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Friday, February 24, 2017

सपट फर्जीवाड़ा चलता है यहां

कई बार हम सोचते हैं कि समाचार पत्रों में आने वाली खबरें सही होती हैं। यह केवल उन मामलों में ही होता है जहां कोई आदेश आदि जारी किए गए हों। अधिकांश मामलों में समाचार बायस्ट ही होते हैं। यहां मैंने 2014से 2017 के बीच अनेकों एेसे उदाहरण देखे हैं जहां जमकर फर्जीवाड़ा होता रहा। इस बात से प्रभारी को अवगत भी कराया गया, लेकिन जानबूझ कर अंधा बना बैठा रहा। इसका सीधा सा कारण पीएलडी के नाम पर प्रतिमाह मिलने वाली रकम थी।
वर्ष २०१४ के बाद संपादकीय प्रभारियों व कुछ ऊपर के लोगों को पीएलडी के नाम पर अतिरिक्त भुगतान की व्यवस्था की गई। यह भुगतान 6000 रुपए प्रतिमाह तक होता है। इसके लिए एक रिपोर्ट भरनी पड़ती है। उसमें तय नंबर आने पर ही पीएलडी मिलती है। इसके लिए विशेष लोगो बना दिए गए। जैसे इंडेप्थ स्टोरी, एक्सक्लूसिव, सर्वे, रेड आदि आदि। इन्हें समाचारों में लगाना होता है और इनकी गिनती ही अंक निर्धारित करती है।
यहां इस अखबार में स्थानीय स्तर पर सर्वे नाम से जो भी समाचार प्रकाशित हुए हैं मैं दावा करता हूं कि शत प्रतिशत फर्जी हैं। एक भी व्यक्ति से बात नहीं की गई और समाचार में लिखा गया कि इतने व्यक्तियों से बात की गई। पूरे समाचारों में यह नहीं बताया जा रहा है कि सर्वे का आधार और तरीका क्या रहा। क्या प्रश्न भेजकर सर्वे किया गया, या रू-ब-रू होकर बात की गई। टेबल पर बैठकर सर्वे तैयार किए गए और रिपोटर्स ने अपने विचार उसके माध्यम से पाठकों पर थोप दिए। इस बात की जांच होनी चाहिए। यह पत्रकारिता के क्षेत्र में अपराध की श्रेणी में आता है और इसके लिए अखबार का लाइसेंस निलंबित किया जाना चाहिए। रिपोर्टर को भी एेसे फर्जीवाड़े और भ्रामक जानकरी प्रकाशित करने के लिए दंडित किया जाना चाहिए।

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