सड़क पर पड़ा नोट
दिवाली के दिन थे। ब्लू सिटी जोधपुर में शास्त्रीनगर थाने के सामने मैं किसी का इंतजार कर रहा था। खड़े होने के लिए जो जगह मिली वह थाने के बिल्कुल सामने पेड़ की छाया में मैने चुनी। पेड़ की छाया इसलिए चुनी कि महिना भले ही अक्टूबर का होए लेकिन सूरज अभी जवान था और पूरे जोर से अपने सहस्त्रों हाथों से रश्मियोंं की चमक बिखेर रहा था। इस बीच चारों तरफ से आता जानलेवा ट्रेफिक और उसका शोर इतना कि पास खड़े व्यक्ति की आवाज भी न सुने। खड़े.खड़े आधा घंटा हो गया। इतने में कुछ बच्चों के रोने की आवाजें कर्ण विवरों में प्रविष्ठ हुईए तो माजरा समझने की प्रयास करते हुए दृष्टि को उनसे मुखातिब किया। दुबलेए पतले क्लांत कांतिमय एकबच्ची और तीन बच्चे आंखों से आंसू और शरीर से पसीना बहाते वहां मौजूद दो पुलिस वालों के सामने अपनी पीड़ा बयां कर रहे थे। लड़का जरूर पुलिसवालों के सामने भयभीत थाए पर लड़की बेबाक अपनी बात पुलिसवालों को बता रही थी। उसका आत्मविश्वास न्याय पर पूरा दावा ठोक रहा था और इसी उम्मीद में अपनी बात कहने के बाद तीनों थक हार कर बिजली के खंबे के नीचे छाया में मेरे पास ही बैठ गए। मैं उन्हें बैठे देखता रहा। बच्ची के हाथों में कई तरह के मैटल के ब्रेसलेट बता रहे थे कि सपनों से उनकी दूरी अधिक नहीं है। कुछ देर तीनों बात करते रहे और फिर बच्ची उठकर पास ही फलवाले के पास चली गई। मैने ध्यान वहां से हटा लिया और अपने साथी के आने का वेट करता रहा। प्यास लगी तो वहीं बूथ के पीछे रखे पानी के कैंपर से पानी पीने चला गया।
इतने में पुलिस वाले ने पास आकर सफाई दी कि बच्चे हैं ऐसे ही बोलते रहते हैं। उसे लगा कि मैं सब गौर से देख रहा हूं और कहीं न कहीं मेरी नजरों में इस वाकये को देखकर पुलिस के प्रति अनुचित बात हैए लेकिन चूंकी मामला मुझे मालूम नहीं था तो ऐसी बात नहीं थी। पुलिसवाला अपनी बात कहकर ड्यूटी पर लग गया। मैने फिर वहीं ध्यान लगायाए और बच्चों की तरफ देखता रहा। इतने में जो बच्ची फल वाले के पास गई थी एक केला हाथ में लेकर वापिस आई। एक केला और चार जीव। बात सही है भूख पेट को लगती हैए संदेश मस्तिष्क भेजता हैए लेकिन खाया आत्मा को लगता है। आत्मा तृप्त तो पेट भी शांत। बच्ची ने केले का पहला टुकड़ा सबसे छोटे बच्चे के मुंह में दियाए दूसरा उससे बड़े के मुंह मेंए तीसरा खुद ने खाया और चौथ टुकड़ा छिलके सहित अपने बड़े भाई को दिया। बिना किसी विवाद के एक केले के ये चार टुकड़े किसी भी आत्मा को तृप्त करने के लिए पर्याप्त थे। इस अमृत वितरण के बीच बच्ची की आंखें उस पुलिस वाले को ढूंढ रही थी जो उनका नोट छीनकर बाइक लेकर वहां से चला गया था। मैं पूरा वाकया वहां खड़ा देखता रहा। मन हुआ कि उनसे मामला पूछंू। बच्ची ने भी मेरी आंखों को पढ़ लिया थाए लेकिन संवाद मैं शुरू नहीं कर पायाए बस समझने की कोशिश करता रहा। तभी बच्ची ने पहल की। मारवाड़ी में उसने बताया कि सड़क पर उन्हें एक हजार रुपए का नोट पड़ा मिला था। वहां तैनात तीन पुलिसवालों में से एक की निगाह उन पर नोट उठाते समय पड़ गई। उसने डरा.धमका कर उनसे वह नोट छीन लिया। मारवाड़ में कुछ समय बिताने के कारण मारवाड़ी मुझे कुछ समझ आने लगी थी। मामला समझ मेरी उत्सुकता हुई कि वह पुलिसवाला यदि आता है तो क्या पुलिस वाले बच्चों को सड़क पर मिला एक हजार रुपए का नोट अपने साथी से क्या उन्हें वापिस दिला पाएंगे। मेरे मन ने यहां नकारात्मक जवाब दियाए क्योंकि पुलिस की आम छवि आज किसी से छिपी नहीं है। मेरे मन ने निश्चय किया कि यदि इसी बीच मेरा मित्र वहां आता है तो भी मामला पूरा देखे बिना यहां से जाना नहीं है। मैं वहीं डट गया। बच्ची की आंखें बाज के परवाज से भी ऊंची उड़ान पर थी और भारी ट्रेफिक के बीच उस पुलिस वाले को ढूंढ़ रही थी। भाइयों से बात करते वक्त भी उसका चित्त किसी योगी की तरह शांत और नजरें बगुले की तरह लक्ष्य पर थी। जैसे ही उसे वह पुलिसवाला बाइक पर आता दिखाई दिया उसकी आंखों ने तुरंत बता दिया कि यह वही है जो उनके सपने छीन ले गया। वह तुरंत वहां मौजूद पुलिस वालों के पास पहुंची और बताया कि यही वह पुलिसवाला है जिसने उनके हाथ से एक हजार रुपए का नोट छीन लिया। दोनों पुलिसवाले बच्चों को वहां बूथ के भीतर बैठे अपने वरिष्ठ साथी के पास ले गए और उसे पूरा मामला बताया। बाइक खड़ी कर वह पुलिसवाला गीले हाथ पौंछता हुआ बाहर आया। धूप अधिक होने के कारण वह पहले पानी पीने अंदर गया था। बाहर आते ही दोनों पुलिसवालों ने बच्चों को उसके सामने खड़ा कर दिया और बताया कि उसने बच्चों से जो एक हजार रुपए छीने हैं वह वापिस करे। बच्चों की आंखों की पुतलियां फैल गई और भय आंखों से आंसू के रूप में बाहर आने लगा। मेरी उत्सुकता बनी हुई थी। क्या रिएक्शन होगी। क्या बच्चों को नोट वापिस मिलेगा या फिर डांटए फटकारए आरोप या फिर पिटाईए नोट के बदले इन्हें अब क्या मिलने वाला है। इनके उन सपनों का क्या होगाए जो नोट मिलने पर बच्चों ने देखे। आंखों की चमक भय में बदली हुई नजर आ रही थीए बच्चा कांप रहा था और बच्ची का गला सूख रहा था। तीनों रोए जा रहे थेए पर अपने तर्कों के तीर कम नहीं होने दिए। पुलिस वालों के सवाल पर सवालए नोट कहां से मिलाए सड़क पर मिला तो तुम्हारा कैसे हो गयाए चुराया होगा तुमनेए इस थैले में क्या हैए यह सामान भी चोरी का सा लगता हैए एक हजार रुपए किसी के गिरे होंगे तो वह ढूंढता हुआ आएगाए हम उसे रुपए लौटा देंगेए बच्ची सभी बातों के जवाब सूखते गले और पपड़ी पड़े होठों से देती रही। आंखों से भय पानी बन बहता रहाए जवान होती लड़की और बढ़ते सपने सबकी नजरों में चढ़ते हैंए इस बच्ची की उम्र करीब १३.१४ वर्ष रही होगीए अल्हड़पन की बानगी रही कि इस बच्ची को अपने चढ़ते यौवन का ठिकाना मालूम नहीं था। कपड़े अस्त.व्यस्त हो गएए लेकिन कठोरता का सामने उसने डट कर किया। बच्ची का एक ही लक्ष्य थाए जो चीज उसे सड़क पर मिलीए उस पर उसी का हक हैए और वह उसे लेकर रहेगी। पुलिस वालों के तरकश तर्कों के तीर से खाली होने लगे। करीब दस मिनट की जद्दोजहद के बाद बच्ची की वाग्वीरता ने पुलिस वालों को यह समझा दिया कि उस एक हजार रुपए के नोट पर उस बच्ची का ही हक है। लाल नोट पुलिसवाले ने अपनी जेब से निकाला और बच्ची को थमा दिया। उसकी आंखों में दिवाली के पटाखों की रोशनी नजर आने लगी। तीनों ने अपना सामान उठाया और बुदबुदाते वहां चल दिए।
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