पूरे शहर में बिकते रहे पटाखे
अलवर। पटाखे बेचने पर सुप्रीम कोर्ट की रोक अलवर में बेअसर नजर आई। पर्ची और पुलिस का सिस्टम खूब चला और जमकर पटाखे बिके। पटाखों की एनसीआर में बिक्री पर रोक के सुप्रीम कोर्ट के फरमान का असर पर्यावरण पर तो खास नहीं रहा लेकिन इतना जरूर हुआ कि पटाखे ब्लैक में चार गुना कीमत पर बिके।
खूब चला पर्ची सिस्टम
शहर में आटे वाली गली और तिलक मार्केट में पटाखों के बड़े व्यापारियों के प्रतिष्ठान हैं। इन प्रतिष्ठानों पर पर्ची सिस्टम से पटाखे बिके। सिस्टम यह बनाया गया कि जिसे पटाखे चाहिए वह पर्ची दे जाए कि कौन कौन से पटाखे और कितनी मात्रा में चाहिए। कुछ घंटे बाद पटाखे पैक होकर कच्चे बिल समेत ग्राहकों तक पहुंचा दिए गए। जो भी रेट लगा ग्राहक चुपचाप देकर चला गया। यहां से पुलिस और मीडिया के लोग भी पटाखे खरीदते नजर आए। मीडियाकर्मियों को तो खुद पुलिसकर्मियों ने पटाखे दिलवाए। यानि पटाखा विक्रेताओं की बेचारगी की आड़ में सिस्टम फ्लॉप करने में वे दोनों कडिय़ां प्रमुखरूप से जिम्मेदार रही जिन पर सिस्टम को बनाने की जिम्मेदारी थी। शहर में चारों तरफ पड़ा पटाखों का कचरा खुद इस बात को बयां कर रहा है कि पटाखों की जमकर न केवल बिक्री हुई बल्कि ब्लैक भी हुई।मुख्य बाजार में जहां पटाखों की बिक्री हुई वहीं शहर की लगभग हर गली में पटाखों की दुकानें सजी रही और चोरी छिपे भी पटाखे बेचे जाते रहे। इसके अलावा मोबाइल नंबरों से संपर्क के माध्यम से घर से भी लोगों ने पटाखे बेचे। गलियों और घरों में लगी पटाखों की दुकानों पर गत वर्ष का बचा माल मनमांगी कीमत पर बेचा गया। शहर के अंदरूनी इलाकों में न कहीं पुलिस पटाखा बिक्री रोकती नजर आई न कहीं इस पर पाबंदी नजर आई।
हालांकि दिवाली पर कम लेकिन गोवर्धन पूजा के दिन पटाखे जमकर चलाए गए। बाजार में नगर परिषद के सामने तो खुलकर पटाखे बेचे गए। यह वह इलाका है जहां पुलिस भी तैनात रहती है और अफसर भी आते जाते हैं। इसके बावजूद नगर परिषद के मुख्य गेट के बिल्कुल सामने पटाखों की जमकर बिकी की गई। लोगों ने खुलेआम पटाखे खरीदे और चलाए भी। हालांकि पटाखे चलाने पर रोक नहीं थी।
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