अधिगम के सिद्धांत Theory of learning
Classical Conditioning, अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धांत
अन्य नाम:- इस सिद्धांत का अन्य नाम पुरातन अनुबंध का सिद्धांत, परंपरागत अनुकूलन का सिद्धांत भी कहा जाता है।
यह सिद्धांत कहता है कि सीखना एक अनुकूलित अनुक्रिया है।
इस सिद्धांत को समझने के लिए हमें कुछ शब्दों और उनके अर्थ को समझना होगा।
अनुकूलन :- Conditioning
अनुबंधन:-
अब पावलन के कुत्ते पर किए गए प्रयोग को समझते हैं। पावलव ने एक कुत्ते को चैन से बांध दिया। इसके बाद उसने घंटी बजाई और इसके बाद कुत्ते को भोजन दिया। भोजन देखकर कुत्ते के मुंह में लार आना स्वाभाविक है। लेकिन जब पावलव ने लगातार ऐसा किया कि पहले घंटी बजाई फिर भोजन दिया। तो कुत्ते ने मन में यह बात बिठा ली कि घंटी के तुरंत बाद उसे भोजन मिलने वाला है। एक स्थिति ऐसी बन गई कि केवल घंटी सुनकर ही कुत्ते के मुंह में लार आने लगी।
संबंध सहज क्रिया:-
इस प्रयोग के बाद दो स्थितियां बनती हैं।
अनुबंध से पूर्व की स्थिति और अनुबंध केबाद की स्थिति
1 अनुबंध के पूर्व की स्थिति:-
2 अनुबंध के बाद की स्थिति:-
इस स्थिति में घंटी को अनुबंधित उद्दीपक Conditioned Stimulus (C.S.) कहा जाएगा। लार आना अनुबंधित अनुक्रिया Conditioned Response (C.R.) कही जाएगी। इस प्रकार के अनुबंधन को पावलव ने प्राचीन अनुबंधन Classical conditioning कहा है।
प्राचीन अनुबंधन को भी समझ लें:-
अन्य उदाहरण:-
जैसे एक बच्चे के हाथ में गुब्बार फूट जाता है और वह तेज आवाज से डर जाता है। अब जब उसे दूसरा गुब्बारा देते हैं तो वह गुब्बारे को लेने से कतराता है।शिक्षा में इस सिद्धांत के लाभ या प्रयोग या शैक्षिक निहितार्थ:-
1 विद्यार्थियों में भय को दूर करना:- छोटे बच्चों में चूहे, कॉक्रोच आदि के भय को दूर करनाञ
2 अच्छी आदतों का विकास-जैसे बच्चे को जल्दी उठाने के लिए पहले मां लाइट जलाती है फिर कहती है कि जागो बेटा। अगली बार जब मां लाइट जलाती है तो बच्चा खुद ही जाग जाता है। समझ जाता है कि मां जगाने आई है।
3 वस्तुओं के नाम सिखाना- बच्चे को पापा, मामा आदि नाम सिखाना। यह पुरातन अनुभव के जरिये होता है।
4 पशुओं को प्रशिक्षण- चाबुक आदि से सर्कस के जानवरों को विभिन्न क्रिया कलाप सिखाए जाते हैं। पहले घोडे के पिछले पैरों पर चाबुक मारे जाते हैं तो वह अगले पैर उठा देता है। चाबुक की मार अनुबंधित उद्दीपक है ओर अगले पैर उठा देना अनुबंधित अनुक्रिया है। बाद में घोड़ा केवल चाबुक की ध्वनि सुनकर ही मार के भय से अगले पैर उठाने लग जाता है।
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