Sanskrit Grammar Dhatu and their difference: सकर्मक, अकर्मक, परस्मैपदी, आत्मनेपदी और उभयपदी धातुओं की पहचान
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जैसा कि संस्कृत के विद्यार्थी जानते हैं कि संस्कृत ग्रामर में धातुएं तीन प्रकार की होती हैं।
1 आत्मने पदी
2 परस्मै पदी
3 उभय पदी।
लेकिन इनकी पहचान के बिना हम यह अंतर नहीं कर पाते कि कौन सी धातु परस्मैपदी है और कौन सी आत्मने पदी और कौनसी उभयपदी।
ऐसे में हम धातु रूप बनाने में परेशानी महसूस करते हैं। इस अंतर को समझने को आप इस प्रकार समझ सकते हैं।
आत्मने पदी धातुएं :
जहां क वर्ग के अंतिम अक्षर की इत्संज्ञा हो तथा जहां क्रियाफल की प्राप्ति स्वयं को हो वहां आत्मने पदी धातु होती है।
कर्मवाच्य और भाववाच्य में सभी धातुएं आत्मनेपदी होती हैं।
इनमें त, आताम, झ आदि प्रत्यय लगते हैं।कर्मवाच्य और भाववाच्य में सभी धातुएं आत्मनेपदी होती हैं।
परस्मैपदी :
यह कर्ता अर्थ में होती है और क्रियाफल की प्राप्ति दूसरों को होती है। यदि भाव वाच्य या कर्मवाच्य में होगी तो आत्मने पदी होगी।इसमें तिप, तस, झि प्रत्यय लगते हैं।
आत्मने पदी के अलावा सभी धातुएं परस्मैपदी होती हैं। इसलिए आत्मने पदी पर अधिक ध्यान देना होता है। ताकि परस्मैपदी अपने आप याद हो जाएं।
उभयपदी धातुएं :
उभयपदी धातुएं वे होती हैं जहां च वर्ग के अंतिम अक्षर की इत्संज्ञा होती है।इसी प्रकार सकर्मक और अकर्मक धातुओं का अंतर समझना भी आवश्यक है।
सकर्मक धातुएं :
जहां धातुओं से पहले कर्म संभव हो। अर्थात् जहां को लगे वहां सकर्मक धातु होगी।जैसे : - स: ग्रंथं पठति ।
इसका अर्थ होगा वह ग्रंथ को पढ़ता है। अत: यह सकर्मक धातु है।
अकर्मक धातुएं :
जहां धातुओं से पहले कर्म संभव नहीं होता। अथवा को नहीं लगता। वह अकर्मक धातुएं होती हैं।जैसे :- स: शेते ।
इसका अर्थ होगा वह सोता है। यहां को नहीं लगता । को लगाने पर अटपटा लगता है। अत: यहां अकर्मक धातु होगी।
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