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Sunday, December 27, 2020

CTET | REET Preparation Methods of Educational Psychology | शिक्षा-मनोविज्ञान की विधियां

CTET | REET Preparation | Methods of Educational Psychology | शिक्षा-मनोविज्ञान की विधियां

 
CTET | REET Preparation | Methods of Educational Psychology | शिक्षा-मनोविज्ञान की विधियां


शिक्षा-मनोविज्ञान में अध्ययन और अनुसंधान के लिए सामान्य रूप से जिन विधियों का प्रयोग किया जाता है, उनको दो भागों में विभाजित किया जा सकता है।


(अ) Subjective Methods आत्मनिष्ठ विधियां

1.    Introspective Method - आत्मनिरीक्षण विधि

2.   Anecdotal Method - गाथा वर्णन विधि

3.    Case History Method - जीवन-इतिहास विधि

4.    Interview Method - साक्षात्कार विधि

5.   Questionnaire Method - प्रश्नावली विधि

(ब) ¼Objective  Methods ) %& वस्तुनिष्ठ विधियां    

1. Observational  Method - निरीक्षण विधि

2. Experimental  Method - प्रयोगात्मक विधि

 3. Clinical  Method - उपचारात्मक विधि 

4. Developmental Method - विकासात्मक विधि 

5. Psycho-analytic  Method - मनोविषलेषण विधि 

 6. Comparative Method - तुलनात्मक विधि   

7. Statistical  Method - संा ख्यिकी विधि   

8. Test  Method - परीक्षण विधि 

          
9. Differential  Method - विभेदात्मक विधि

10. Playschool-physical  Method  मनोभौतिक विधि 


1. ¼Instrospective  Method) आत्मनिरीक्षण विधि 

‘‘ मस्तिष्क द्वारा अपनी स्वयं की क्रियाओं का निरक्षण’’

अन्तर्दर्शन को अग्रेंजी में Introspection कहते हंै जो दो लैटिन शब्द Intro + spaire से बना है जिसमें Intro का अर्थ है आन्तरिक या अन्दर की और तथा Spaire का अर्थ है देखना। अतः अन्तर्दर्शन का अर्थ है अपने आप में देखना या आत्म निरीक्षण To Look with in या  Self observation.
‘ आत्मनिरीक्षण’’, मनोविज्ञान की परम्परागत विधि है। इसका नाम इंगलैण्ड के विख्यात दार्शनिक लाॅक Locke से सम्बद्व है, जिसने इसकी परिभाषा इन शब्दों में की थी- ‘‘ मस्तिष्क द्वारा अपनी स्वयं की क्रियाओं का निरीक्षण ’’पूर्व काल के मनोवैज्ञानिक अपनी मानसिक क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिए इसी विधि पर निर्भर थे। वे इसका प्रयोग अपने अनुभवों का पुनः स्मरण और भावनाओं का मूल्यांकन करने के लिए करते थे। वे सुख और दुःख, क्रोध और शान्ति, घृणा और प्रेम के समय अपनी भावनाओं और मानसिक दशाओं का निरीक्षण करके उनका वर्णन करते  थे।

 

आत्मनिरीक्षण विधि के गुण


(1) मनोविज्ञान के ज्ञान में वृद्वि - डगलस व हाॅलैण्ड के अनुसार - ‘‘ मनोविज्ञान ने इस विधि का प्रयोग करके हमारे मनोविज्ञान के ज्ञान में वृद्वि की है।’’
(2) अन्य विधियों में सहायक:- ‘‘ यह विधि अन्य विधियों द्वारा प्राप्त किये गये तथ्यों, नियमों औैर सिद्वान्तों की व्याख्या करनें मे सहायता देती है।’’
(3) यन्त्र व सामग्री की आवश्यकता:- यह विधि खर्चीली नहीं है, क्योकि इसमें किसी यन्त्र या सामाग्री की आवष्यकता नहीं पडती।’’
(4) प्रयोगशाला की आवश्यकता नहीं:- यह विधि बहुत सरल है, क्योकि इसमें किसी प्रयोगशाला की आवश्यकता नहीं है।’


-आत्म निरीक्षण के दोष

(1) वैज्ञानिकता का अभाव - यह विधि वैज्ञानिक नहीं है, क्योंकि इस विधि द्वारा प्राप्त निष्कर्षों का किसी दूसरे व्यक्ति के द्वारा परीक्षण नहीं किया जा सकता है।
(2) ध्यान का विभाजन - इस विधि का प्रयोग करते समय व्यक्ति का ध्यान विभाजित रहता है, क्योंकि एक ओर तो उसे मानसिक प्रक्रिया का अध्ययन करना पडता है और दूसरी ओर आत्मनिरीक्षण करना पडता है।
(3) असामान्य व्यक्तियों व बालकों के लिए अनुपयुक्त - यह विधि असामान्य व्यक्तियों, असभ्य मनुष्यों, मानसिक रोगियों, बालकों और पशुओं के लिए अनुपयुक्त है, क्योकि उनमें मानसिक क्रियाओं का निरीक्षण करने की क्षमता नहीं होती है।

2. Anecdotal Method गाथा - वर्णन विधि ;

    ‘‘ पूर्व अनुभव या व्यवहार का लेखा तैयार करना ’’

इस विधि में व्यक्ति अपनें किसी पूर्व अनुभव या व्यवहार का वर्णन करता है। मनोविज्ञान उसे सुनकर एक लेखा (Record ) तैयार करता है  और उसके आधार पर अपने निष्कर्ष निकालता है। इस विधि का मुख्य दोष यह है कि व्यक्ति अपने पूर्व अनुभव या व्यवहार का ठीक पुनः स्मरण नहीं कर पाता। इसके आलावा, वह उससे सम्बन्धित कुछ बातों को भूल जाता है और कुछ को अपनी ओर से जोड देता है। इसलिए इस विधि को अविश्वसनीय बताते हुए स्किनर ने लिखा है - ‘‘गाथा-वर्णन विधि की आत्मनिष्ठता के कारण इसके परिणाम पर विश्वास नहीं किया जा सकता ’’ गाथा वर्णन आत्मगत (Subjective) होने के कारण विश्वसनीय नहीं है। इसका उपयोग पूरक विधि के रूप में किया जाता है।

3.(Questionnaire Method) प्रश्नावली विधि


‘‘ प्रश्नांे के उत्तर प्राप्त करके समस्या-सम्बन्धी तथ्य एकत्र करना।’’

कभी-कभी ऐसा होता है कि प्रयोगकर्ता किसी शिक्षा-समस्या के बारे में अनेक व्यक्तियों के विचारों को जानना चाहता है। उन सबसे साक्षात्कार करने के लिए उसे पर्याप्त धन और समय की आवश्यकता होती हैै। इन दोनांे में बचत करने के लिए वह समस्या से सम्बन्धित कुछ प्रश्नों की प्रश्नावली तैयार करके उनके पास भेज देता है। उनसे प्राप्त होने वाले उत्तरों का वह अध्ययन और वर्गीकरण करता है। फिर उनके आधार पर निश्कर्ष निकालता है। उदाहरणार्थ,‘‘ राधाकृष्णन कमीशन ’’ ने विश्वविद्यालय- शिक्षा से सम्बन्धित एक प्रश्नावली तैयार करके शिक्षा-विशेषज्ञ के पास भेजी। उसे लगभग 600 व्यक्तियों के उत्तर प्राप्त हुए। जिनकी उसने प्रतिवेदन के लेखन में प्रयोग किया। सर्वप्रथम वुडवर्थ ने प्रश्नावली का प्रयोग किया।


4. Interview Method साक्षात्कार विधि

‘‘ व्यक्तियों से भेंट करके समस्या-सम्बन्धी तथ्य एकत्र करना।’’


इस विधि में प्रयोगकर्ता किसी विशेष समस्या का अध्ययन करते समय उससे सम्बन्धित व्यक्तियों सें भेंट करता है और उनसे समस्या के बारे में विचार-विमर्श कर जानकारी प्राप्त करता है।
उदाहरणार्थ, ‘‘ कोठारी कमीषन ’’ के सदस्यो ने अपनी रिपोर्ट तैयार करने से पूर्व भारत का भ्रमण करके समाज-सेवकों, वैज्ञानिकों उद्योगपतियों, विभिन्न विषयों के विद्वानों और शिक्षा में रूचि रखने वाले पुरूषों और स्त्रियों से साक्षात्कार किया। इस प्रकार, ‘कमीश्न’ ने कुल मिलाकर लगभग 9,000 व्यक्तियों से साक्षत्कार करके, शिक्षा की समस्याओं पर उनके विचारों की जानकारी प्राप्त की।

5 Case History Method जीवन-इतिहास विधि

‘‘ जीवन - इतिहास द्वारा मानव - व्यवहार का अध्ययन’’

 

बहुधा मनोवैज्ञानिक का अनेक प्रकार के व्यक्तियों से पाला पडता है। इनमें कोई अपराधी, कोई मानसिक रोगी, कोई झगडालू, कोई समाज- विरोधी कार्य करने वाला और कोई समस्या बालक Problematic Child होता है। मनोविज्ञान के विचार से व्यक्ति का भैतिक, पारिवारिक या सामाजिक वातावरण उसमें मानसिक असंतुलन उत्पन्न कर देता है, जिसके फलस्वरूप वह अवांछनीय व्यवहार करने लगता है। इसका वास्ताविक कारण जानने के लिए वह व्यक्ति पूर्व-इतिहास की कडियों को जोडता है। इस उदेश्य से वह व्यक्ति, उसके माता-पिता, शिक्षको, संबंन्धियांे, पडोसियों, मित्रों आदि से भेंट करके पूछताछ करता है। इस प्रकार, वह व्यक्ति के वंशानुक्रम, पारिवारिक और सामाजिक वातावरण, रूचियों क्रियाओं, शारीरिक स्वास्थ्य, शैक्षिक और संवेगात्मक विकास के सम्बन्ध में तथ्य एकत्र करता है। तथ्यों की सहायता से वह उन कारणों की खोज कर लेता है, जिनके फलस्वरूप व्यक्ति मनोविकारों का शिकार बनकर अनुचित आचरण करने लगता है। इस प्रकार, इस विधि का उदेश्य के किसी विशिष्ट व्यवहार के कारण खोज करना है।

6. Extrospection Or Observational Method बहिर्दर्शन या निरीक्षण विधि

‘‘ व्यवहार का निरीक्षण करके मानसिक दशा को जानना’’


‘निरीक्षण’ का सामान्य अर्थ है - ध्यानपूर्वक देखना। हम किसी व्यक्ति के व्यवहार, आचरण, क्रियाओं, प्रतिक्रियाओं आदि को ध्यानपूर्वक देखकर उसकी मानसिक दशा का अनुमान लगा सकते हंै। उदाहरणार्थ-यदि कोई व्यक्ति जोर-जोर से बोल रहा है और उसके नेत्र लाल हैं, तो हम जान सकते हैं कि यह क्रुद्व है। निरीक्षण विधि में निरीक्षणकर्ता, अध्ययन किए जाने वाले का निरीक्षण करता है और उसी के आधार पर वह विषयी Subject के बारे में अपनी धारणा बनाता है। व्यवहारवादियों ने इस विधि को विशेष महत्व दिया है।
गुड एवं हैट के अनुसार विज्ञान निरीक्षण से प्रारम्भ होता है और अपने निरीक्षण की पूर्ति के लिए अन्त तक निरीक्षण का सहारा लेता है।

निरीक्षण विधि के पद-

1 उपयुक्त योजना बनाना 

2. व्यवहार का निरीक्षण 

3. व्यवहार को नोट करना 

4. विश्लेषण एवं निष्कर्ष।
 

गुणः- 

1. निष्कर्ष विश्वसनीय व वैधतापूर्ण 

2. सामूहिक अध्ययन सम्भव 

3. वैज्ञानिकता 

4. बाल अध्ययन के लिए उपयोगी।

दोषः- 

1. प्रयोज्य का अस्वाभविक व्यवहार 

2. असत्य निष्कर्ष 

3. पक्षपातपूर्ण निरीक्षण 

4. अधिक समय की आवश्यकता।

7. Expetimental Method प्रयोगात्मक विधि

पूर्व निर्धारित दशाओं में मानव व्यवहार का अध्ययन प्रयोगात्मक विधि एक प्रकार की नियन्त्रित निरीक्षण Controlled  Method विधि है। इस विधि में प्रयोगात्मक स्वयं अपने द्वारा निर्धारित की हुई परिस्थितियों या वातावरण में किसी व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है या किसी समस्या के संबंध में तथ्य एकत्र करता है। नियन्त्रित परिस्थिति या प्रयोगशाला होती है जो व्यक्ति व्यवहार का निरीक्षण करता है तथा जिस व्यक्ति के व्यवहार के कारण किया जाता हैं उसे प्रोज्य या विषयी कहते हैं।

प्रयोगात्मक विधि के पद -

1.समस्या का चयन 

2.उपकल्पना  

3.प्रक्रिया व प्रदत संग्रह 

4.सारणीयन व विश्लेषण 

5.निष्कर्ष

गुण:- 

1. वैज्ञानिक विधि 

2.निष्कर्षों की जांच 

3. विश्वसनीय निष्कर्ष 

4. उपयोगी तथ्यों पर प्रकाश या सुझाव।


दोषः- 

1. प्रयोग में कृत्रिमता स्वाभाविक 

2. प्रयोज्य का सहयोग प्राप्त करने में कठिनाई 

3. खर्चीली विधि 

4. प्रयोज्य की आन्तरिक दशाओं पर नियन्त्रण असम्भव।

8 Clinical Method उपचारात्मक विधि

‘‘ आचरण सम्बन्धी जटिलताओं को दूर करनें में सहायता ।’’

स्किनर के अनुसार:- उपचारात्मक विधि साधरणतः विशेष प्रकार के सीखने, व्यक्तित्व या आचरण-सम्बन्धी जटिलताओं का अध्ययन करने और उनके अनुकूल विभिन्न प्रकार की उपचारात्मक विधियों का प्रयोग करने के लिए काम में लाई जाती है। इस विधि को प्रयोग करने वालों का उद्देश्य यह मालूम करना होता है कि व्यक्ति की विषिष्ट आवश्यकताएं क्या हैं। उसमें उत्पन्न होने वाली जटिलताओं के क्या कारण हैं और उनको दूर करके व्यक्ति को किस प्रकार सहायता दी जा सकती है ?

यह विधि विद्यालयों की निम्नलिखित समस्याओं के लिए विशेष रूप से उपयोगी सिद्व हुई है-


(1) पढने में बेहद कठिनाई अनुभव करने वाले बालक 

(2) बहुत हकलाने वाले बालक 

(3) बहुत पुरानी अपराधी प्रवृति वाले बालक 

(4) गम्भीर संवेगों के शिकार हाने वाले बालक।

9 Developmental Method विकासात्मक विधि

‘‘बालक की वृद्वि और विक्रास - क्रम का अध्ययन’’

इस विधि को आनुवांशिक विधि, जैनेटिक विधि ( Genetic Method ) भी कहते हैं। यह विधि, निरीक्षण विधि से बहुत कुछ मिलती जुलती है। इस विधि में निरीक्षक, बालक के शारीरिक और मानसिक विकास एवं अन्य बालकों और वयस्कों से उसके सम्बन्धों का अर्थात् सामाजिक विकास का अति सावधानी से एक लेखा तैयार करता है। इस लेखे के आधार पर वह बालक की विभिन्न अवस्थाओं की आवश्यकता और विशेषताओं का विश्लेषण करता है। इसके अतिरिक्त, वह इस बात का भी विश्लेषण करता है कि बालक के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और व्यवहार-सम्बन्धी विकास पर वंशानुक्रम और वातावरण का क्या प्रभाव पडता है। यह कार्य अति दीर्घकालीन है, क्योंकि बालक का निरीक्षण उसकी जन्मावस्था से प्रौढावस्था तक किया जाना अनिवार्य है। दीर्घकालीन होने के कारण यह विधि महंगी है  और यही इसका दोष है।

10 Psycho – analytic method मनोविष्लेषण विधि

‘‘ व्यक्ति के अचेतन मन का अध्ययन करके उपचार करना।’’

इस विधि का जन्मदाता वायना का विख्यात चिकित्सा फ्रायड (Freud) था। उसने बताया कि व्यक्ति के ‘‘अचेतन मन ’’ का उस पर बहुत प्रभाव पडता है। यह मन उसकी अतृप्त इच्छाओं का पुंज होता है और निरन्तर क्रियाशील रहता है। 

फलस्वरूप, व्यक्ति की अतृप्त इच्छाएं अवसर पाकर प्रकाश में आने की चेष्टा करती हैं जिससे वह अनुचित व्यवहार करने लगता है। अतः इस विधि के द्वारा व्यक्ति के ‘‘अचेतन मन’’ का अध्ययन करके, उसकी अतृप्त इच्छाओं की जानकारी प्राप्त की जाती है। 

तदुपरान्त, उन इच्छाओं का परिष्कार या मार्गान्तीकरण करके व्यक्ति का उपचार किया जाता है। और इस प्रकार उसके व्यवहार को उत्तम बनाने का प्रयास किया जाता है।


इस विधि की समिक्षा करते हुए बुडवर्थ ने लिखा है ‘‘ इस विधि में बहुत समय लगता है। अतः इसे तब तक आरम्भ नहीं करना चाहिए, जब तक रोगी इसको अन्त तक निभाने के लिए तैयार न हों, क्योकि यदि इसे बीच में ही छोड दिया जाता है, तो रोगी पहले से भी बदतर हालत में पड जाता है। 

मनोविश्लेषक भी इस वधि को ‘अरोग्य’ प्रदान करने वाली नहीं मानते हैं, पर इसके कारण कई अस्त- व्यस्त चिकित्सा-पूर्व की स्थिति से अच्छी दशा में व्यवहार करते देखे गये हैं ।’’    

11.Comparative Method तुलनात्मक विधि

‘‘ व्यवहार - सम्बन्धी और उसमानताओं का अध्ययन ।’

इस विधि का प्रयोग अनुसंधान के लगभग सभी क्षेत्रों में किया जाता है। जब भी दो व्यक्तियों या समूह का अध्ययन किया जाता है, तब उनके व्यवहार से सम्बन्धित समानताओं और असमानताओं को जानने के लिए इस विधि का प्रयोग किया जाता है। मनोवैज्ञानिकों ने इस विधि का प्रयोग करके अनेक उपयोगी तुलनायें की हैं, जैसे-पशु और मानव-व्यवहार की तुलना प्रजातियों की विषेषताओं की तुलना, विभिन्न वातावरणों में पाले गये बालकों की तुलना आदि। इन तुलनाओं द्वारा उन्होंने अनेक आश्चर्यजनक तथ्यों का उद्घाटन करके हमारे ज्ञान और मनोविज्ञान की परिधि का विस्तार किया है।

12.Statistical Method संख्यिकी विधि

‘‘समस्या से सम्बन्धित तथ्य एकत्र करके परिणाम निकालना।’’

यह विधि आधुनिक होने के साथ-साथ अत्यधिक प्रचलित है। ज्ञान का शायद ही कोई क्षेत्र हो, जिसमें इसकी उपयोगिता के कारण इसका  प्रयोग न किया जाता हो। शिक्षा और मनाविज्ञान में इसका प्रयोग किसी समस्या या परीक्षण से सम्बन्धित तथ्यों का संकलन और विष्लेषण करके कुछ परिणाम निकालने के लिए किया जाता है। परिणामों की विश्वसनीयता इस बात पर निर्भर करती है कि संकलित तथ्य विश्वसनीय है या नहीं।

13.Test Method परीक्षण विधि

‘‘ व्यक्तियों की विभिन्न योगयतायें जानने के लिए परीक्षा।’’

यह विधि आधुनिक युग की देन है और शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों मे इसका प्रयोग किया जा रहा है। इस समय तक अनेक प्रकार की परिक्षण विधियों का निर्माण किया जा चुका है। जैसे-बुद्वि परीक्षा, व्यक्तित्व परीक्षा, ज्ञान-परीक्षा, रूचि परीक्षा आदि। इन परीक्षाओं के परिणाम पूर्णतया सत्य, विश्वसनीय और प्रामाणिकता होते हैं। अतः इनके आधार पर परिणामों का शैक्षिक, व्यावसायिक और अन्य प्रकार का निर्देशन किया जाता है।

14.Differential Method विभेदात्मक विधि

‘‘ वैयक्कि भेदों का अध्ययन तथा सामान्यीकरण।’’

प्रत्येक बालक दूसरे से भिन्न होता है। यह भिन्नता ही उसके व्यवहार को निर्देशित करती है। इससे व्यक्ति की पहचान बनती है। शिक्षा-मनोविज्ञान कक्षा-शिक्षण के दौरान वैयक्तिक भेदों की अनेक समस्याओं से जूझता है। क्षिक्षक को शैक्षिक कार्य का संचालन करने में वैयक्तिक भेद विशेष कठिनाई का अनुभव कराते हैं। विभेदात्मक विधि वैयक्तिक भिन्नता के अध्ययन पर बल देती है और  बालकों की समस्याओं का समाधान करती है। इस विधि में अध्ययन की विधियों तथा तकनीेकों का सहारा लिया जाता है। प्राप्त परिणामों के विश्लेषण द्वारा सामान्य सिद्वान्त का निरूपण किया जाता है।
मनोविज्ञान ने अनेक परीक्षाओं की रचना विभेदात्मक विधि के आधार पर की हैै। 

Cattle कैटल ने विभेदात्मक परीक्षण की रचना तथा विष्लेषण में पर्याप्त सहयोग दिया है। यह विधि बालक के ज्ञानात्मक (Cognitive) भावात्मक ( Affective ) तथा क्रियात्मक ( functional ) पक्ष का विशेष रूप से अध्ययन करती है।

15.Psycho – Physical Method मनोभौतिक विधि

‘‘ मन तथा शरीर पर पडने वाले प्रभावों का अध्ययन।’’

मनोभौतिकी या मनोदैहिकी का संबंध मन तथा शरीर की दशा से है। मनुष्य का व्यवहार उसके परिवेश, क्रिया-प्रतिक्रिया तथा आवश्यकता से संचालित होता है। वह व्यवहार ही मनुष्य के भावी संसार का निर्माण करता है।

H.J.Eyseneck आइजेंक  के शब्दों में-‘‘मनोभौतिकी का संबंध जीवित प्राणियों की उस अनुक्रिया से है जो जीव पर्यावरण की उर्जात्मक पूर्णता के प्रति करता है।’’


मनोभौतिकी वास्तव में भिन्नता, उदीपक समानता तथा क्रम निर्धारण आदि समस्याओं से जुझती है। इन समस्याओं को हल करने के लिये मनोभौतिकी के अन्र्तगत अनेक विधियों कों विकसित किया गया है। ये विधियाॅं हैं -


1 Method Of Limit -सीमा विधि 

- Absolute Threshold निरपेक्षण सीमान्त

- Differential Threshold भिन्नता सीमान्त

2 Method Of Right-Wrong Case -शुद्धाशुद्ध विषय विधि 

3 Method Of Average Error - मध्यमान अशुद्ध


इन विधियों में आकस्मिक तथा सतत अशुद्धियों की संभावना रहती है। चल (Variable) अशुद्धियां भी हो जाती हैं। इन अशुद्धियों का प्रयोग नियंत्रण की सावधानियों के द्वारा रोका जा सकता है।

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