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Monday, August 21, 2017

सिर कीजे काठ की, देह कीजै पाषण। बख्तर कीजै लौह का फिर देखो जैसाण।।

सिर कीजे काठ की, देह कीजै पाषण।

बख्तर कीजै लौह का फिर देखो जैसाण।।




 
विश्व विख्यात जैसलमेर अब 863 वर्ष का हो चला है। इसकी स्थापना यदुकुल कृष्णवां भाटी राजपूत राजा जैसल ने 12वीं शताब्दी में की थी। इससे पहले भाटियों का राज्य लौद्रवा था जिसे मोहम्मद गौरी की सेना ने राजा भोजदेव के भतीजे जैसल के सहयोग से उजाड़ दिया था। इसके बावजूद आज भी जैसलमेर सैलानियों की पहली पसंद बना हुआ है। जहां हर शाम इन्हीं सैलानियों की बदौलत इतनी रंगीन होती है कि शायद ही थार के मरूस्थल में कहीं और होती होगी।


रेत के समंदर में दफन है प्राचीन सभ्यता के अवशेष

कला अनुरागियों की पहली पसंद यह मरूस्थलीय शहर सैलानियों की पहली पसंद है। पाकिस्तान की सीमा जैसलमेर से लगती है। यह शहर प्राचीनकाल से ही सभ्यता एवं संस्कृति का पालना रहा है। इसके पश्चिम दिशा में मोहनजोदड़ो व हड़प्पा सभ्यता की खोज हो चुकी है। जैसलमेर की धरती में भी प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता के खण्डहर रेत में दबे पड़े हैं।

जैसलमेर की प्रमुख विशेषताएं


जैसलमेर के किले को सोनार का किला भी कहते हैं। यह किला अपने वीर शासकों की गौरवमयी गाथाओं, रीति-रिवाजों, परम्पराओं और विशाल रेतीले धोरों की छाती पर बनी सुन्दर गगनचुम्बी हवेलियों, अपने लोकगीत संगीत, लंगा गायन के लिए भी विशेष प्रसिद्ध है।

पीले पत्थरों से बने सोनार किले को


करीब एक वर्ष पहले यूनेस्को ने विश्व धरोहर के रूप में मान्यता प्रदान की है। इसके बाद भी सोनार के किले के संरक्षण की ठोस योजना सरकार के पास नहीं है। यह किला जर्जर होता जा रहा है। किले में परकोटे के ऊपर से मल-मूत्र और गंदा पानी बहता है। इससे किले की नींव कमजोर हो रही है।
किले को सर्वाधिक नुकसान परम्परागत जल निकासी की व्यवस्था बिगडऩे से हो रहा है। फलस्वरूप गंदी नालियों का और वर्षा का पानी किले की नींव में रिस रहा है तथा सम्पूर्ण किले को कमजोर कर रहा है। परकोटे व बुर्जों में दरारें आ रही हैं। किले के संरक्षण के नाम पर देश विदेश की अनेक संस्थाएं दिल्ली में बैठी करोडों रुपए एकत्रित कर रही हैं। लेकिन किले को वास्तविक समस्या पर इन संस्थानों का ध्यान नहीं है। किले के भीतर आवासीय घरों में दरारें आ रही हैं। घरों से निकलने वाला गंदा पानी भी पहाड़ों को कमजोर कर रहा है।

लावारिस पड़ी 84 गांवों की सम्पदा

 


मरूप्रदेश में पालीवाल ब्राह्मणों ने 84 गांव बसाए थे। पालीवालों ने यहां कृषि ओर व्यापार का खूब विकास किया। यह एक सम्पन्न समुदाय था। जो कि नाराज होकर एक ही रात में अपने आलीशान मकान व अन्य जायदाद छोड़ कर दो सौ वर्ष पहले कहीं चला गया। पालीवालों के इन गांवों की बसावट कुएं तालाब खड़ीन श्मशान देवी देवताओं के मंदिरों आदि के कलात्मक व ऐतिहासिक अवशेष इन गांवों में चारों तरफ बिखरे पड़े हैं। पालीवालों के बड़े गांव कुलधरा व खाभा के संरक्षण के कुछ प्रयास हुए। बाकी के गांवों में अतिक्रमण हो रहे हैं। नष्ट हो रहे हैं और रेत में दब रहे हैं।

यह है विरासत का खजाना

जैसलमेर में गुप्तकालीन एवं मौर्य काल के अनेक खण्डित मंदिर व मूर्तियां हैं। लौद्रवा, चूंधी, संचियाय में सैकडों पाषाण प्रतिमाएं खम्भे तराशे हुए पत्थर असुरक्षित पड़े हैं। ये करीब पन्द्रह सौ वर्ष पहले के बने हुए हैं। इनकी सुरक्षा नहीं होने से पुरा महत्व की यह सम्पदा अब चोरी होने लगी है। काफी संपदा देत में दबने लगी है और काफी दब चुकी है।

भाटी ठाकुरों जैन सेठों आदि ने यहां गांव गांव में सुन्दर तालाब कुएं बावडियां आम आदमी के हितार्थ व्यास बुझाने के लिए बनवाए थे। इनके बेजोड़ घाट छतरियां अब क्षीण होकर गिरने लगे हैं। इनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है।

जैसलमेर के जागीरदारो के किले जैसे गणेाया रामगढ़, फतेहगढ़ लाठी शाहगढ़ हड्डा फतेहगढ़ घोटारू किनगढ़ लखा देवीकोट मोहनगढ़ नाचना आदि रेत के धोरों के बीच बने किले हैं जो कि स्थापत्य कला की दृष्टि से अनूठी कृतियां हैं। इसकी भी कोई देखरेख नहीं है तथा खण्डहर में बदल रहे हैं।

१8वीं शताब्दी में बनी दीवान सालमसिंह की हवेली के अनेक झरोखे गिर गए हैं। इसी प्रकार पटवों की हवेली में अनेक जगह दरारें आ गई हैं। एक हवेली के गोखड़े एवं कंगूरे गिर गए हैं। छतों से वर्षा का पानी रिस रहा है।
अमरसागर के चारों ओर अवैध खनन हो रहा है। इस कारण अब अमरसागर में तालाब में पानी आना बन्द हो गया है। इस तालाब का अस्तित्व संकट में पड़ गया है। राजाओं के श्मशानघाट बड़ाबाग में प्राचीन एवं ऐतिहासिक छतरियां हैं। इन पर महत्वपूर्ण शिलालेख लगे हुए हैं। अब ये शिलालेख देखभाल के अभाव में दयनीय स्थिति में हैं। यह जिंदा इतिहास को जबरन मौत देने जैसा है।



वैशाखी में 12वीं से 16वीं शताब्दी के शिव मंदिर और बावडियां हैं। यह प्राचीन तीर्थ भी है। यहां चारों तरफ देवी-देवताओं की मूर्तियों के भग्नावशेष लावारिस पड़े हैैं। गजरूपसागर की पठियालें व छतरियों के अनेक पत्थर चोरी हो चुके हैं।





गुलाबसागर प्राचीन देवी शक्तिपीठ तनोट घंटियाली आदि अपना प्राचीन स्वरूप खो रहे हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न मंदिर, पालीवालों के 84 प्राचीन गांव में स्थित खड़ीन एवं अन्य पुरा सम्पदा का खजाना बिखरा पड़ा है। लौद्रवा स्थित मूमल की मेड़ी के अनेक पत्थर अब दिखते ही नहीं हैं। 11वीं सदी के इस स्थान पर सेनापति शहाबुद्दीन गौरी एवं राजा भोज के बीच जंग हुई थी। जंग के बाद लौद्रवा पूर्ण रूप से उजड़ गया था। इस स्थान पर भी नई बस्तियां बस गई हैं। इतिहास का यह महत्वपूर्ण कालखण्ड अब खण्ड खण्ड हो रहा है।


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