ये पचास आदमी रोक सकते हैं राष्ट्रपति का चुनाव
भारत के राष्ट्रपति के चुनाव होने जा रहे हैं। प्रत्येक व्यक्ति जानना चाहता है कि यह चुनाव होता कैसे है तो दोस्तों आइये जानते हैं यह चुनाव आखिर होता कैसे है। क्या हैं राष्ट्रपति चुनाव की योग्यताएं।
नए राष्ट्रपति के आने तक पुराना करता है काम
भारत के राष्ट्राध्यक्ष एवं सर्वोच्च पद राष्ट्रपति की नियुक्ति चुनाव के द्वारा होती है। इनका कार्यकाल पद ग्रहण करने से पांच वर्ष का होता है। प्राय कार्यकाल पूरा हो जाने के पूर्वं ही अथवा छह माह के अंदर नए राष्ट्रपति का चुनाव संपन्न हो जाना चहिए। नए राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण करने तक पुराना राष्ट्रपति ही कार्य करता रहता है।
क्या है योग्यता
राष्ट्रपति पद के लिए कोई भी भारतीय नागरिक जिसने ३५ वर्ष की आयु पूरी कर ली हो तथा लोक सभा का सदस्य चुने जाने की योगयता रखता हो उम्मीद्वार हो सकता है। एक व्यक्ति कितनी ही बार राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीद्वार अथवा राष्ट्रपति हो सकता है। संविधान इस विषय पर मौन है कि उम्मीद्वार किसी सरकारी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए। एमएलए एमपी राज्यपाल आदि उम्मीद्वार हो सकते हैं किन्तु यदि वह राष्ट्रपति निर्वाचित हो जाता है तो उसे अपने पुराने पदों से त्याग पत्र देना पड़ता है। उम्मीद्वार होने के लिए निर्वाचकों में से कम से कम 50 उसके नामों का प्रस्ताव रखें तथा कम से कम इतने ही सदस्यों द्वारा उनके नामों का समर्थन करना आवश्यक है।
ऐसे होता है चुनाव
भारत के राष्ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्यक्ष रूप से आनुपाकि प्रतिनिधित्व प्रणाली की एकल संक्रमणीय मत पद्धति से गुप्त मतदान द्वारा होता है। राष्ट्रपति का चुनाव सीधे जनता नहीं करती बल्कि निर्वाचक मंडल करता है। इस निर्वाचक मण्डल में अनुच्छेद 54 के अनुसार ससंद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य तथा राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं। इनमें मनोनीत सदस्य तथा राज्यों की विधान परिषदों और केन्द्र शासित प्रदेशों की विधान सभाएं शामिल नहीं होती। मई 1992 में 70 वें संविधान संशोधन विधयेक द्वारा पांडीचेरी विधानसभा तथा दिल्ली की विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों को आगामी राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेने की अनुमति प्रदान कर दी गई है।
विधानसभा भंग हो तो क्या होगा
यदि किसी राज्य की विधानसभा भंग हो तो क्या रााष्ट्रपति का चुाव संपन्न होगा संविधान में इस विषय में स्पष्ट कुछ नहीं लिखा है, लेकिन संविधान के ११वें संविधान संशोधन १९६१ में स्पष्ट किया गया है कि राष्ट्रपति के चुनाव को इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती कि निर्वाचक मंडल में कोई स्थान रिक्त था। १९७४ के राष्ट्रपति चुनाव के समय गुजरात में राष्ट्रपति शासन लागू था। इस विषय पर सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय लिया था कि बिना एक विधानसभा के भी राष्ट्रपति का चुनाव कराया जा सकता है।
राष्ट्रपति के चुनाव में मतों की गणना के लिए प्रत्येक एमएलए तथा प्रत्येक एमपी के मत का मूल्य निर्धारित किया जाता है। जिससे राष्ट्रपति के निर्वाचन में विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधित्व के मापन में एकरूपता बनी रहे।
एम एल ए मतों का मूल्य
किसी राज्य के एक एम एल ए के मत का मूल्य निकालने के लिए उस राज्य की जनसंख्या को उस राज्य की विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों से भाग देंगे। इससे प्राप्त संख्या में एक हजार से भाग देने से प्राप्त भागफल होगा। इसके बाद यदि शेष 500 या 500 से अधिक हो तो मत के मूल्य में एक मत की वृद्धि कर दी जाती है।
सांसदों के मत का मूल्य
एमपी के मत का मूल्य निकालने के लिए राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों के लिए नियत समस्त मत संख्या को संसद के निर्वाचित सदस्या की कुल संख्या में भाग देने पर प्राप्त होता है।
जीत के लिए निर्धारित कोटा
राष्ट्रपति चुनाव में विजयी होने के लिए प्रत्याशी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त होना आवश्यक है इसका तात्पर्य यह है कि कुल वैध मतों के आधे से अधिक मत प्राप्त होने चाहिए।
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