जानिये क्यों नहीं बढ़ रही सरिस्का में टाईगर्स की आबादी
अलवर, २१ जुलाई (हि.सं.)। अलवर जिले में स्थित विश्व प्रसिद्ध टाईगर रिजर्व सरिस्का में ग्रामीणों के मूवमेंट के चलते ब्रीडि़ंग में समस्या हो रही है। जंगल में ग्रामीणों और मवेशियों के साथ लगातार आवागमन होता रहता है। इससे वन्यजीव उन पर हमला तो करते ही हैं साथ ही नस्ल वृद्धि भी प्रभावित होती है। क्योंकि मानव का जंगल में दखल जंगली जानवरों की दिनचर्या को प्रभावित करता है।
सरिस्का में फिलहाल १०० से अधिक पैंथर हैं। इसके अलावा १४ टाईगर हैं। टाईगर्स में ५ नर और नौ मादा टाईगर हैं। पर्यटकों का यहां लगातार आवागमन रहता है। इस कारण ब्रीडिंग के समय में भी एक अलग रूट पर्यटकों के लिए खोला गया है। जो कि सरिस्का-एनक्लोजन-कालीघाटी रूट है। इस रूट पर पर्यटक फिलहाल आ रहे हैं। यह रूट वैसे भी सालभर खुला रहता है। असली समस्या ग्रामीणों की ओर से आ रही है। सरिस्का में बसे गांवों के लाग अपने पशुओं को चराने जंगल में पहाड़ों पर और काफी अंदर तक चले जाते हैं।
उल्लेखनीय है कि सरिस्का में वर्ष २००५ में बाघों का पूरी तरह शिकार के बाद सफाया हो गया था। इसके बाद सवाईमाधोपुर के रणथम्बोर टाईगर रिजर्व से बाघों का पुनर्वास सरिस्का में किया गया। यह भारत का एक मात्र पुनर्वास था, जिसमें हैलीकॉप्टर का उपयोग किया गया था। यानि हैलीकॉटर से बाघ बाघिनों को सरिस्का लाया गया।
ग्रामीणों को दूर करने के प्रयास भी विफल
ब्रीडिंग में समस्या ग्रामीणों के मूवमेंट के कारण अधिक है। ग्रामीणों को जंगल और जंगली जानवरों से दूर रहना चाहिए। ग्रामीण खुद पैंथर के क्षेत्र में जाते हैं और आरोप ये लगाते हैं कि उसने हमला कर दिया। दूर रहना ही सुरक्षा का उपाय भी है।
-बालाजी करी, आईएफएस, सरिस्का
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