यहां मांढव्य ऋषि ने की थी 6000 साल तपस्या
अलवर से नीतेश सोनी
अलवर-जयपुर मार्ग पर कुशाल गढ़ तिराहे के समीप से एक रास्ता जाता है। जब आप करीब 12 किलोमीटर के इस हरे-भरे रास्ते का सफर कर रहे होंगे तो कहीं भी नहीं लगेगा कि सफर पर हैं। क्योंकि रास्ते में इतनी हरियाली है कि आपका मन बस छटा देखने में लगा रहेगा। फिर मन में यह विचार भी होगा कि आप तालवृक्ष की राह पर हैं। तालवृक्ष वह स्थान है जहां माढव्य ऋषि ने 6000 वर्ष तक तप किया और गंगा को अवतरित होने पर विवश किया। यहां गंगा का नाम मांडवी गंगा पड़ा। ताल के वृक्ष जिन्हें कि अर्जुनारिष्ट कहा जाता है का बहुल भी यहां है। सुरम्य सुमेरू अरावली की तलहटी में यहां गंगा मंदिर ही प्रमुख स्थल है जिसमें लोग दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर के आहते में दो कुंड हैं जिनमें गर्म और ठंडा पानी है। लोग यहां स्नान कर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं।
मंदिर परिसर में बनी छतरियों पर लाखों की संख्या में एक साथ कबूतरों को देखना भी कम रोमांचित नहीं करता। लोग इन कबूतरों के लिए चुग्गा लाते हैं। ये कबूतरी बेखौफ होकर लोगों के बीच चबूतरे पर नीचे उतर कर दाना चुगते हैं। जब ये एक साथ परवाज भरते हैं तो ऐसा लगता है जैसे देवराज इंद्र ने बाणों की वर्षा से आकाश को आच्छादित कर दिया हो।
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