तीन तलाक के मुद्दे पर सरकार को बचा गया सुप्रीम कोर्ट
सदियों पुराने और पिछले डेढ़ वर्ष में ताजा हुए तीन तलाक के मुद्दे पर मंगलवार को देश की सर्वाेच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है। तीन तलाक की प्रथा मुस्लिम संप्रदाय में करीब एक हजार साल पुरानी है। इस पर पांच जजों की बेंच ने तीन दो के बहुमत से अपना जजमेंट सुनाया है। इसे जाानने की उत्सुकता जितनी मुस्लिमों में है उतनी ही देश के हर नागरिक में है। आइये जानते हैं कि क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि तीन तलाक वॉइड यानि शून्य अनकॉन्स्टिट्यूशनल यानि असंवैधानिक और इलीगल यानि गैरकानूनी है। पांच जजों की बेंच में शामिल दो जजों ने तीन तलाक पर 6 महीने की रोक लगाई है। कोर्ट ने कहा कि तीन तलाक कुरान के मूल सिद्धांतों का हिस्सा ही नहीं है। साथ ही यह भी कहा है कि सरकार इस पर कानून बनाए।
किन बिन्दुओं पर आया फैसला
तीन तलाक के इस मुद्दे के अनुसार सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना था कि तीन तलाक महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों का हनन करता है या नहीं करता। दूसरा क्या यह कानूनी रूप से सही है। तीसरा महत्वपूर्ण बिन्दु यह था कि तीन तलाक इस्लाम का मूल हिस्सा है भी या नहीं। कोर्ट ने टोपी मोदी सरकार को पहना दी है। अब सरकार इस पर कानून बनाएगी और इसके लिए जनता की राय लेगी।
फैसले के अर्थ
चीफ जस्टिस खेहर ने सरकार से 6 महीने में कानून बनाने को कहा है। इसका सीधा सा अर्थ है कि यदि कोई मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को तीन बार तलाक तलाक तलाक कहकर तलाक देना चाहेगा तो छह माह तक यह लागू नहीं होगा। साथ ही सरकार को कानून बनाने को कहा है। इसमें सरकार की परीक्षा के साथ कांग्रेस व अन्य दलों की परीक्षा भी होगी। क्योंकि सभी दलों को इस मुद्दे पर आपसी मतभेद भुलाने होंगे। साथ ही मोदी सरकार को बड़ी समझदारी से काम लेना होगा। क्योंकि सरकार पहले ही मुस्लमों में तलाक के तीनों रूप- तलाक-ए-बिद्दत, तलाक हसन और तलाक अहसान को गैरकानूनी करार दे चुकी है।
कानून नहीं बना तो क्या होगा
यदि सरकार छह माह में कानून नहीं बना पाती है तो सुप्रीम कोर्ट का आदेश ही लागू रहेगा। यानि रोक आगे भी जार रहेगी। अब सरकार चाहे तो कानून बनाने से बच भी सकती है क्योंकि ऐसा करने से सरकार के पास बहाना रहेगा कि यह सुप्रीम कोर्ट का आदेश है सरकार का नहीं। इससे सरकार मुस्लिमों की नाराजगी से भी बच सकती है। इस तीन तलाक के मामले में विक्टिम और पिटीशनर अतिया साबरी थी। उनके वकील थे राजेश पाठक।
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