अपनी ही सेना में खलबली मचाने वाले राजा की कहानी
एक बार की बात है। दो राजा थे। दोनों अलग अलग, स्वभाव भी एकदम विपरीत, लेकिन काम एक। इनमें से एक आकाश (आकाशी या हवाई भी कह सकते हैं) पर नजर रखने का दम भरता था, हालांकि उसका दायरा महज एक राज्य ही था।
दूसरा इससे बहुत दूर स्थित राज्य का स्वामी था। लेकिन उसकी नजरें हमेशा बाजार (अर्थात जमीन पर, आकाश पर नहीं) पर रही। यह एक समझदार, बाजार पर पकड़ रखने वाला और समय की नब्ज को पहचान कर चलने वाला था। इस राजा के हमले इतने सटीक और भयानक होते थे कि शत्रु को संभलने का मौका नहीं मिलता था।
राज्य में एकछत्र सत्ता के दौर में आकाशी को घमंड हो चला कि उसके जैसा कोई नहीं है। यह आकाशी की दूसरी पीढ़ी की बात है। आकाशी की दूसरी पीढ़ी का ये शख्स किसी को कुछ नहीं समझता। स्वयं को ब्रह्म, नेता, स्वयंभू आदर्श आदि समझा करता था। लेकिन आकाशी की एक अच्छी आदत भी थी कि वह किसी को परेशान नहीं करता और साथियों की अच्छाई भी सोचता था।
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