अलवर. संत वाकई संत होते हैं। ये वो लोग हैं जो मनुष्य ही नहीं समस्त जीव जंतुओं के लिए जीते हैं। ऐसे ही प्रसिद्ध संत मेवात की धरा पर हुए हैं। नाम था लालदास। इन्होंने जहां मानवता को सौहाद्र्र की राह दिखाई वहीं पक्षियों के लिए आजीवन चुग्गे पानी का प्रबंध भी किया।
अलवर के समीप सोडावास के तहत झझारपुर गांव स्थित है। जब भी इस गांव में फसल कटती है तो इसका पहला हिस्सा पक्षियों के चुग्गे के नाम से निकाला जाता है। गांव के हर घर से करीब ५ किलो चुग्गे का दान करना जरूरी है। ग्रामीणों की इसी धार्मिक आस्था के चलते यहां पर साल भर चुग्गे की कोई कमी नहीं रहती।
गांव में स्थित प्राचीन लालदास मंदिर में बने चुग्गाघर में प्रतिदिन यह चुग्गा डाला जाता है। किवदंती है कि यह परंपरा बाबा लालदास के जमाने से चली आ रही है। वार्ड पंच विजेंद्र सिंह बताते हैं कि गांव में वर्षों पहले बरसात नहीं हुई। जिससे अकाल के हालात पैदा हो गए। बरसात ना होने से फसल भी नहीं हो पाई। एेसे में लोग भूख प्यास से परेशान होने लगे। पक्षी भी भूख से मरने लगे। तब यहां रहने वाले संत लालदास ने गांव वालों से वचन लिया कि यदि हर घर से पक्षियों के लिए चुग्गे का बंदोबस्त हो तो फसल पैदा हो जाएगी। सभी ने संत लालदास की बात मानी। अगले ही वर्ष अच्छी फसल पैदा हुई। तभी से ग्रामीणों ने इसे परंपरा बना लिया। आज भी ग्रामीण इस परंपरा को निभा रहे हैं।
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