राष्ट्रपति चुनाव जो जीता वो सिकंदर हारा वो बाजीगर
भारत में राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान हो गया है। हम यह भी कह सकते हैं कि देश के प्रथम नागरिक के लिए दो दलितों के बीच नूरा कुश्ती हो चुकी है। अब केवल रैफरी की ओर से हाथ उठाना बाकी रह गया है कि कौन जीता। इस चुनावी रिंग का भी वही हाल है कि रैफरी मात्र औपचारिकता करता है। हार जीत का पता पहले ही हो चुका होता है। यह नूरा कुश्ती के समान है जो केवल दिखावे की होती है। इसमें यह भी पता होता है कि कौन जीतेगा। लेकिन केवल दिखावे मात्र के लिए लडऩा पड़ता है। तो दोस्तो आइये जानिये इस नूरा कुश्ती के आगे और पीछे के हाल।
दलित का दलित से मुकाबला
भारत में १४वें राष्ट्रपति के लिए मतदान हुआ है। देश की ३१ विधानसभाएं मतदान कर चुकी हैं। प्रत्येक विधानसभा और संसद के सदस्यों के मतों का मूल्य अलग अलग है। अत: यहां किस विधानसभा के कितने अधिक सदस्यों ने किसे वोट किया। इसका कोई लाभ नहीं है। लाभ इस बात का है कि अधिक मत मूल्य वाले सांसद और विधायक किसके पक्ष में वोट कर पाए। मैं आपको मत मूल्य के गणित में उलझाना नहीं चाहता। नतीजे २० जुलाई को आएंगे और जीत रामनाथ कोविंद की तय है। सीधा सा अर्थ लगाया जा सकता है कि भारत को भाजपा का पहला राष्ट्रपति मिलने जा रहा है।
सबसे बड़ा खिलाड़ी कौन
इस बार भाजपा किंग मेकर है। कांग्रेस ने दिखावे के लिए मीरां कुमार को मैदान में उतारा। वे भी उतरने को तैयार हो गई। पुराना कर्ज था उन पर पार्टी का। हार तय होने के बाद भी मैदान में उतर गई। यह बड़ी हिम्मत का काम है। मीरां कुमार इस मुकाबले की असली वीर कही जाएंगी। यहां वीराांगना शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इसलिए मैने वीर ही कहा है। मुकाबला कोविंद वर्सेज मीरां हो गया। मीडिया और सोशल मीडिया दोनों ने इसे राधा गोविंद के मुकाबले से जोड़ दिया और खूब चटखारे भी लिए। लेकिन यह तय हो गया है कि इस मुकाबले में किंग मेकर भाजपा भले ही हो लेकिन बाजीगर मीरां कुमार को ही कहा जाएगा। मीरां हार कर भी जीती ही मानी जाएंगी और हार कर जीतने वाले को बाजीगर ही कहते हैं।
जातिवाद की जोर आजमाइश
इस मुकाबले में खास बात यह है कि दोनों उम्मीद्वार दलित हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही दलितों पर दांव खेला। दोनों यह दिखाने की कोशिश कर रही हैं कि वे दलित विरोधी मानसिकता नहीं रखती। मनुवाद को पीछे छोड़ चुकी हैं और आज हरिजन की बात करती हैं हरि के जन की बात करती हैं। लेकिन इसमें एक पेंच यह है कि दोनों ही हरि के जन की बात न करते हुए जन का हरित लाभ लेने की फिराक में हैं। दोनों दलों की मानसिकता यह दिखाने की है कि किसके खेमे में कितने अधिक दलित हैं और किसके खेमे के दलित कितने मजबूत हैं। यानि कि तेरा वाला दलित मेरे वाले दलित से अधिक दलित है वाली सोशल मीडिया की लाइन यहां चरितार्थ हो रही है।
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