सब साले प्रचार के भूखे हैं...डरपोक कहीं के
जो जितना अधिक हल्ला मचाता है वह उतना ही डरपोक होता है। यह मैने महसूस किया है। मैं जो उदाहरण देने जा रहा हूं वह आपको बता देगा कि चाहे कोई भी संगठन हो वह लड़ाई का पार्ट हल्ला मचाना ही मानता है। सबसे बड़ा एटक या कोई भी मजदूर संगठन हो सब मीडिया से डरते हैं। इसे एेसे समझिये। मीडिया मालिकों और कर्मचरियों के बीच मजीठिया वेतन मान देने को लेकर लड़ाई चल रही है। इस लड़ाई को मीडिया कर्मचारियों को अकेले ही लडऩा पड़ रहा है। न तो कई अन्य हल्ला मचाने वाला संगठन जैसे मजदूर संगठन, एटक, या लेफ्ट जो कि मजदूरों के हक के मसीहा बने फिरते हैं कोई भी इन मीडिया कर्मचरियों के साथ नहीं हैं। मतलब यहां यह भी साफ हो जाता है कि ये लोग मीडिया से डरते हैं। इसे यूं भी समझ सकते हैं कि ये हल्ला इसलिए मचाते हैं कि इनका प्रचार प्रसार होता रहे, क्योंकि मीडिया हल्ले के पीछे ही भागता फिरता है। अगर ये लोग वाकई मजदूरों को हक दिलाने वाले होते तो कैसे मजीठिया का हक मांग रहे मीडिया कर्मचरियों को अकेला छोड़ सकते हैं। कोर्ट कचहरी से लेकर नेता नांगलिक तक और लेबर से लेकर जज वकील तक सब मैनेज हो रहे हैं। कर्मचारियों को पूरी उम्मीद है कि देर से ही सही उन्हें उनका हक मिलेगा ही। यहां फक्र की बात यह भी होगी कि यह लड़ाई वे अपने दम पर जीतेंगे। इसका श्रेय न तो किसी सरकार को होगा न किसी संगठन को। होगा तो केवल उन मीडिया कर्मचारियों को जिन्होंने अपना धैर्य, उम्मीद और हिम्मत बनाए रखी है।
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