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Saturday, July 22, 2017

विश्व प्रसिद्ध भपंग वादक उमर फारुख सुपुर्द ए खाक

विश्व प्रसिद्ध भपंग वादक उमर फारुख सुपुर्द ए खाक

अलवर, २२ जुलाई । भपंग की बदौलत अलवर का नाम ४४ देशों में रोशन करने वाले उमर फारुख को शनिवार सुबह सुपुर्द ए खाक कर दिया गया। उनकी अंतिम यात्रा में शहर के गणमान्य लोगों के साथ कला प्रेमी भी मौजूद थे। ४४ वर्षीरू उमर फारुख का निधन गुरुवार शाम करीब सवा छह बजे नैनीताल में हो गया था। वहां वे एक राजकीय कार्यक्रम में प्रस्तुति देने गए हुए थे। उनके भाई महमूद खान ने बताया कि अभ्यास के दौरान वे जैसे मंच से नीचे उतरे उन्हें वहीं हार्ट अटैक आ गया और वे गिर गए। तुरंत उन्हें वहां चिकित्सालय में ले जाया गया जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। इसके बाद परिजन और अन्य साथी शव लेकर गुरुवार को ही बाई रोड अलवर के लिए रवाना हो गए। शुक्रवार देर रात उनका शव अलवर पहुंचा जहां उनके निवास स्थान मूंगस्का के समीप ही कब्रिस्तान में उन्हें सुपुर्द ए खाक किया गया।

खूब गूंजी रिदम ऑफ मेवात

उमर फारुख ने अलवर के सभी कलाकारों और कलाओं को मिलाकर रिदम ऑफ मेवात बनाया। इसके तहत विभिन्न वाद्य यंत्रों को एक साथ एक ही मंच पर बजाया जाता है। इसमें करीब पंद्रह से अधिक कलाकार हारमोनियम, अलगोजा, सितार, तानपुरा, मशक आदि परंपरागत वाद्यों की प्रस्तुति एक ही ताल और लय में देते हैं। अलवर सहित वे अनेक स्थानों पर इसका प्रदर्शन कर सराहना पा चुके थे। इसके अलावा उमर फारुख का लिखा चलै न तोहे दिखा दूं मेरी हरी भरी मेवात, चारूं ओर हो रही टर्र ही टर्र गीत जनमानस में काफी प्रसिद्ध रही। उमर फारुख ने भपंग से ही हास्य रस भी पैदा किया जिसकी श्रोताओं में काफी मांग रहा करती थी।

मुस्लिम जोगी पर गाथा शिव की गाते थे

उमर फारुख के पिता जहूर खां ने भपंग को बुलंदियों पर पहुंचाया था। उनके निधन के बाद उमर फारुख ने कमान संभाली और भपंग के एक तार से पूरी दुनिया में संगीत की ऐसी गाथा बिखेरी कि दुनिया उनकी दीवानी हो गई। भपंग से लगाव के कारण उमर फारुख ने सरकारी नौकरी का प्रस्ताव भी ठुकरा दिया। उमर फारुख ऐसे कलावंत थे जो कि मुस्लिम जोगी थे लेकिन इनके गीतों और भपंग की तान में शिव की गाथा ही गूंजती थी। मेवाती रामायण पर भी उन्होंने कार्य किया। भपंग से उमर फारुख ने शिवजी का ब्यावला भी गाया जो रामायण की चौपाईयां भी उन्हें कंठस्थ थी।

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