किस प्रकार से निचले तबके तक पहुंचाया जा सके। इसके लिए उन्होंने सामूहिक समंकों को व्यक्तिगत समंकों पर स्थापित किया।

क्या है फर्क

योजना आयोग और नीति आयोग में बेसिक फर्क है। योजना आयोग ऊपर के स्तर पर योजनाएं बनाता था और उन्हें निचले स्तर तक लागू किया जाता था। इससे योजनाएं न तो निचले स्तर के अनुरूप हुआ करती थी और न ही उनका लाभ उन्हें मिल पाता था। नीति आयोग में यह परिवर्तन किया गया है कि योजनाएं बनाते समय ग्रामीण स्तर पर चर्चा की जाती है। इसके बाद उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप ही योजनाएं बनाई जा रही हैं। यानि कि योजना बनाते समय सामूहिक तौर पर नहीं व्यक्तिगत तौर पर आवश्यकताओं का ध्यान रखा जाता है। उन्हें समंकों में तब्दील कर योजनाएं तैयार की जाती हैं। डॉ अरविंद पनगढिय़ा को भी इस आयोग में भूमिका निभाने का मौका मिला। उन्हें ५ जनवरी २०१५ में आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया। फिलहाल वे इस आयोग से इस्तीफा देने के कारण चर्चा में हैं।

क्यों दिया इस्तीफा

डॉ पनगढिय़ा एक अर्थशास्त्री हैं और पढऩा पढ़ाना ही उनका पैशन है। फिलहाल उनके इस्तीफ के कारण उन्होंने यह बताया है कि वे शिक्षा के क्षेत्र में लौटना चाहते हैं। क्योंकि नीति आयोग का उपाध्यक्ष बनने से पहले भी वे एक शिक्षक ही थे और कोलकाता विश्वविद्यालय में नियुक्त थे। वे यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड के पर्क कॉलेज में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रह चुके हैं। अब उनके इस्तीफा देने के बाद तो भारत के सवाअरब लोगों का चौंकना वाजिब ही है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण संघ लॉबी हो सकती है। क्योंकि डॉ पनगढिय़ा एक शिक्षक के तौर पर तो ठीक हैं लेकिन वे उपाध्यक्ष के पद पर रहते हुए नीति आयोग में बहुत कुछ नहीं कर पाए। माना जा रहा है कि संघ की लॉबी के दबाव में वे काम नहीं कर पा रहे थे। इसलिए उन्होंने इस्तीफा दिया है।

महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां

डॉ पनगढिय़ा अंकटाड और विश्व व्यापार संघ में भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभाल चुके हैं। उन्होंने दस से अधिक किताबें लिखी और संपादित की। इंडिया द इमर्जिंग जायंट उनकी प्रसिद्ध पुस्तक है।
डॉ पनगढिय़ा एक अर्थशास्त्री हैं। ऐसा माना जाता है कि वे भी आर्थिक उदारीकरण के पैरोकारों में से एक हैं। मूलत: राजस्थान के निवासी पनगढिय़ा एशियन डवलपमेंट बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री भी रह चुके हैं।

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